ऐ ईमान वालो सब्र करो, सब्र का बदला जन्नत है: ईमाम अब्दुल खालिक साहब

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SALMAN SHAIKH@ PETLWAD

अलविदा अलविदा अलविदा है माह-ए-रमजान अब अलविदा हैं…….माह-ए-रमजान अब…अलविदा है। मुस्लिम धर्मावलंबियो ने जामा मस्जिद में माहे रमजान के आखरी जुमे (जुमा तुलविदा) पर शहर के ईमाम अब्दुल खालिक साहब से अलविदा का कुतबा सुना। जब कुतबा पढ़ा गया तो सभी की आंखे नम हो गई।

रमजान के आखरी जुमे के मौके पर ईमाम अब्दुल खालिक साहब ने तकरीर फरमाते हुए कहा पवित्र माह रमजान सब्र का महीना हैं और इसका बदला जन्नत हैं। रोजदार इस माह में सिर्फ खुदा को राजी करने के लिए अपनी सभी मन की चाहतो को छोड़ दे तो उसे इसका बदला जन्नत मिलता हैं। ऐ ईमान वालो तुम सब्र करो, सब्र का बदला जन्नत है।

ईमाम साहब ने आगे कहा रमजान ही वह महीना हैं, जिसमें पवित्र ग्रंथ कुरआन सारे इंसानियम की भलाई के लिए दुनिया में उतारा गया। इस माह की यह सबसे बड़ी खासियत हैं। यह वह ग्रंथ हैं। इसमें इंसानियम को सीधी राह दिखाने, बुरे और अच्छे का अंतर बताया गया हैं। पवित्र ग्रंथ कुरआन अल्लाह की नेमतो में से सबसे बड़ी नेमत हैं। इसके साथ ही रमजान माह में कुरआन के उतरने की शुरूआत हुई। लयलतुल कद्र (शबे कद्र) की रात में अल्लाह तआला ने कुरआन को नाजील फरमाया हैं। कुरआन में जिंदगी गुजारने का तरीका बताया गया हैं। अगर कुरआन के मुताबिक पूरी जिंदगी गुजारी तो जन्नत में ऐसा मुकाम मिलेगा। जिसे किसी ने सोचा भी नही होगा। कुरआन को पढऩा, देखना, छूना तक इबादत हैं। लेकिन हिदायत तभी मिल सकती हैं। जब इसे पढऩे के साथ-समझे भी। रमजान माह में कुरआन को पढऩे पर सवाब 70 गुना तक बढ़ जाता हैं।

आपने कहा मजहब-ए-इस्लाम में रमजान की बड़ी अहमियत और फजीलत है। ये महीना बड़ा पाकीजा, मुबारक और रहमत व बरकत वाला है। अल्लाह ताला अपने नेक मुसलमान बंदों के लिए रहमत के दरवाजे खोल देता है। मुसलमान नेक बंदों को चाहिए कि रमजान के पाक महीने में अल्लाह का हुकुम और हुजूर अकदस स.व. के बताए हुए रास्ते पर चलना और अमल करना है। रमजान का महीना इबादत का पैगाम देता हैं। प्यारे रसूल (सव) उनकी हम गुनहगार उम्मत के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं और हर उम्मीद पूरी कर हमारी मुश्किलों को हल करते हैं।

रमजान का तीसरा अशरा आग से आजादी:

ईमाम साहब ने कहा अभी तीसरा और अंतिम अशरा चल रहा है। तीसरा अशरा मगफिरत यानी दोजख की आग से निजात पाने का है। इस तरह लयलतुलकद्र की रात में खुदा की इबादत करना हजार महीने की इबादत के समान है। आप सभी अपने मुस्लिम भाइयों की मुश्किल में मदद कर नेकी के कार्य करें। माहे रमजान के बाकि दिन जो शेष बचे हैं, उनमें पूरी शिद्दत के साथ इबादत कर अपने रब को मनाने का काम करें ताकि हमारी आखरत संवर सके।

नमाज अदा करने बड़ी संख्या में पहुंचे समाज के लोग-

आखरी जुमे पर मस्जिद में रोजेदार और नमाजियों की भीड़ उमड़ पड़ी। शुक्रवार को माह का आखिरी जुमा (जमात उलविदा) हुआ। रमजान के आखिरी जुमे का खास महत्व होता है। इस दिन सालभर के दौरान छूटी नमाज (कयाजे उमरी) को भी पढक़र समाजजन ने धर्म कमाया। पवित्र माह के आखिरी जुमे में नगर सहित झाबुआ, रतलाम, बदनावर, रायपुरिया, बामनिया, सारंगी, करवड़, बरवेट, झकनावदा सहित जगह-जगह से बड़ी संख्या में समाजजनो ने यहां की जामा मस्जिद में आकर सामुहिक नमाज अदा की।