झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
शासन-प्रशासन में बैठे भ्रष्टाचारी अधिकारियों की लापरवाही के किस्से आम हो चुके है। आए दिन किसी ने किसी हितग्राही अथवा योजना में अधिकारियों द्वारा लापरवाही की खबरें आम होती रहती है। गरीब हितग्राही किसी भी योजना का लाभ लेने के लिये अधिकारियों के इतने चक्कर लगाने को मजबूर होता है कि थक हार कर शासन द्वारा चलाई जा रही योजना से मुंह फैरने लगता अथवा सिर्फ इसलिये लाभ लेने के लिये आगे नही बढ़ पता है कि लाभ लेने से पूर्व उसे परेशान किया जाएगा। अधिकारियों द्वारा की जाने वाली लापरवाही के प्रति ढूल-मूल रवैया का ही परिणाम है कि फिलवक्त प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों की हर काम में जमकर मनमानी कर रहे है और जिला तो ठीक प्रदेश स्तरीय अधिकारी तक भी कार्यवाही करने से कतरा रहे है। कुछ इसी प्रकार अधिकारियों की लापरवाही थांदला में एक व्यक्ति की जान ही चली गई, अब पीडि़त पुत्र न्याय की उम्मीद लगाए कभी जिले में तो कभी भोपाल के चक्कर काट रहा है।
ममले के अनुसार स्थानीय बस स्टैंड निवासी नटवारलाल प्रजापत को पिछले वर्ष कैंसर बीमारी की चपेट में आ गये थे। नटवरलाल का पुत्र कमलेश अपने पिता को लेकर विभिन्न महानगरों में भटकता रहा, परंतु उसके पिता को स्वास्थ्य लाभ नही मिल सका। मध्यम वर्गीय परिवार का कमलेश, जिसके उपर परिवार के पालन-पोषण का जिम्मा भी था, ने अपने पिता के इलाज में एकत्रित की पूरी रकम लगा दी, बावजूद उसके पिता के स्वस्थ होने की उम्मीद नही जाग रही थी। आर्थिक तंगी के चलते कमलेश प्रजापत विधायक कलसिंह भाबर के पास पहुंचा तथा पूरा घटनाक्रम बताया। विधायक ने भोपाल में मुख्यमंत्री से भेंटकर पूरा मामले से अवगत कराया तो मुख्यमंत्री ने भी एक पत्र झाबुआ कलेक्टर को माह दिसंबर 2015 को लिखकर बीमारी के लिये आर्थिक सहायता स्वीकृत करने के निर्देश दिए।
पटवारी की उदासीनता बनी मौत का कारण
चूंकि मामला थांदला तहसील का था इसलिए कलेक्टर ने पत्र 1 जनवरी 2016 को तहसीलदार को लिखकर निर्देशित किया कि मामले का प्रतिवेदन 8 दिवस में उपलब्ध कराए। कुछ यही कार्य तहसीलदार ने करते हुए कस्बा पटवारी विटठल शर्मा को 2 दिवस की अवधि में प्रतिवेदन उपलब्ध कराने के आदेश दिये। बावजूद उसके कस्बा पटवारी ने प्रतिवेदन समय पर उपलब्ध नही कराया। 19 जनवरी को कमलेश स्वयं कस्बा पटवारी से मिला तो पटवारी ने उससे आय-जाति संबंधी विभिन्न दस्तावेज तलब किये तथा कमलेश ने प्रकरण में जल्दी की गुहार लगाई तो पटवारी ने मुझे बहुत काम रहते है, कहकर कमलेश को रवाना कर दिया। अंतत: 21 जनवरी को रूपयों तथा इलाज के अभाव में कमलेश के पिता नटवरलाल प्रजापत ने बड़ौदा के निजी चिकित्सालय में आखरी सांस ली।
शिकायत में भी देते रहे गलत जानकारी
आर्थिक तंगी के कारण हुई नटवारलाल प्रजापत की मृत्यु के बाद कमलेश ने न्याय पाने का निर्णय लिया ताकि उसके पिता की आत्मा को शांति मिल सके, परंतु प्रशासनिक अधिकारियों ने पूरे मामले को पलीता लगा दिया। कमलेश ने जनसुनवाई तथा ऑनलाईन समाधान पर शिकायत की, परंतु न्याय तो ठीक जांच का रास्ता ही नजर नही आया, फिर कमलेश ने मुख्यमंत्री हेल्पलाईन नम्बर थांदला तहसीलदार व कस्बा पटवारी की शिकायत की, जिस पर जांच थांदला अनुविभागीय राजस्व अधिकारी के समीप आई। तत्कालीन समय एसडीओ राजस्व का प्रभार तहसीलदार के पास ही था। यही कारण रहा कि तहसीलदार ने एसडीओ राजस्व की हैसियत से पेटलावद ब्लास्ट तथा लोकसभा उपचुनाव में व्यस्तता का बहाना बनाकर जांच रफादफा करने की भरपूर कोशिश की परंतु कमलेश जो शिकायतकर्ता था, ने पेटलावद ब्लास्ट सितंबर में हुआ था तथा लोकसभा उपचुनाव नवंबर में सम्पन्न हुए थे, जवाब के साथ जांच से असंतुष्टि व्यक्त की। तत्पश्चात जांच कलेक्टर के पास पहुंची तो कलेक्टर ने बजाय ईमानदारी से जांच करने के तहसीलदार द्वारा दिये गये जवाब को भी सत्य मानकर भेज दिया। पुन: असुंष्टि व्यक्त करने पर जांच संभाग स्तरीय अधिकारियों के पास पहुंची, परंतु शिकायत का हश्र वही हुआ जो जिले में हुआ था। एक बार पुन: जांच उच्चाधिकारियों से कराने की मांग पर अब प्रदेश स्तरीय अधिकारी जांच कर रहे, जो 3 माह बीत जाने के बाद भी लंबित है।
जनसुनवाई में की गलत जवाब देने की शिकायत
कमलेश ने यही हार नही मानी। पीडि़त एक बार पुन: जनसुनवाई में पहुंचा तथा अधिकारियों द्वारा बनाई गई बहानेबाजी से कलेक्टर को अवगत कराया, परंतु जनसुनवाई में अन्य मामलो की तरह ही पीडि़त कमलेश की शिकायत भी रद्दी की टोकरी में डाल दी गई।
लापरवाही प्रशासनिक अधिकारियों से थक हार कर एक बार पुन: कमलेश ने विधायक की शरण ली, जिस पर विधायक ने पूरे मामले से मुख्यमंत्री को अवगत कराने का आश्वासन दिया तथा एसडीओ राजस्व से भी जांच प्रतिवेदन तलब किया, जिसके आधार पर स्वयं मुख्यमंत्री के समक्ष उपस्थित होकर दोषियों को सजा तथा पीडि़त को न्याय दिलाने की हर संभव का भरोसा दिया।
इनका कहना है
मेरे द्वारा स्वयं मुख्यमंत्री से आर्थिक सहायता स्वीकृत करने का निवेदन किया गया था, परंतु प्रशासनिक अधिकारियों ने लेटलतीफी तथा लापरवाही की, जिसके कारण बीमारीग्रस्त नटवरलाल प्रजापत की मृत्यु हुई है। मृतक के पुत्र ने शिकायत की थी, जिसकी गलत जानकारी जांचकर्ताओं उर्फ दोषियों ने दी है, पेटलावद ब्लास्ट सितंबर में हुआ था तथा लोकसभा उपचुनाव में भी नवंबर में सम्पन्न हो चुका था, जबकि मुख्यमंत्री ने माह दिसंबर में आर्थिक सहायता स्वीकृत करने के निर्देश कलेक्टर को दिये थे। शिकायत की जांच दोषियों ने ही की तथा जिले के अधिकारियों ने भी उसे सत्य माना है। पीडि़त एक बार पुन: मुझसे न्याय की उम्मीद लिये आया है। फिलहाल मैने अधिकारियों से बात कर ईमानदारी से जांच करने के निर्देश दिये है। यदि अब भी जांच में गुमराह किया तो एक बार पुन: भोपाल जाकर मुख्यमंत्री से इस मामले में भेंट करूंगा तथा दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाउंगा। -कलसिंह भाबर, विधायक
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