बैंको के मैनेजर की अनदेखी के चलते ग्रामीणों को होना पड़ रहा है परेशान

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सुनिल खेड़े @जोबट

 बैंक ऑफ इंडिया के दो कियोस्क सेंटर खट्टाली रोड स्थित जोबट में ही संचालित हो रहा है। नरेंद्र मोदी द्वारा पहली बार प्रधानमंत्री बनते ही सबसे अधिक जोर अधिक से अधिक लोगों को बैंकिंग सेक्टर से जोड़कर सारे वित्तीय लेनदेन बैंक के माध्यम से कराए जाने का संकल्प लेते हुए ग्रामीण क्षेत्र के छोटे से छोटे व्यापारी वह किसान वर्ग को खाता खोलने के लिए प्रेरित किया गया था लोगों की सुविधाओं को देखते हुए जिन ग्रामीण इलाकों में बैंकों की शाखाएं नहीं खोली जा सकती थी वहां कियोस्क सेंटरों के माध्यम से लोगों को बैंकों से जोड़ने की कवायद की गई किओस्क सेंटर एक तरह से बैंक की मुख्य शाखा की चलित संस्था होती है जो कम संसाधनों के साथ ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के समय की बचत के लिए उनके ही क्षेत्र में जाकर लेनदेन करने के लिए खोले गए हैं लेकिन जोबट क्षेत्र में तहसील स्तर की बैंक शाखाओं के प्रबंधको और किओस्क सेंटरो के संचालकों की कथित मिलीभगत के चलते ग्रामीणों को परेशानियां झेलना पड़ रही है कारण किओस्क सेंटर गांव की बजाय नगरी क्षेत्र में खुले हैं।
उल्लेखनीय है जोबट में सभी राष्ट्रीकृत बैंको जिनमें मुख्यतया भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, नर्मदा झाबुआ बैंक सहित कई बैंकों की मुख्य शाखाएं जोबट तहसील स्तर पर स्थित है और इन बैंकों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में कियोस्क सेंटर खोलकर एजेंसिया दे रखी है लेकिन बैंकों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के नाम पर स्थापित किए गए कि कियोस्क सेंटर जोबट नगर में ही संचालित हो रहे हैं।
बैंक ऑफ इंडिया जोबट के मैनेजर मनोज भट्टाचार्य एक तरफ नियम कायदे की बात करते रहते हैं लेकिन उनके नियम कायदे अगर देखना हो तो आप जोबट के खट्टाली रोड स्थित बीओआई के कियोस्क सेंटर पर देख सकते है। दो कियोस्क सेटर गांवो के नाम से कागजों मे संचालित है लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि बीओआई के दोनो कियोस्क थोडी सी दुरी पर ही संचालित हो रहे है नियमानुसार दो सेंटरों के बीच दूरी होना अनिवार्य है ग्रामीणों को अपने वित्तीय कामकाज के लिए जोबट आना पड़ रहा है सूत्रों की माने तो अधिकांश बैंकों ने कंदा, किला जोबट, देहदला,देवगांव,किला जोबट आदि गांवो मैं कियोस्क सेंटर खोले जाने के लिए एजेंसी दी गई है लेकिन यह सभी कियोस्क सेंटर जोबट मुख्यालय पर ही संचालित हो रहे इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कियोस्क सेंटर खोलने और ग्रामीणों को राहत देने की योजना दम तोड़ती नजर आ रही है

समय और पैसा दोनों खर्च
यह भी उल्लेखनीय है कि इन कियोस्क सेंटरों तक लेनदेन करने के लिए ग्रामीणों को उतना ही समय और किराया आदि खर्च करना पड़ता है जितना की मुख्य शाखा में जाने के लिए करना होता है ग्रामीणों की मानें तो सरकार ने सुविधा के नाम पर कागजी खानापूर्ति कर रखी है लेकिन इसका फायदा ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है साथ ही इन कियोस्क सेंटरों के संचालकों की मनमानी के चलते जितनी लंबी कतार बैंक शाखा में देखने को मिलती है उतनी भीड़ और कतार कियोस्क सेंटरों पर भी देखने को मिलती है साथ ही ग्रामीणों का अंगूठा लगवा कर पैसा निकाल दिया जाता है और स्लिप भी नहीं दी जाती है इसके चलते ग्रामीण स्तर के लोग जो कि पढ़े-लिखे नहीं होने के कारण उनके खाते से कितना पैसा निकाला गया उन्हें भी नहीं मालूम पड़ता अधिकतम कियोस्क सेंटर कालाबाजारी कर रहे हैं यदि उसका सेंटर संबंधित गांव में संचालित होते तो कम से कम उस क्षेत्र के ग्रामीणों को मुख्यालय तक आने की जरूरत नहीं पड़ती और उनका काम गांव में ही हो जाता
अधिकांश कियोस्क सेटर संचालकों से बैंक प्रबंधकों की मिलीभगत
ऐसा नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्र के नाम पर जारी की गई कियोस्क सेंटर की एजेंसी ग्रामीण क्षेत्र के स्थान पर जोबट नगर में चल रही है और बैंक प्रबंधकों को इसकी जानकारी नहीं है माना यह जा रहा है कि अधिकांश कियोस्क संचालकों से बैंक प्रबंधकों से सीधी सांठगांठ होने के चलते उन्हें मनमानी करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है कुछ ग्रामीणों ने तो बैंक से दिए जाने वाले लोन की सेटिंग कियोस्क संचालकों द्वारा बैंक से करवाए जाने के आरोप भी लगाए हैं बैंक में मेनेजरों की दया के चलते इनकी कियोस्क सेंटरों की बल्ले बल्ले हो रही है

जोबट क्षेत्र के संबंधित तमाम अधिकारियों को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए जिससे हमारे ग्रामीण क्षेत्र के भोले- भाले लोग परेशान ना हो साथी समय और पैसे की बचत भी हो और जो कियोस्क सेंटर जिस गांव के नाम से आईडी है वही संचालित कराने की पहल करें जिससे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को फायदा मिले अब देखना यह है कि इस पूरे मामले मे आगे क्या होता है।