त्याग ही आत्मा का धर्म है

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ranapurराणापुरः दसलक्षण पर्व पर मदिंरो मे भक्ति की गंगा बह रही है। पुरा नगर धर्म की गंगा के डुबकी लगा रहा है। पयुर्षण पर्व के आठवे दिन तत्वाथ सुत्र के आठवे अध्याय का वाचन किया गया जिसमे बंध तत्व के बारे मे पंडीतजी ने बताया की मिथ्या दर्शन,अविरति,प्रमाद,कषाय एवं योग बंध के कारण है।कर्म आठ होते है ज्ञानवरण,दर्शनावरण,वेदनीय,मोहनीय,आयु,नाम,गोत्र और अंतराय ।इन आठो कर्म के क्रम से पाच, नौ ,दो,अट्ठाईस ,चार ,बयालीस, दो और पाच भेद है।कर्मो की उत्क्रष्ट एवं जघन्य स्थिती का विवेचन किया मोहनीय कर्म की सर्वाधिक स्थिती सत्तर कोडा कोडी सागर होती है। इसके पुर्व कल सायं पंडितजी का प्रवचन उत्तम तप धर्म पर हुआ।तप धारण करने से हि कर्मो की निर्जरा होती है। दिगंबर महामुनीराज छरूप्रकार के अंतरंग एवं छरूप्रकार के बाह्य इन बारह प्रकार के तपो को नित्य धारण करते है। अनशन, अवमोदर्य, वृतीपरिसंख्यान, रस त्याग, विविक्त शय्यासन एवं काय क्लेश बाह्य तप है। प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य,स्वाध्याय, व्युत्सर्ग एवं ध्यान अंतरंग तप है। ध्यान रुपी अग्नी से ही कर्मो का नाश हो कर मोक्ष की प्राप्ती हो सकती है। श्रावको को भी स्वाध्याय, ध्यान, एकासन,उपवास तपो का अभ्यास करना चाहिये क्योकी स्वाध्याय करने से मन एकाग्रचित्त होता है उपवास आदी से इन्द्रिय विषयो से विरक्ति होती है। मनुष्य योनी प्राप्त हुई हे तो सभी को तप का अभ्यास अवश्य करना चाहिये ,बिना तप संयम के यह नर जन्म पशु समान है। श्रीजी का अभिषेक शांतिधारा तत्वार्थ सुत्र मोक्ष शास्त्र का वाचन पश्चात नित्य पुजन उत्तम त्याग धर्म पुजन,रत्नत्रय धर्म पूजन, जिनवाणी माता पुजन, दसलक्षण विधान पुजन तत्वार्थ सुत्र विधान पुजन की गई। आज की उत्तम त्याग धर्म की पुजा का लाभ कंचनधन परीवार, एंव विनोद कुंन्तीलाल अग्रवाल ने प्राप्त किया।