29 जुलाई से ग्राम कुंडाल में बंद है स्कूल, 68 विद्यार्थी स्कूल के बाहर खेलकूद में गंवा रहे टाइम

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
मध्यप्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून आवश्यक रूप से लागू है और इस कानून के तहत कक्षा पहली से 8वीं तक की शिक्षा सभी छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य रूप से दिए जाने का प्रावधान है और इसी के तहत झाबुआ जैसे आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा के नाम पर प्रदेश सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं ताकि इस क्षेत्र के पिछड़े वर्ग के लोग ज्ञान प्राप्त कर समाज की मुख्यधारा में जुड़ सके। किन्तु स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के चलते भौतिक धरातल पर पेटलावद विकासखंड की कई माध्यमिक और प्राथमिक विद्यालय बंद होने की कगार पर है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण पेटलावद विकासखंड के ग्राम कुंडाल में देखने को मिला, जहां पर 29 जुलाई से विद्यालय बंद हो कर 68 बच्चें विद्यालयीन समय पर विद्यालय प्रांगण में खेलकूद कर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं।
अटैचमेंट से हुआ शिक्षक विहीन
अटैचमेंट खत्म करने के प्रशासन के गत दिनों के आदेश से तहसील मुख्यालय से मात्र 6 किमी दूरी पर 100 घरों की आबादी वाले कुंडाल ग्राम में 2 शिक्षकों के अटैचमेंट समाप्त करने से पूरी संस्था शिक्षक विहीन हो गई है। गौरतलब है कि प्रशासन ने पूरे क्षेत्र में सभी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में अटैचमेंट के माध्यम से लगे हुए अध्यापकों को अपने मूल पदस्थापना पर जाने का आदेश जारी किया था, जिसके चलते कुंडाल में अटैच दो शिक्षक को अपनी मूल पदस्थापना पर जाना पड़ा और स्कूल शिक्षक विहीन हो गई। इस मामले में सबसे रोचक तथ्य यह है कि स्थानीय अधिकारीयों के द्वारा कुंडाल के शिक्षकों का अटैचमेंट तो समाप्त कर दिया किन्तु उनकी जगह नए शिक्षकों की कोई भी पद स्थापना आज दिनांक तक नहीं की है, जिसके चलते 29 जुलाई से कुंडाल विद्यालय बंद पडा है। और बच्चें खेलते नजर आ रहे हैं।
जनपद अध्यक्ष का गृह ग्राम
कुंडाल पेटलावद जनपद अध्यक्ष मथुरीबाई मूलचंद्र निनामा का गृह ग्राम है और भाजपा समर्थित जनपद अध्यक्ष के गृह ग्राम में शिक्षा का स्तर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है, तो अन्य क्षेत्रों में शिक्षा और शिक्षकों की स्थिति आसानी से समझी जा सकती है। यह विचारणीय प्रश्न है वैसे भी पेटलावद विकासखंड में शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे है, लेकिन संसाधनों के नाम पर स्थिति जस के तस है।
निजी स्कूलों को फायदा
ग्रामीण क्षेत्रों में माध्यमिक और प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों और संसाधनों की कमी के चलते ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे पेटलावद की कई निजी विद्यालयों में महंगे खर्चे पर पढने को मजबूर है और इन विद्यार्थियों के अभिभावकों से निजी स्कूलों के द्वारा स्कूल बस खर्च के साथ ही साथ होस्टल के नाम पर प्रतिवर्ष हजारों रुपए ऐंठे जा रहे है। वहीं कई ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे छोटे कमरों में लगने वाले निजी स्कूल भी चांदी काट रहे है। सरकार के द्वारा शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद स्थानीय अधिकारियों व कर्मचारियों की निजी विद्यालयों के संस्थापकों से सेटिंग के चलते शासकीय स्कूल के बच्चें धीेरे धीरे निजी स्कूलों में प्रवेश ले रहे है। सरकारी स्कूल के नाम पर आने वाला बजट का अधिकारी कर्मचारी बंदरबाट कर रहे है।
करनी होगी शासन को सख्ती
शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए और ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षकों को अध्यापन हेतु बाध्य करने के लिए शासन को सख्ती बरतना होगी। जिस प्रकार से मेडिकल क्षेत्र में नवनियुक्त चिकित्सकों को अनिवार्य रूप से 2 से 3 वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं दिए जाने का बांड सरकार के द्वारा भरवाया जाता है। उसी प्रकार से शिक्षकों को भी इस प्रकार के नियमों में बांध कर शिक्षा के स्तर को उठाया जा सकता है।