सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का हुआ शुभारंभ, निकाली भव्य शोभायात्रा

- Advertisement -

थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
नगर थांदला स्थित इंद्रपुरी कॉलोनी में ओमप्रकाश जानकीलाल नागर के निवास पर सप्त दिवसीय 4 से 11 अप्रैल तक श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ भक्त मलुकदासजी की बावड़ी स्थित हनुमान मंदिर से कलशयात्रा एवं श्रीमद् भावगत की शोभायात्रा से हुआ। कलश यात्रा नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए इंद्रपुरी कॉलोनी स्थित ओमप्रकाश नागर के निवास स्थान पर पहुंची जहां श्रीमद् भावगत की आरती की गई तथा कथावाचक अनुराग शर्मा इंदौर का पुष्पहारों से स्वागत किया। दोपहर 3 बजे से प्रथम दिवस की कथा, कथावाचक अनुरागजी शर्मा द्वारा मंगलाचरण के साथ प्रारंभ की। शर्मा ने श्रीमद् भागवतजी के महात्म्य को सुनाते हुए बताया कि सबसे पहले श्रीमद भावगत गीता स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुनजी को सुनाई थी। उसके पश्चात भगवान श्री नारायण ने श्री ब्रम्हाजी को सुनाई। ब्रम्हाजी ने यह कथा संतकुमारों को सुनाई। सनतकुमारों ने श्री नारदजी को सुनाई। कथा में श्री शर्माजी ने बताया कि एक बार भक्ति ओर उनके दो बेटे ज्ञान एवं वैराग्य अचेतावस्था में कर्नाटक के जंगलों में पड़े हुए थे तभी वहां भ्रमण करते हुए नारदजी पहुंचे तो उन्होंने उनका यह हाल देखा। नारदजी ने भगवान नारायण से उनके स्वस्थ होने का उपाय पूछा। भगवान श्री नारायण ने नारदजी को कहा कि आप श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन करो तब नारदजी ने उनके लिए कथा प्रारम्भ की। कथा प्रारम्भ होते ही वहां एक सुंदर स्त्री के साथ दो युवा प्रकट हुए जो भक्तिए ज्ञान और वैराग्य थे। उनके मुखमंडल पर चमकती आभा को देखकर नारदजी चकित रह गए। इस प्रकार श्रीमद भागवतजी के वाचन तथा श्रवण मात्र से जन्म जन्मांतर के सभी कष्ट मिट जाते है। नारदजी के पश्चात महर्षि वेदव्यास ने उस चतुश्लोकि कथा को पूर्णरूप दिया। वेदव्यास की इस अठारह हजार श्लोक, बारह स्कंध, 335 अध्याय एवं एक लाख शब्द वाली कथा के लेखन का कार्य स्वयं भगवान श्रीगणेशजी ने किया। पश्चात इस सप्त दिवसीय कथा को श्री शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को श्रवण करवा कर मोक्ष प्रदान करवाया। इस प्रकार आज प्रथम दिवस की कथा का श्री गोकर्ण एवं धुंधकारी के मोक्ष की कथा के साथ विराम हुआ।