पेटलावद की सियासत में क्या होगा बदलाव..? या फिर होगा कोई चमत्कार…? विधायक ओर सरकार एक पार्टी के चाहते हैं पेटलावदवासी…

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सलमान शैख़, पेटलावद
मतदान के बाद प्रत्याशीयों के जीत-हार को लेकर तरह-तरह की अटकले व कयास लगाए जा रहे है। चौराहो पर कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस के जीत के दांवे किये जा रहे है तो कुछ निर्दलियों का दंभ भर रहे है। पेटलावदवासियों की राय यह हैं कि जिस पार्टी की सरकार प्रदेश में बने उसी का विधायक यहां होना चाहिए। ताकि क्षैत्र के विकास में कोई रोडा न आये।
अगर 11 दिसम्बर को होने वाली मतगणना में भारतीय जनता पार्टी से निर्मला भूरिया विधायक चुनी जाती हैं और शिवराज सरकार प्रदेश में काबिज होती है तो उनका राज्यमंत्री से पदोन्नति होकर कैबिनेट में जाना लगभग तय माना जा रहा है।
इसी प्रकार कांग्रेस से वालसिंह मैढा के सिर जीत का सेहरा बंधता है और सरकार बनती हैं तो मंत्रालय मिले ना मिले किसी जिम्मेदार पद के साथ जरूर नवाजे जाएंगे।
ऐसा सूत्र बताते है। वहीं यदि निर्दलिय को सत्ता मिलती हैं तो वो केवल तय राशी ही विकास के लिए दे पाएगा या उसके सामने सत्तारूढ पार्टी के साथ शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नही रहेगा। कुल मिलाकर पेटलावद विधानसभा की जनता कि यही मंशा हैं कि सरकार व विधायक एक पार्टी का हो ताकि क्षैत्र के विकास में कोई रोडा नहीं आये।

राजनीति में ऐसा रहा है निर्मला का सफरः
आपको बता दे कि जब दिलीपसिंह भूरिया कांग्रेस में थे तो 1993 में उन्होंने अपनी पुत्री निर्मला भूरिया को कांग्रेस प्रत्याशी बनाते हुए पेटलावद क्षेत्र से जीत दिलवाई थी। जब वे भाजपा में गए तो वर्ष 1998 के चुनाव में निर्मला भूरिया पेटलावद से भाजपा प्रत्याशी बनीं और पहली बार भाजपा का इस क्षेत्र में खाता खुला।

भाजपा की पटवा सरकार में कांग्रेस का विधायक चुना जाना, 1993 में निर्मला भूरिया कांग्रेस व 1998 में भाजपा से विधायक बनी। जिसमें पिता स्वर्गीय सांसद दिलीपसिंह भूरिया की पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह से पटरी नहीं बैठ पाने के कारण पेटलावद विकास से अछूता रहा। 2003 में भाजपा सत्ता आई तो दिलीपसिंहजी कि उमा भारती से दूरी ने हेट्रीक विधायक निर्मला भूरिया को मंत्री बनने से रोक दिया। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भी स्थिति जस की तस रही। बाद में शिवराज सरकार ने उन्हे कुछ माह के लिये राज्यमंत्री अवश्य बनाया।

2003 के बाद से ही मंत्रिमंडल गठन के दौरान कटा उनका नामः
इसके बाद वर्ष 2008 में निर्मला को अपने मुंह की खानी पड़ी थी और चुनाव में कांग्रेस के वालसिंह मैड़ा ने उन्हें 8 हजार मतो से हरा दिया था। हालांकि उसके बाद वर्ष 2013 में फिर निर्मला ने अपनी गलती सुधारी और भाजपा से विधायक चुनी गई, लेकिन विधायक होने के बावजूद निर्मला की भाजपा में उपेक्षा होती रही और मंत्रिमंडल गठन के दौरान हर बार उनका नाम काट दिया गया, लेकिन उन्होंने भाजपा को कभी नहीं छोड़ा।
हांलाकि भाजपा सरकार में बार-बार डोलती मुख्यमंत्री की कुर्सी में विधायकों को अधिक पावर दिया गया। जिसका परिणाम यह रहा कि पिछले पांच साल पेटलावद विधानसभा में विकास की दृष्टि से स्वर्णिम समय था।
वैसे तो प्रत्याशीयों ने अपने-अपने पक्ष में वोट कबाडने कि भरचक कोशिशे की है। मतदाताओं ने किसके पक्ष में मतदान किया हैं किसके सिर पर ताज की तैयारी कि हैं यह तो परिणामों के बाद ही पता चलेगा।

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