कलेक्टर की नेक पहल को मिला सहारा, कई जिंदगियां हो सकेंगी रोशन

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जोबट से पारस सिंह भदोरिया की रिपोर्ट: अमिताभ बच्चन से लेकर देश की नामी हस्तियां नेत्रदान के लिए आम लोगों को प्रेरित करने काम करती रही है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि देश के एक बड़े हिस्से में आज भी नेत्रदान के लिए उचित संसाधन मौजूद नहीं है। ऐसे में प्रदेश के सबसे पिछड़े अंचल में एक अधिकारी लाखों लोगों के लिए उम्मीद और नेत्रहीन के लिए नयी रोशनी लेकर आया है। “नेत्रदान महादान” के इस संकल्प को रियल लाइफ में लाने के लिए इस अधिकारी को एक संस्था का भी साथ मिला और आदिवासी अंचल को मिल गया नेत्रदान सेंटर। झाबुआ आजतक की इस ख़ास रिपोर्ट में देखते है कैसे आदिवासी अंचल में जिंदगी को रोशन करने की एक मानवीय पहल शुरू हुई है।

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बात हो रही है अलीराजपुर जिले की जहां नेत्रदान की मंशा तो कई लोग और परिवार रखते है लेकिन अब तक यहां इसके लिए कोई सुविधा नहीं है। ऐसे में जिले के मुखिया कलेेक्टर शेखर वर्मा ने इसके लिए पहल शुरू की। उनकी इस पहल को गायत्री पीठ के रूप में एक सहयोगी मिला और सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए अब जिले को नेत्रदान सेंटर की सौगात मिल रही है।

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दरअसल, अब तक आदिवासी अंचल में यदि किसी के निधन के बाद परिवार उसकी आंखों से दुनिया को रोशन करना चाहे तो उसे इंदौर की और ही देखना होता था। एेसे में 200 किलोमीटर से ज्यादा का सफर और फिर नेत्रदान लगभग असंभव जैसा ही था। इस वजह से कई परिवार चाहकर भी इस महादान अभियान में शामिल नहीं हो सकते थे।

अब तक जरूरतमंद को इलाज मिले इसके लिए पहचाने जाने वाले कलेक्टर शेखर वर्मा ने इस अंचल की इसी दुखती नब्ज को जान लिया। उन्होंने इसके लिए पहल शुरू की और कोशिश की कि अंचल में ही नेत्रदान सेंटर शुरू हो सके।

इसके बाद गायत्री शक्ति पीठ जोबट भी इस नेक काम के लिए आगे आया। उनके प्रमुख शिवनारायण सक्सेना ने कलेक्टर से नेत्र संकलन केंद्र यानि कार्नियर कलेक्शन सेंटर शुरू करने की अनुमति मांगी। गायत्री शक्ति पीठ के इस फैसले से उत्साहित कलेक्टर ने भी तुरंत जरूरी सरकारी कवायद पूरी करते हुए इस सेंटर को शुरू करने की अनुमति दे दी।

इसके बाद यहां सारी जरूरी सुविधाओं को जुटाया गया और अब जोबट में यह सेंटर पूरी तरह से तैयार हो गया है। खास बात है कि इसमें कलेक्टर ने परदे के पीछे रहकर हरसंभव मदद की है। उनकी मंशा है कि समाज के हर वर्ग को इलाज और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाएं मिले। ऐसे में जब उन्हें पता चला कि इतना बड़ा अंचल होने के बावजूद नेत्रदान के लिए इंदौर पर निर्भर रहना पड़ता है तो फिर यह सारी कवायद शुरू हुई जिसका नतीजा है कि अब कई जिंदगियां रोशन हो सकेगी।