धुलेंडी की परंपरा को बच्चों ने कायम रखा, जमकर खेला रंग 

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

होलिका दहन के बाद दूसरे दिवस रंगों का पर्व धुलेंडी मनाने की परंपरा रहती है मगर देखा जा रहा है कि विगत तीन-चार वर्षो से यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है मगर अभी छोटे बच्चों ने यह परंपरा कायम रखी हुई है उन्होंने जमकर रंग खेल कर बड़ों को इस परंपरा निर्वहन करने की मानो सीख दी हो।

            धुलेंडी का कार्यक्रम होली का दहन के द्वितीय दिवस मनाया जाता है इस दिन रंगों के साथ ही कहीं कहीं कीचड़ मिट्टी से भी होली खेली जाती है शायद इसी लिए इस धुलेंडी कहा जाता रहा है समय के साथ-साथ धूल मिट्टी कीचड़ की परंपरा तो समाप्त होती गई मगर रंगों की परंपरा कायम रही मगर अब यह भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है उसके पीछे जो भी कारण हो उनमें राजनीतिक विद्वेषता आपसी मनमुटाव, मनभेद, मतभेद आदि अनेक कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं बच्चे मन के सच्चे कहावत को बच्चे चरितार्थ करते हुए उन्होंने धुलेंडी की परंपरा को जीवित रखते हुए जमकर रंग खेला तथा बड़ों को परंपरा बनाए रखने की जैसे सिख भी दे डाली क्षेत्र में कुछ वर्ष पूर्व तक रंगों का त्योहार धुलेंडी, उसके दूसरे दिन पुलिस तथा प्रशासन की होली (रंग) तथा रंग पंचमी और शीतला सप्तमी को रंग खेलने की परंपरा थी मगर अब यह केवल औपचारिकता मात्र रह गई है वह भी भविष्य में समाप्त न हो जाए इस और ध्यान देने की जरूरत महसूस की जा रही है।