तत्वार्थ सूत्र के आठवे अध्याय को समझाया

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झाबुआ लाइव के लिए राणापुर से एमके गोयल की रिपोर्ट ।

भगवान का अभिषेक हुआ समाजजन
भगवान का अभिषेक हुआ समाजजन

दसलक्षण पर्व के नवमे दिन मदिंर जी मे श्रीजी का अभिषेक शांतिधारा तत्वार्थ सूत्र मोक्ष शास्त्र का वाचन पश्चात नित्य पूजन उत्तम आकिञ्चन धर्म पूजन, तत्वार्थ सूत्र पूजन, दसलक्षण विधान पूजन सायं सामायिक, प्रवचन आरती एवं भक्ती आज की उत्तम आकिञ्चन धर्म की पुजा का लाभ प्रकाशचंद डोसी, सागारमल मियाचंद परिवार ने प्राप्त किया। तत्वार्थ सूत्र के नवमे अध्याय मे संवर एवं निर्जरा तत्व के बारे मे पंडितजी ने कहा आस्रव को अर्थात कर्मो के आने को रोकना संवर हे व कर्मो का नाश करना निर्जरा है। निर्जरा दो प्रकार की होती है जो कर्म अपने आप फल देकर नष्ट हो जाते हे वह सविपाक निर्जरा होती हे यह सभी जीवो को होती हे एवं जिन कर्मो को तप ,ध्यान आदि द्वारा नष्ट किया जाता है वह अविपाक निर्जरा है।यह निर्जरा मन, वचन,काय तिन गुप्ति, ईर्या भाषा आदि पाच समिति, उत्तम क्षमा आदि दस धर्म ,अनित्य अशरण आदि बारह अनुप्रेक्षा, क्षुधा, तृषा आदि बाईस परीशहजय एवं पाच प्रकार के चारित्र से होती है।योग को निग्रह करना गुप्ति है।बारह प्रकार के तप का विस्तृत वर्णन किया। आर्त्त, रोद्र, धर्म और शुक्ल ध्यान के चार भेद है इनमे धर्म एवं शुक्ल ध्यान मोक्ष के हेतु है। इसके पूर्व कल सायं पंडितजी का प्रवचन उत्तम त्याग धर्म पर हुआ।उन्होने कहा की श्रावको को त्याग की भावना होनी चाहिए ,ये त्याग श्रावको को चार दान रुप करते रहना चाहिये । शास्त्रो मे अभयदान,शास्त्रदान, औषधदान एवं आहारदान के बारे मे बताया गया है ।चारो प्रकार के दानो के बारे मे कोन प्रसिद्ध हुआ उनकी कथा बताकर कर कहा की हमे यथा शक्ति दान त्याग करना चाहिये।