संत शिरोमणि श्री सेवालाल जी महाराज के बताए रास्ते पर समाज को चलना होगा: मुख्य वक्ता श्री श्याम नायक

पेटलावद में मनाई गई बंजारा समाज के आराध्य संत शिरोमणि श्री सेवालाल जी जयंती, मुख्यधारा में जुड़कर काम करने का लिया संकल्प...

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सलमान शेख़/ झाबुआ Live 

पेटलावद। समाज शिक्षा, आर्थिक व राजनीति क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। इसके लिए समाज के लोगों को इस कमी को दूर करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करनी होगी। हमारे आराध्य संत शिरोमणि श्री सेवालाल जी महाराज ने हमें आगे बड़ने के लिए कई रास्ते दिखाए है, उन्हीं रास्तों पर चलकर हम समाज का उत्थान कर सकते है।
यह विचार धार से पधारे श्री श्याम जी नायक ने संत सेवालाल महाराज की 285वीं जयंती के मौके पर उत्कृष्ट विद्यालय के मैदान पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में कही।
गुरुवार को नगर में संत सेवालाल महाराज की 285वीं जयंती समाजजनों ने बड़े ही उत्साह के साथ मनाई। बंजारा समाज और विमुक्त, घुमंतू और अर्ध घूमन्तू जनजाति समाजके महिलाएं, पुरुष, बच्चे ने आयोजित कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भाग लिया। मुख्य कार्यक्रम नगर की शासकीय स्कूल के खेल मैदान में आयोजित हुआ।
इस अवसर पर श्री श्याम जी नायक प्रमुख वक्ता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्री विजेंद्रसिंह जी गोठी, रतलाम विभाग के सह विभाग कार्यवाह आकाश जी चौहान, बंजारा समाज के जिलाध्यक्ष भरतसिंह राठोड़, जिला संयोजक पर्वत नाथ, गजानंद नायक, भारत नायक, कमलेश नायक, कन्हैया नायक, कैलाश नाथ, अजय पंवार, कैलाश नायक, टांडालाल नायक, बुधा मुछाल, रतन वडतिया, भोजराज नायक, रमेश भाई, हुकम नायक, श्रवण नायक, चंदरसिंह हरूबा, प्रेम नायक, सकार नायक आदि मंचासिन थे।
यहां सर्वप्रथम बंजारा समाज के आराध्य संत शिरोमणि सेवालाल महाराज के चित्र पर मंचासीन अतिथियों द्वारा माल्यार्पण कर पूजा अर्चना की गई। इसके बाद सभी समाज के प्रमुखों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।
विमुक्त व घुमंतू जाति के लोगों द्वारा देश की आजादी में दिए गए बलिदान को कभी नहीं भूलाया जा सकता
मुख्य वक्ता श्री श्याम जी नायक ने आगे कहा संत सेवालाल महाराज की जयंती मनाए जाने के पीछे उद्देश्य है कि समाज में बढ़ते नशे की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना, अशिक्षा को दूर करना, सामाजिक एकता बनाए रखना, फिजूलखर्ची और दहेज का लेन-देन बंद कर सामूहिक विवाह अनिवार्य करना, मृत्यु भोज पूर्णत बंद करना जैसे उद्देश्य को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा कर उन्हें इसके लिए तैयार करना है।
उन्होंने आगे कहा विमुक्त व घुमंतू जाति के लोगों द्वारा देश की आजादी में दिए गए बलिदान को कभी नहीं भूलाया जा सकता। विमुक्त, घुमंतू जनजाति के इतिहास पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि विमुक्त, घुमन्तु जनजातीय समाज ने समाज की विभिन्न प्रकार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अलग-अलग काम घूम-घूम कर जिम्मे लिया था। घुमंतू समाज देशभक्त, स्वाभिमानी और सम्पन्न समाज है। आक्रांताओं से लड़ाई में घुमंतुओं का महत्वपूर्ण योगदान है। घुमंतू समाज के लोग देश के आर्थिक, धार्मिक, स्वतंत्रता सेनानी हैं।
उन्होंने सभी से जातियों में न बंटने की अपील करते हुए कहा कि हम सभी विमुक्त घुमंतू समुदाय के लोग अपने अधिकारों के लिए एकत्रित होकर आवाज उठाएं। मतांतरण के बहकावे में न आएं।
इस दौरान विभाग प्रचारक श्री विजेंद्रसिंह गोठी ने कहा आप और हम अलग नहीं हैं। हममें कोई छूत-अछूत नहीं हैं, हम सब एक हैं, आपके और हमारे महापुरुष एक हैं। हमारा रक्त का संबंध है। सभी को शिक्षा, आवास जैसी मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए हम सब मिलकर कार्य करेंगे।
रतलाम विभाग के सह विभाग कार्यवाह श्री आकाश चौहान ने कहा विमुक्त, घुमंतू, अर्द्धघुमंतु, जनजाति समाज को मुख्यधारा में लाना जरूरी है। हम शासन-सरकार या राजनैतिक दलों के लोग नहीं हैं। हमारा उद्देश्य सर्व विमुक्त घुमन्तु समाज के लोगों के उत्थान, कल्याण, विकास एवं उनकी समास्याओं के लिए कार्य करने का है। हम सभी मिलकर शासन-प्रशासन तक आपके हित के लिए आवाज उठाने का कार्य करेंगे।
डीजे पर यात्रा निकाली गई 
बंजारा समाज के महिला पुरुष और बच्चों ने मिलकर नगर में एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली। यात्रा नगर के प्रमुख मार्गो से होकर गुजरी। यात्रा का जगह जगह कई सामाजिक संगठनों ने स्वागत भी किया। यात्रा स्कूल ग्राउंड से शुरू होकर गांधी चौक, कहार मोहल्ला पीपाड़ा गली, झंडा बाजार, गणपति चौक, सीटी केमिस्ट गली, महाकाल पथ, नया बस स्टैंड, पुराना बस स्टेंड होते हुए पुनः स्कूल ग्राउंड पहुंचकर समाप्त हुई।
कौन थे संत सेवालाल महाराज?
बता दें कि संत सेवालाल महाराज का जन्म 15 फरवरी, 1739 ई. को कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के सुरगोंदानकोप्पा में हुआ था। उन्हें बंजारा समाज का समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु माना जाता है। ऐसा माना जाता है जब वह छोटे थे, तभी से आम लोगों में उनको एक चमत्कारी व्यक्तित्व का दर्जा हासिल हो गया था। वह अपने भक्तों के बीच एक दिव्य पुरुष कहलाते थे। उनको अध्यात्म और समाज सेवा का मसीहा कहा जाता था। लोगों की तकलीफ को दूर करने की विधि बताना, योग, अध्यात्म, आयुर्वेदिक दवाओं के जरिए लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की प्रेरणा देना उनका काम था। वो एक घुमंतू संत थे। जहां जहां जाते-वहां के समाज में उनकी पैठ बढ़ती जाती थी।