शासकीय स्कूल के हाल-बेहाल, निजी स्कूल संचालक मोटी फीस, यूनिफार्म-सिलेबस के नाम पर काट रहे जमकर चांदी

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हरीश पंचाल, परवलिया
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परवलिया मे नवीन शिक्षा सत्र प्रारंभ हुए एक माह बीतने को है, लगभग 700 छात्र छात्रा का प्रवेश हो चुका है लेकिन इसके विपरीत शासकीय स्कूल में अंग्रेजी, गणित व कृषि संकाय के विशेषज्ञ अध्यापक कई वर्षों से नहीं है। विषय विशेषज्ञ अध्यापकों की नियुक्ति नहीं होने से छात्र-छात्राओं की पढ़ाई नहीं हो पा रही है, जिससे उनका कॅरियर दांव पर लगा हुआ है। इसी के साथ विद्यालयो के भवन में पानी टपकता है जिससे यहा परेशानी आती छात्र-छात्राओं को आ रही है। इसी के साथ छात्र-छात्राएं एक ही स्कूल में अध्ययनरत है एवं स्कूल के कमरों में बैठने तक की व्यवस्था नहीं है जबकि बालक-बालिकाओं की स्कूलें अलग-अलग होना चाहिए। इस स्कूल में खेल मैदान का अभाव है जिससे वार्षिक खेलकूद गतिविधियां संपन्न हो पाती है। एक ओर शासन शासकीय स्कूल के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए आवंटन करती है तो वहीं शासकीय स्कूलों में पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए स्कूल चलें हम जैसी योजनाओं का संचालन भी किया जा रहा है, फिर भी शासकीय स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने से इसलिए हिचकिचा है क्योंकि स्कूलों में विषय विशेषज्ञ अध्यापक नहीं होने तथा कक्षाओं के कमरे पर्याप्त नहीं होने के साथ खेलकूद के लिए ग्राउंड तक नहीं है।
वहीं दूसरी ओर निजी स्कूलों में अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूली जाती है तो साथ ही यूनिफार्म, पाठ्यक्रम, स्कूल बस के के नाम पर आर्थिक बोझ डाला जाता है एवं निजी स्कूल संचालक जमकर चांदी काट रहे हैं। शिक्षा का निजीकरण करने के बाद निजी स्कूल संचालक अब शिक्षा को पूरी तरह से व्यापार बना चुका है और निजी स्कूलों में प्रति छात्र हजारों की फीस जमा कर, यूनिफार्म व स्कूल पाठ्यक्रम में कमीशनखोरी सरेआम की जा रही है लेकिन शिक्षा विभाग की बड़ी बिल्डिंगों में एयर कंडीशन में बैठे जिम्मेदार आला अधिकारियों को इससे कोई लेना देना नहीं है और अभिभावकों की आर्थिक परेशानियां भी उनके कानों तक न जाने क्यों नहीं पहुंंच पा रही है। अब कलेक्टर साहब इस ओर कोई ध्यान देंगे या फिर अभिभावकों की जेबों पर निजी स्कूल संचालक ऐसे ही डाका डालते रहेंगे और बेहतर पढ़ाई का विज्ञापन कर संचालक जमकर मलाई खाएंगे।
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