पेटलावद विधानसभा को लेकर आशंकित है कांग्रेस आलाकमान, वालसिंह मैडा की राह आसान नहीं

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चंद्रभान सिंह भदौरिया @ चीफ एडिटर

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 के लिए मतदान के लिए करीब 6 महीने का वक्त बाकी है कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां अपनी तैयारियों में जुट गयी है .. कांग्रेस के दो बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह फिलहाल विगत विधानसभा चुनाव 2018 में हारी हुई सीटों पर दौरा कर रहे हैं लेकिन अगस्त के बाद दोनों नेता कम अंतर से जीती सीटों पर फोकस कर सकते हैं .. बात अगर पेटलावद विधानसभा सीट की करे तो पेटलावद के कांग्रेस विधायक वालसिंह मैडा मात्र 5 हजार वोटों से ही चुनाव जीत पाये थे ..वह भी तब जब बीजेपी के कुछ नेताओं ने अंदर खाने उनकी मदद की थी और शिवराज सरकार के साथ साथ तत्कालीन विधायक निर्मला भूरिया के खिलाफ मामूली एंटी इकंमेंसी थी.. लेकिन अब वालसिंह मैडा खुद विधायक है और वह 15 महीने की कमलनाथ सरकार के शक्तिशाली विधायक की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

यह था पिछला चुनाव परिणाम

विधानसभा चुनाव 2018 में चुनाव परिणाम में कांग्रेस के वालसिंह मैडा को 93425 वोट मिले थे और बीजेपी की निर्मला भूरिया को 88425 वोट मिले ..इस प्रकार महज 5000 वोटों से वालसिंह मैडा चुनाव जीते थे ..वोट प्रतिशत की बात करें तो वालसिंह मैडा को 47 % वोट ओर निर्मला भूरिया को 44 % वोट मिले थे इसके अलावा IAND के सचिन गामड को 6579 वोट ( 3 % ) , रामचंद्र सोलंकी ( BSP ) को 2675 ( 1%) , केहरसिंह को 1437, आम आदमी पार्टी के राहुल मैडा को 763 वोट ओर भारतीय बहुजन पार्टी के रामेश्वर सिंगार को 752 वोट प्राप्त हुए

वालसिंह मैडा के कमजोर पक्ष

पेटलावद से 2023 में वालसिंह मैडा की कोशिश फिर से टिकट हासिल करने की है लेकिन टिकट के बाद भी उनकी राह आसान नहीं है क्योंकि वालसिंह मैडा के खाते में कोई उल्लेखनीय उपलब्धियां नहीं है ना ही विपक्षी विधायक के रूप में बड़ा जन आंदोलन पेटलावद इलाके में कर पाये है .. ना कोई बडी फैक्ट्री लगी ना पलायन रूका ना टमाटर और मिर्च उत्पादक किसानों के लिए कोई ठोस योजना वालसिंह मैडा नहीं ला सके .. अकमाल मालू भी वालसिंह मैडा का खेल बिगाडने को तैयार बैठे हैं

निर्मला भूरिया की राह आसान नहीं

निर्मला भूरिया कांग्रेस और बीजेपी दोनों से कुल 4 बार विधायक रही है लेकिन बड़ा उल्लेखनीय काम उनके खाते में बताने लायक नहीं है .. उन्हें बीजेपी के भीतर चार नेताओं से घिरी रहने वाली भी कहा जाता रहा है .. भले ही उनके पिता की पैसा एक्ट निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन पैसा एक्ट लागू होने के बाद से आजतक वह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस तक नहीं कर पाई है .. पैसा एक्ट सहित कई मुद्दों पर उनकी बेरूखी उन्हें मुख्य धारा की राजनीति से थोड़ा दुर करती है .. बीजेपी के भीतर एक धड़ा उनके टिकट को काटने या कहीं और उन्हें शिफ्ट करने की रणनीति में सक्रिय हैं कामयाबी कितनी मिलेगी यह कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन निर्मला भूरिया के लिए भी भोपाल अभी नजदीक नहीं है ।

पेटलावद विधानसभा के 1977 से विधायक यह रहे

1977: प्रताप सिंह, जनता पार्टी

1980: गंगाबाई, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई)

1985: गंगाबाई, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1990: वीरसिह भुरिया, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1993: निर्मला भूरिया, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1998: निर्मला भूरिया, भारतीय जनता पार्टी

2003: निर्मला भूरिया, भारतीय जनता पार्टी

2008: वालसिंह मेडा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

2013: निर्मला भूरिया, भारतीय जनता पार्टी

2018: वालसिंह मैडा , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

बीजेपी को परंपरागत मतदाताओं से उम्मीद

पेटलावद विधानसभा क्षेत्र अगर दो दशक का इतिहास में देखें तो मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की ओर अधिक रहा है यहां बड़ी संख्या में किसान जागरूक मतदाताओं की बहुलता है जो पाटीदार समाज , सिर्वी समाज , राजपूत समाज और आदिवासियों के बीच बंटा हुआ है लेकिन अक्सर पाटीदार ओर सिर्वी समाज का वोट बहुलता के साथ बीजेपी के पाले में जाता रहा है .. आदिवासी समुदाय का वोटर कांग्रेस का परंपरागत रहा है लेकिन बीजेपी ने इसमें सेंध लगाई है।