साधन सुख नही दे सकते, सच्चा सुख तो आत्मा के भीतर है, बाहरी पदार्थो में नहीं : धर्मेन्द्रमुनिजी मसा

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झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
सुखी जीव दीक्षा लेते है कि दु:खी जो अपने को संसार में सुखी समझता है उसे दीक्षा के भाव आते ही नहीं है पर जो सुख के साधनों के बीच दु:ख का अनुभव करता है। जन्म मरण के दु:खो को जानता है और जिसको दु:ख असहाय लगे उसके मन में ही दु:ख से छुटकारा पाने हेतु दीक्षा लेने के भाव होते है वही सच्चा सुख प्राप्त कर सकता है। उक्त उद्गार प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी के आज्ञानुवर्ती संघहित चिंतक तत्वज्ञ धर्मेन्द्रमुनिजी ने मंगलवार को पौषध भवन पर नियमित चल रही धर्मसभा को संबोधित करते हुए दिए। आपने कहा कि सुख अलग है और सुख के साधन अलग है। साधन सुख नही दे सकते। सच्चा सुख तो आत्मा के भीतर है, बाहरी पदार्थो में नहीं। श्रावक के तीन मनोरथ में पहला कब में आरंभ -परिग्रह घटाऊ, सही में जो श्रावक हो तो वही उसे घटाता है। बाकी संसारी जीव तो उनको बढ़ाने में रहता है। वह श्रावक है कि नही वह भी प्रश्न है? सुख के साधन सुख नही है, सुख के साधन सुख ही देगे ऐसा नही है। दिलीपमुनिजी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि-कोई ज्योतिषि आपकी कुंडली बताकर कहे कि भविष्य में भीख मांगकर जीवन निकालने पड़े तो खुशी हो कि दु:ख? संसारी जीव को तो दु:ख लगे पर संयमी जीवन में इसका आनंद कुछ ओर है। मनुष्य भव की देव भी चाहना करते है इसी के माध्यम से ही जीव अपना आत्म उत्थान कर मोक्ष रुपी शाश्वत सुख को प्राप्त कर सकता है इसलिए मुनष्य भव में ही ऐसा सम्यक पुरुषार्थ कर सुख की प्राप्ति कर सकता है। सभी मनुष्य के लिए ऐसा सम्यक पुरुषार्थ पाना दुर्लभ है जो करे उनको धन्यवाद। सभा में उमेश चालीसा का पाठ सामूहिक रुप से हुआ। धर्मेन्द्रमुनिजी के मुखारविन्द से श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास, आयम्बिल, नीवी, एकासन, बियासन आदि विविध तप के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। सभा में बड़वाह, दाहोद, रतलाम आदि स्थानों के श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे। संचालन श्रीसंघ के सचिव प्रदीप गादिया ने किया। आतिथ्य सत्कार का लाभ मोहनलाल माणकलाल लोढ़ा परिवार ने लिया।
साध्वी मण्डल का हुआ मंगल प्रवेश-
मंगलवार को नगर में साध्वी संयमप्रभाजी संयम, प्रज्ञाजी, सुज्ञाजी आदि ठाणा-7 का पेटलावद रोड़ की तरफ से और साध्वी पुण्यशीलाजी, अनुपमशीलाजी, सुव्रताजी आदि ठाणा-13 का मेघनगर रोड़ की तरफ से मंगल प्रवेश हुआ। श्रावक-श्राविकाओं ने साध्वी मण्डल की अगवानी की। प्रवे के दौरान श्रावक-श्राविकाएं श्रमण भगवान महावीर स्वामी, आचार्य उमेशमुनिजी, प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी आदि की जय-जयकार और गुरुगुणगान करते हुए चल रहे थे। प्रवेश यात्रा स्थानक भवन पहुंची।