पयूर्षण पर्व 8 दिन के लिए नहीं बल्कि हमेशा मनाए : मुनिश्री पृथ्वीराजजी

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
पर्युषण पर्व मैत्री का संदेश देता है। अंर्तमुखी बनने की प्रेरणा देता है। अनुकंपा और निर्मलता लाने के लिए पयूर्षण पर्व है। पयूर्षण पर्व साल में 8 दिन नहीं हमेशा मनाया जा सकता है। इंसान को हमेशा अंर्तमुखी रहना चाहिए। उक्त विचार मुनिश्री पृथ्वीराज जी जसोल ने पयूर्षण पर्व की पूर्व संध्या पर पत्रकार परिचय गोष्ठी के तहत व्यक्त किए। मुनिश्री ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए सम्बोधित भी किया। मुनिश्री ने कहा कि जैन धर्म समित समुदाय के लिए नहीं है यह जन जन के लिए है इसमें सम्प्रदाय को कोई भेद नहीं है। सम्प्रदाय में कोई बुराई नहीं है किन्तु सम्प्रदायिकता में बुराई है। हमें सम्प्रदाय से उपर उठ कर साधना की स्थिति में पहुंचना होगा। इसके साथ ही उन्होंने बताया की अणुव्रत,प्रज्ञा ध्यान और जीवन विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। जिसके तहत अणुव्रत के माध्यम से छोटे छोटे नियमों से व्यक्ति जीवन में बडी सफलता पा सकता है। राष्ट्र शांति स्थापित हो सकती है। अणुव्रत मानव मात्र के कल्याण के लिए है। इसके साथ ही प्रेक्षा ध्यान के माध्यम से विचारों को बदलना है। विचारों में निर्मलता लानी है। आतंकवाद के मुद्दे को प्रेक्षा ध्यान जैसे माध्यमों से निपटा जा सकता है। क्योंकि हमे विचार बदलना है इसके माध्यम से आतंकवादियों के विचार बदलना है और उन्हे सही राह पर लाया जा सकता है।
संवत्सरी एक हो
एक प्रश्न के जवाब में मुनिश्री ने कहा की संवत्सरी एक हो सकती है। इसके लिए सभी को मिल कर सामूहिक प्रयास करने होगें। इसके लिए आचार्यो में एक मत होना चाहिए साथ ही श्रावक श्राविकाओं को भी एक मत हो कर आगे आना होगा। जिससे संवत्सरी जैसा पर्व एक साथ मनाया जा सके। इसके साथ ही मुनिश्री चैतन्य कुमार अमन, मुनिश्री अतुल कुमार जी ने भी सम्बोधित किया।स्वागत भाषण तेरापंथी सभा के अध्यक्ष झमकलाल भंडारी ने दिया। इस मौके पर पत्रकारों को साहित्य भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन सभा के मंत्री लोकेश भंडारी ने किया। अंत में आभार प्रदर्शन पंकज जे पटवा ने माना।