चारो ओर प्यास ही प्यास; शहर को पानी की लाइन में खड़ाकर ‘नगर सरकार’ सो रही है.. कुंभकर्णी नींद

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सलमान शैख़@ पेटलावद
धार्मिक नगरी पेटलावद में इन दिनों जलसंकट गहराया हुआ है। बूंद-बूंद पानी के लिए शहरवासियों को रतजगा तक करना पड़ रहा है। शहर के किसी भी इलाके में चले जाइए, आधी रात को भी बर्तन लिए पानी के इंतजार में सैकड़ों लोग कतार लगाए खड़े नजर आ जाएंगे। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि शहरवासियों को देर रात पानी की लाइन में खड़ाकर नगर सरकार कुंभकर्णी नींद सो रही है।
पानी के लिए लड़ाई-झगड़े और हत्या जैसे कृत्य पेटलावद के इतिहास के पन्नों पर काले धब्बों की तरह दर्ज हैं। खैर, आपका इन सबसे क्या वास्ता। आपके घर पानी समय से औैर भरपूर पहुंच जाए, इसकी फिक्र करने के लिए मातहतों की फौज है। समस्या तो उन लोगों की है, जो आपको चुनते ही इसलिए हैं कि मूलभूत सुविधाओं के लिए उन्हें परेशान न होना पड़े, लेकिन उन बेचारों की समस्या सुलझना तो दूर बल्कि दोगुनी जरूर हो जाती है।
नगर में सामाजिक संगठनो द्वारा टैंकरो से जलापूति कराई जा रही है, लेकिन वह भी ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। पिछले 10 दिनो से शहर में नल नही आए है। नगरवासी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। हां, आप अपनी नाकामी छिपाने के लिए पूरी बेशर्मी के साथ इतना जरूर कर देते हैं कि बिना किसी को खबर दिए पानी की कटौती शुरू कर देते हैं। जनाब, जिसे आप बेस्ट मैनेजमेंट करार देते हैं, दरअसल वह परेशानी को कई गुना बड़ा बना देता है।
ऐसा नही है कि इससे पहले जलसंकट नगर में नही पड़ा, इससे पहले भी इस समस्या से नगर जूझ चुका है, उस समय शहर में दो दिन छोडक़र पानी सप्लाई करने का निर्णय हुआ था, लेकिन उस परिषद में पानी सप्लाई का संतुलन ऐसा बनाया गया था कि शहर को एक दिन छोड़ पानी सप्लाई होने पर भी हायतौबा नहीं मची थी।
*पीएम नरेंद्र मोदी तक कर दी नगरवासियो ने शिकायत-*
नगर में गहराते पेयजल संकट और नपं के उदासीन रवैये से परेशान नागरिको ने इसकी शिकायत पीएम नरेंद्र मोदी तक पहुंचा दी। यह शिकायत नगर के अनिल कुमार चौधरी ने की। यह मैसेज पीएम नरेंद मोदी तक पहुच चुका है। अब उनके मैसेज का इंतजार है।
*इधर..सोशल मीडिया पर उठे विरोध के स्वर-*
नपं की इस कारगुजारी पर अब सोशल मीडिया पर विरोध के स्वर उठ रहे है। नगर के जागरूक लोग अब सोशल मीडिया के माध्यम से नपं को कौस रहे है और साथ ही आगाह कर रहे है कि अगले डेढ़ माह बारिश के कोई आसार नजर नही आ रहे है, अगर ऐसे में नपं ने पानी के इंतजामात नही किए तो नगर की प्यास कैसे बुझ पाएगी। वहीं सोशल मीडिया पर कुछ पार्षद अपने वार्र्डो में स्वयंं के खर्च से टैंकरो की व्यवस्था के फोटोज डाल रहे है, यह अच्छी बात है, लेकिन बाकि बचे दूसरे वार्डो का क्या, अगर कोई पार्षद गरीब है और वह पानी की व्यवस्था नही कर सकता तो फिर उन बस्तीवालो का क्या? उन्हेंं कौन पानी देगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। इस संकट की घड़ी में सभी पार्षदो को एक होकर कार्ययोजना बनानी होगी, यूं फोटो की राजनीति न करे तो बेहतर है।
नपं प्रतिनिधि मंडल मिलेगा कलेक्टर से-
पानी की समस्या से जूझ रहे नगर को पानी दिलाने के लिए नपं का एक प्रतिनिधि मण्डल को कलेक्टर प्रबल सिपाहा से कल मिलेगा। इससे पहले नपं अधिकारी उनसे मिल चुके है। और उन्होनें पीएचई से पानी दिलाने की मांग कलेक्टर से की थी। इस पर कलेक्टर ने तत्काल दूरभाष पर पीएचई के अधिकारी को निर्देश दिए थे कि पेटलावद झाबुआ जिले का सबसे टॉप शहर है। यहां लोगो को हो रही पानी समस्या का जल्द ही निराकरण हो और माही से पानी कैसे भी करकर दिया जाए। अब देखना यह होगा कि पीएचई के इन अधिकारियो की जू रेंगती है या नही, क्योकि कई बार लिखित में और कई बार मोखिक में इन अधिकारियो से मांग की जा चुकी है, लेकिन इन अधिकारियो ने पेटलावद नगर को पानी देना मुनासीब नही समझा।
*पेयजल संकट, फिर भी जारी है निर्माण कार्य-*
एक ओर पूरा नगर भीषण पेयजल संकट से जूझ रहा है। वहीं दूसरी ओर नपं द्वारा निर्माण कार्य कराए जा रहे है। जिसमें पानी की बर्बादी की जा रही है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इन निर्माण कार्यो में ठेकेदारो द्वारा बाल मजदूरो से काम लिया जा रहा है। यही नही नपं के अलावा भी कई जगहो पर निर्माण कार्य जोरो पर है। जहां पानी का दूरूपयोग हो रहा है और जिम्मेदार है कि हाथ पर हाथ धरे बैठे है।
*वाटर सप्लाई सिस्टम की हकीकत-*
अब वाटर सप्लाई सिस्टम की हकीकत भी जान लीजिए, इस वर्ष पेटलावद में चोर बोराली का पानी खत्म होने के बाद ठिकरिया, गोविंदपाड़ा तालाब से भी पानी लाया गया, लेकिन वहां भी पानी खत्म हो गया। कई कॉलोनियों में भूजल स्रोत से पानी लिया जा रहा था। इसके बाद भी लोगों का पानी के लिए तरसना नगर परिषद के जलकार्य विभाग की कार्यक्षमता पर सवाल खड़ा करता है। इतना ही नहीं, मैदानी अमले को तो ये भी नहीं पता कि वॉल्व की चूडिय़ां कहां और कैसी होती हैं। वे तो अंदाज से ही चूडिय़ां खोल देते हैं। नतीजा, किसी क्षेत्र में भरपूर पानी पहुंचता है तो कहीं एक बूंद भी पानी नहीं आता। वहीं, लाइन बिछाते समय भौगोलिक स्थिति का ध्यान नहीं रखा गया। न ही व्यवहारिक पक्ष को देखा। इस कारण पानी को लेकर हायतौबा मची हुई है।