नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

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मयंक विश्वकर्मा,  आम्बुआ

आम्बुआ बस स्टैंड के समीप चौहान परिवार द्वारा सांवरिया धाम में अपने पितरों के उद्धार हेतु श्राद्ध पक्ष में श्रीमद् भागवत पुराण की कथा उन्हेल से पधारे पंडित श्री शिव गुरु शर्मा द्वारा श्रवण कराई जा रही है आज कथा के चतुर्थ दिवस भागवत कथा के दौरान भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया तथा माखन मिश्री का प्रसाद वितरित किया गया।

भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पंडित श्री शर्मा जी ने बताया कि भगवान की भक्ति किसी कामना या लालच में नहीं करना चाहिए भक्ति का अर्थ है कि कुछ मिले या ना मिले फिर भी करते रहो जहां मांग होती है वहां प्रेम नहीं होता है हम जब भगवान से कुछ नहीं मांगते हैं तब भगवान स्वत: बहुत कुछ दे दे देता है संसार को शरीर से मतलब होता है जबकि भगवान को मन चाहिए भगवान के सामने झूठी  प्रतिष्ठा ना दिखाओ जो कोई तुम्हारी तारीफ करें तो समझो वह तुम्हें पतन की ओर ले जाना चाहता है इसलिए तारीफ से दूर रहो।

सुखदेव महाराज ने कहा कि सुख में सब साथ देते हैं दुख में कोई साथ नहीं देता परिवार नाते रिश्तेदार सब दूर भागते हैं जैसा कि एक हाथी जिसे परिवार पर घमंड था जब उसका पाव मगर ने पकड़ा और उसने सब से मदद मांगी पर कोई बचाने नहीं आया तब उसने तालाब में कमल का फूल तोड़ भगवान को अर्पित कर आवाज लगाई तो भगवान विष्णु जी सुदर्शन लेकर दौड़े तथा मगर का शीश काटकर उसका उद्धार किया और अपने भक्त गजराज के प्राण बचाए भगवान भक्तों के अवगुण नहीं देखता है वह भाव का भूखा होता है इस कारण उसने शबरी के झूठे बेर खाए तो विदुर के घर केले के छिलकों को खा लिया।

कथा में दुर्वासा ऋषि द्वारा इंद्र को माला देना इंद्र द्वारा वह माला हाथी के गले में डालने तथा हाथी द्वारा माला जमीन पांव से कुचलने से दुर्वासा ऋषि द्वारा इंद्र को श्री हीन होने पर श्राप देने की कथा के बाद समुद्र मंथन की मंथन से हलाहल विष निकलना तथा वह गरल विष शिवजी द्वारा पान करना तथा उनके नीलकंठ कहलाने की कथा के बाद भगवान शंकर द्वारा स्वर्ण नगरी का निर्माण तथा रावण जो कि ब्राह्मण होकर पूजा पाठ कराने आया था को स्वर्ण नगरी (लंका) ब्राह्मण दक्षिणा में देने की कथा सुनाने के बाद समुद्र मंथन में निकले अमृत को विष्णु भगवान ने मोहनी रूप धारण कर देवताओं में बांटने तथा राहु का सिर अलग करने की कथा सुनाई।

आगे पंडित श्री शर्मा जी ने वामन भगवान की कथा तथा भगवान विष्णु को द्वारपाल बनाने एवं श्री लक्ष्मी जी द्वारा राजा बलि को भाई बनाने की कथा सुनाई इसके बाद राजा परीक्षित द्वारा सुखदेव महाराज से भगवान कृष्ण की कथा सुनाने का आग्रह किया गया भगवान कृष्ण के जन्म से पूर्व भगवान श्री राम के जन्म की कथा के बाद कृष्ण भगवान का जन्म उत्सव धूमधाम से मनाया भजनों पर श्रोता जन झूमे तथा माखन मिश्री का प्रसाद वितरण किया गया।