फीस न जमा होने पर इस स्कूल में बच्चों के साथ हुई ऐसी हरकत, सुनकर हैरान रह जायेंगे आप…

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सलमान शैख़, झाबुआ Live..
शासन-प्रशासन भले ही प्राइवेट स्कूलों पर लगाम कसने की बात कर रही हो, लेकिन प्राइवेट स्कूलों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। निजी स्कूल कैसे शिक्षा के नाम पर दुकानदारी करते है यह किसी से छिपा नहीं है। हमेशा ही ऐसे स्कूलों की दुर्व्यवस्था को लेकर बदनाम रहे जिले में कैसे महज चंद रूपये के लिए निजी स्कूल किसी भी छात्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं।
इसका उदाहरण मिला पेटलावद के द संस्कार वेली पब्लिक स्कूल में, जहां कुछ महीने की फीस नहीं जमा करने पर दो छात्रो को यूनिट टेस्ट देने से रोक दिया गया। बता दे कि शहर के रायपुरिया मार्ग स्थित द संस्कार वेली पब्लिक स्कूल में इन दिनों यूनिय टेस्ट चल रहे है। कक्षा 1 में पढ़ने वाले सिद्गार्थ और जयेश दोनो के अभिभावकों का आरोप है कि उनके बच्चे को स्कूल फीस नहीं जमा करने पर परीक्षा में लेट पेपर दिया गया, जिसके कारण उनके कई प्रश्न छूट गए और समय समाप्त हो गया। ये तो दो बच्चे है न जाने ऐसे कितने बच्चे होंगे जिनके भविष्य के साथ खिलवाड़ स्कूल द्वारा किया जा रहा है। इधर स्कूल प्राचार्य ने हवाला दिया की उनकी फीस नहीं जमा है। इस कारण रोका गया था। जिसकी सूचना पर अभिभावकों में खासा आक्रोश उत्पन्न है।
यह एक हैरान करने वाला मामला है जबकि छोटे-छोटे बच्चों से फीस भी नहीं मांगनी चाहिए। यह एक अमानवीय घटना है।
प्रायवेट स्कुलो में बढ़ती मनमानी:
महंगी शिक्षा व स्टेटस सिंबल की आड़ में निजी स्कूलों की मनमानी के चलते आज अभिभावकों की जेबें खाली हो रही हैं जबकि बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं. आनेजाने की नियमित सुविधा दें या न दें पर बस का किराया पूरा व समय पर लेते हैं।
पढ़ाई के नाम पर कमाई की दुकान का दूसरा नाम बन चुके प्राइवेट स्कूलों को न तो बच्चों की पढ़ाई की चिंता है न उन की सुरक्षा की, उन्हें चिंता है तो बस अपने हित साधने की। क्लासरूम में बच्चों के लिए भले ही सहूलियतें न हों पर वे फीस समय पर वसूलते हैं। आनेजाने की नियमित सुविधा दें या न दें पर बस का किराया पूरा व समय पर लेते हैं।
शिक्षा के नाम पर चल रही लुट
शिक्षा के नाम पर किताबकौपियां, बस किराया, वरदी, जूते आदि से ले कर बिल्डिंग फंड के नाम पर भी अभिभावकों से लाखों वसूले जाते हैं।
आज शिक्षक कक्षा में जाते जरूर हैं लेकिन वे सीमित पाठ्यक्रम पढ़ाने में ही विश्वास रखते हैं वरना उन का निजी ट्यूशन पढ़ाने वाला बिजनैस पिट जाएगा। शिक्षक बच्चों को अच्छे मार्क्स दिलाने का भरोसा दिलवा कर उन्हें बाहर ट्यूशन पढ़ने पर मजबूर करते हैं। 7वें वेतन आयोग में बढ़ी पगार के साथ ट्यूशन की दरें भी बढ़ा दी गई हैं।
स्कूल में पढ़ाने में ज्यादा मेहनत न करने के बावजूद टीचरों को पूरी पगार मिल रही होती है, वहीं ट्यूशन का बिजनैस भी जोरों से चल रहा होता है।
असुरक्षा का बोलबाला:
स्कूल को बच्चों का दूसरा घर कहा जाता है। पेरैंट्स अपने बच्चों के लिए ऐसे स्कूलों का चयन करते हैं जो उन के बच्चों को ऐडवांस स्टडीज देने के साथसाथ उन की सुरक्षा की भी पूरी गारंटी दें।
यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐडमिशन देने के वक्त सुरक्षा के लाख दावे किए जाते हैं, लेकिन एक बार ऐडमिशन होने के बाद ऐसे सारे दावे खोखले साबित होते हैं. आएदिन स्कूल बस ड्राइवर की गलती से कोई न कोई बच्चा ऐक्सिडैंट और शिक्षकों की हवस का शिकार होता है।
इन सब के बावजूद उन के खिलाफ कोई खास कार्यवाही नहीं होती।वही अब बड़ा सवाल उठता है कि आखिर एक स्कूल को बच्चो के भविष्य से खिलवाड़ करने का अधिकार किसने दे दिया?