प्रतिज्ञाधारी धर्मक्षैत्र का सूरवीर कहलाता है: प्रवर्तकश्री जिनेंद्र मुनि

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Salman shaikh@ Petlawad
हवा में या गादी पर बैठकर हाथ पैर चलाने से तैरना नही सीखा जा सकता है। तैरना है तो पानी में उतरना ही पड़ेगा। वैसे ही यह कह देना कि मैं तो जिनेश्वर के धर्म में श्रद्धा रखता हूं कहने से काम नही चलेगा। श्रद्धा को मजबूत करने के लिए प्रतिज्ञा के बंधन में बंधना पड़ेगा तभी हमारी धर्म में श्रद्धा बढ़ेगी और मजबूत होगी।
उक्त बात प्रवर्तकश्री जिनेंद्र मुनि ने श्रद्धा और प्रतिज्ञा के महत्व को समझाते हुए कही। आपने आगे कहा धर्मक्षैेत्र में दृढ़ श्रद्धा को प्रमाणिक बनाने के लिए वितराग प्रभु ने प्रतिज्ञा का प्रावधान किया है। प्रतिज्ञा धारण करने वाला जीव जिनेश्वर के मार्ग का अनुरागी बन जाता है। प्रतिज्ञा से श्रद्धा का संकल्प दृढ़ होता है। प्रतिज्ञाबद्ध नही होने पर धर्म मार्ग का अनुरागी स्वच्छंद हो सकता है। विधि पूर्वक प्रतिज्ञा धर्मानुरागी को संस्कारवान व दृढ़ बनाती है। मंत्री पद के लिए चयन होने के बाद अगर राष्ट्रपति या राजपाल शपथ नही दिलाए तो वो मंत्री नही कहलाता है। वैसे ही धर्मानुरागी है पर प्रतिज्ञाधारी नही है तो वो न तो श्रद्धावान कहलाता है और न ही धर्मवान कहलाता है। प्रतिज्ञाधारी धर्मक्षैत्र का सूरवीर कहलाता है।
रवि मुनि ने कहा धर्म करना अच्छा है पर ऐसी धर्मक्रिया न करे, जिससे संघ समाज में निंदा के पात्र बने। पाप गलत है, ऐसा मानकर खुद तो पाप से दूर रहे, पर दूसरे को पाप करने की प्रेरणा दे, तो ऐसा लगता है कि खुद तो मोक्ष में जाना चाहता है पर दूसरो को उस मार्ग पर नही चलने देना चाहते है।
चातुर्मास का दूसरा मासखमण हुआ-
गुरूवार को चातुर्मास के दूसरे मासखमण के प्रत्याख्यान बामनिया निवासी सीमा बहन वागरेचा ने 31 उपवास लेकर लिए। उनके सम्मान में श्रीसंघ की बोली कुमारी आशु भंडारी ने धर्मचक्र की बोली लेकर किया। श्रीसंघ अध्यक्ष नरेंद्र मोदी, उपाध्यक्ष सोहन चाणोदिया, सचिव नीरज जैन, कोषाध्यक्ष अशोक मेहता, पूर्व अध्यक्ष शांतिलाल चाणोदिया, नरेंद्र कटकानी, पूर्व सचिव जितेंद्र मेहता, जितेंद्र कटकानी, वरिष्ठ अभिभाषक मणीलाल मेहता ने तपस्वी सीमा वागरेचा को श्रीसंघ की ओर से अभिनंदन पत्र भेंट किया।
निरंतर गतिमान है तपस्या का क्रम-
तपस्या का क्रम निरंतर गतिमान है। गुरूवार को श्रीमती भूमि चाणोदिया के 16 उपवास का बहुमान 16 उपवास की बोली लेकर सुश्री इंदुबाला सोलंकी ने किया। श्रीमती कुसुम वागरेचा (बामनिया) के 11 उपवास का बहुमान 5 उपवास से विजय नाहटा ने किया। श्री नाहटा के 17 उपवास की तपस्या थी, उसमें उन्होनें 5 उपवास मिलाकर प्रवर्तकश्री से 22 उपवास के प्रत्याख्यान भी ग्रहण किए। श्रीसंघ बामनिया के अध्यक्ष विमल मुथा ने सीमा वागरेचा के मासखमण की अनुमोदना की एवं बामनिया में आयोजित सम्मान समारोह में सकल श्रीसंघ को बामनिया पधारने का आमंत्रण दिया। कुमारी रूपाली गुगलिया ने तपस्वीयो के सम्मान में गीतिका पढ़ी। मोना मुरार सिद्धभक्ति तप कर रही है, जिसमें क्रमश: 1 उपवास, पारणा, 2 उपवास इस तरह 8 उपवास तक वे तपस्या करेंगी। कुल 43 दिन चलने वाली इस तपस्या में 36 दिन उपवास के रहेंगे और मात्र 7 दिन भोजन पानी के रहेंगे।