मस्जिद में इफ्तार के लिए रोजेदारों का लगता है हुजूम

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झाबुआ। रमजान पाक वो महीना है, जब दुनियाभर के मुसलमान रोजा रखते हैं। 30 दिन के इस महीने के अंत में ईद का त्योहार मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, पवित्र रमजान का महीना अल्लाह की रहमतों व बरकतों से भरा हुआ है। अल्लाह ने पूरे रमजान महीने के रोजे हर मुसलमान पर फर्ज किए हैं। इसी कड़ी में शहर की जामा मस्जिद में प्रतिदिन रोजा इफ्तार के लिए रोजेदारों का हुजूम लगा रहता है जिसमें मुस्लिम समाजजन घरों से बनाई इफ्तारी के रूप में कई तरह के पकवान व मिष्ठान से रोजा इफ्तार के लिए मस्जिद लाते है। इसके अलावा नौजवान भी रोजेदारों को भोजन करवाकर सवाब के हकदार बनते है। इस महीने नफ्ल का सवाब फर्ज के बराबर व फर्ज का सवाब सत्तर गुना ज्यादा होता है। मान्यता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है।
यह है रजमान की फजिलत
पैंगम्बर इस्लाम के मुताबिक रमजान महीने का पहला अशरा (दस दिन) रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा दोजख से आजादी दिलाने का है। यह महीने प्रेम और अपने ऊपर संयम रखने का मानक है इसलिए कहा गया है कि हर मुसलमान को रोजा जरूर रखना चाहिए। इस दौरान केवल अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और सहरी और इफ्तार का खास ख्याल रखना चाहिए। इस दौरान शराब, सिगरेट, तंबाकू और नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। रमजान के दौरान हर मुस्लिम को जकात देना होता है। जकात का मतलब अल्लाह की राह में अपनी आमदनी से कुछ पैसे निकालकर जरूरतमंदों को देना। कहा जाता है जकात को रमजान के दौरान ही देना चाहिए ताकि गरीबों तक वो पहुंचे और वो भी ईद बना सकें। इस्लाम के मुताबिक रोजा केवल भूखे प्यासे रहने का ही नाम नहीं बल्कि नब्ज को व्यवस्थित और शुद्धि करने का नाम है और हर वर्ष 30 दिन अपनी आत्मा को शुद्ध करके हम शेष 11 महीने इसी जीवन को जीने की ट्रेनिंग पाते हैं।
फोटो-3- इफ्तार का इंतजार करते रोजेदार