कष्टों का नाश कर सुख-संपदा देती है दशा माता, महिलाओं ने व्रत रख की पीपल के पेड़ की पूजा

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जीवन लाल राठोड, सारंगी 

होली के दसवें दिन हिंदू धर्म में विवाहित महिलाएं अपने परिवार की सलामती और सुखमय जीवन के लिए चैत्र कृष्ण दशमी के दिन दशामाता का व्रत रखती हैं।

सनातन धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार विवाहित महिलाएं पति और परिवार की सलामती के लिए दशा माता का व्रत धारण करती हैं। नियमानुसार इस दिन पीपल के पेड़ का सच्ची श्रद्धा से पूजन करती हैं। पूजन के बाद नल दमयंती की व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में दिए गए उल्लेख के अनुसार इस दिन झाड़ू की खरीददारी करना भी शुभ माना जाता हैं। इस दिन पीपल के वृक्ष की छाल को उतारकर घर लाया जाता है। उसे घर की अलमारी या तिजोरी में सोने के आभूषण के साथ रखा जाता है। व्रत धारण करने वाली महिलाएं एक वक्त भोजन का धारण करती हैं। खास बात यह है कि, उपवास तोड़ते समय किये जाने वाले भोजन में नमक का प्रयोग बिलकुल नहीं किया जाता हैं।

दशा माता व्रत पूजन विधि

चैत्र महीने की दशमी तिथि को हिन्दू महिलाओं द्वारा इस व्रत को रखा जाता हैं।

घर की सुहागन स्त्री मंगल कामना के लिए दशामाता व्रत रखती हैं। दशा माता पूजा में कच्चे सूत का 10 तार का डोरा, जिसमें 10 गठानें लगाते हैं, लेकर पीपल की पूजा करती हैं। उनके पास 10 बिंदियाँ बनायी जाती पूजा की सामग्री में रोली, मौली , सुपारी, चावल, दीप, नैवेद्य, धुप आदि करते है।

अब दशा माता की बेल बनायी जो एक धागे में गांठे बंधकर उन्हें हल्दी रंग में रंगकर अगले वर्ष की दशा माता के पूजन तक इसे पहनकर रखा जाता हैं जिसे पूजा के बाद उतार दिया जाता हैं। इस धागे को पहनने के बाद मानव मात्र का बुरा वक्त समाप्त होकर अच्छे समय की शुरुआत हो जाती हैं। यह व्रत आजीवन किया जाता है जिसका उद्यापन नहीं होता हैं।