महामानव बिरसा मुंडा से प्रेरणा लेकर गाँधीजी ने अपने सूट बूट एवं वस्त्र त्यागे थे आकास जिलाध्यक्ष-भंगुसिंह तोमर

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आलीराजपुर। आदिवासी कर्मचारी-अधिकारी संगठन (आकास) के द्वारा क्रांतिकारी महामानव धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती आकास कार्यलय स्वामी विवेकानंद कॉलोनी में मनाई गई। समाज की उम्र दराज एवं वरिष्ठ नारी शक्ति मुचरी बाई सोलंकी ग्राम अठावा,मिश्रा कोचिंग क्लास की डायरेक्टर सुषमा मिश्रा,आकास नारी शक्ति गुलाबी तोमर एवं जमना सोलंकी के द्वारा सर्वप्रथम पूजापाठ कर कार्यक्रम की सुरुआत की गई।

सभी पदाधिकारियों ने बिरसा मुंडा जी की तश्वीर पर माल्यार्पण कर उनके मार्ग पर चलकर समाज हित के कार्य करने का संकल्प लिया गया है।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुषमा मिश्रा ने कहा कि महामानव बिरसा मुंडा वह क्रांतिकारी एवं सभी समाज के लिए प्रेरणा थे।उनका जन्म गुरुवार के दिन जन्म होने के कारण आदिवासी समाज की परम्परा अनुसार बिरसा मुंडा नाम रखा गया था। आकास जिलाध्यक्ष भंगुसिंह तोमर ने कहा कि क्रांतिकारी महानायक बिरसा मुंडा ने विदेशी दासता की जंजीरों से मुक्ति के लिए उरांव,मुंडा और खड़िया आदिवासी समुदाय को साथ लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा कर उलगुनान शुरू किया गया था। बिरसा मुंडा के माता पिता की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी गरीबी के कारण बिरसा मुंडा को पावर (अनुबंधित मजदूर ) के रूप में उन्हें उसके मामा घर गाय बेलों की गवली के लिए भेज दिया गया था। उन्हें बांसुरी बजाने का बहुत लगाव था,शाम सुबह बांसुरी बजाने में ही लगा रहता था जिसके कारण उन्हें बहुत डांट फटकार भी पड़ती थी।जिसके कारण तंग होकर वह मामा घर से वापस अपने गांव आ गया उसके बाद उन्हें पिता ने साल्गा गांव की पाठशाला में भर्ती करा दिया जहां उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा पास की थी, उसके बाद चाईबासा के लूथरन मिशन स्कूल में पढ़ने के लिए प्रदेश दिलाया गया था।मिशन स्कूल में जाने के बाद देखा कि अंग्रेज लोग आदिवासी, दलितों का शोषण,अत्याचार कारनामों को करीब से देखा,ये सब उन्हें देखा नही गया और बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाप टिका टिप्पणी करना प्रारंभ कर दिया।स्कूल प्रबंधकों को बिरसा मुंडा के आचरण से तखलिप होने लगी।उस पर बहुत दबाव डालने लगे,परन्तु बिरसा मुंडा के खून में देश हित एवं  समाज सेवा की क्रांति दौड़ रही थी। उन्हें स्कूल दे निकाल दिया गया।उसकी पढ़ाई छूट गई।उसके बाद उसका जीवन ही बदल गया और गांव में पीड़ित लोगों की सेवा में जुट गया।वे बीमार व्यक्तियों जड़ी-बूटीयों के माध्यम से उपचार करने लगे ओर बीमार लोगों की भीड़ लगने लग गई।दूर-दूर के गांवों लोग भी ईलाज के लिए आने लगे।लोगों को विश्वास हो गया था कि वह कोई सामान्य बालक नही है। तोमर ने कहा कि गांधी जी ने बिरसा मुंडा से प्रेरणा लेकर सूट बूट एवं वस्त्र त्यागे थे।

आकास जिला उपाध्यक्ष बहादुर सिंह रावत ने कहा कि एक बार गांव में चेचक की बीमारी फेल गई है। बिरसा मुंडा की वजह से औझाओं की दुकान बंद हो गई।उन्होंने गांव में अफवाह फैलाई की बिरसा मुंडा झाड़ू फूक करता है इसलिये गांव में चेचक की बीमारी आ गई है ग्रामवासियों को कहा गया कि बिरसा को गांव में नही आने देना हैं। ग्रामवासियों ने भी वैसा ही किया।परन्तु उसके बाद भी चेचक की बीमारी और ज्यादा फैलती ही जा रही थी।तब गांव वालों ने बिरसा मुंडा को गांव आकर इलाज करने के लिए निवेदन किया गया,वह गांव  आ गये लोगों को ईलाज के साथ ही स्वास्थ्य के लिए नियम बताये ओर उपदेशक के रूप में कार्य किया गया है, जिससें लोगों ने अवतारी पुरुष के रूप में मानने लगे ओर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के नाम जानने लगे।

महासचिव (प्रशासक) सुरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि बिरसा मुंडा ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ गांव- गांव में घूम कर नेतृत्व करते हुए ग्रामीणों को एकजुट कर आंदोलन के लिए प्रेरित करने लगे करवा बढ़ता गया ,जिसकी भनक अंग्रेजों को लग गई।तत्कालिक डिप्टी कमिश्नर ने बिरसा मुंडा को उपस्थित होने का आदेश जारी किया गया परन्तु बिरसा मुंडा ने आदेश ठुकराते हुये अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा गया। उसके बाद जिला पुलिस अधीक्षक को बिरसा मुंडा को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई।उसे रात मेंदल बल के साथ जाकर  गिरफ्तार कर रांची जेल में डाल दिया गया।दो वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई।सजा पूरी होने पर उन्हें चेतावनी के साथ छोड़ा गया कि वे पूर्णतः शांति से जीवन यापन करेंगे। परन्तु देश प्रेम से ओत प्रोत उन्होंने अंग्रेज शासन के विरुद्ध पुनः उलगुनान चालू कर दिया उसके साथ सभी समाज जनों के साथ दिया समाजिक जागरण को स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी गई।इंग्लैड तक ये खबर पहुच गई।जल जंगल की लड़ाई लड़ी गई।बिरसा मुंडा के विरुद्ध वारंट निकला गया। पुनः गिरिफ्तारी के लिए पुलिस को लगाई गई।परन्तु वह पकड़ में नही आ रहा था। बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करने के लिए एक बड़ा ईनाम घोषित किया गया। सेनाओं को लगया गया। ईनाम के लालच में कुछ लोगों ने मिलकर सोते हुए बिरसा को जाकर पकड़वा दिया गया।उन्हें डिप्टी कमिश्नर को सौंप दिया गया।उनका स्वतंत्रता का लक्ष्य अधूरा रह गया परन्तु उन्होंने समाज में स्वाधीनता की चेतना जगा दी थी।वह निरंतर जारी रही।बिरसा मुंडा रिहा होने वाले थे परन्तु उन्हें हल्का सा महसूश होने वाले जहर भोजन में दिया गया था।जिस दिन बिरसा मुंडा अदालत में पेश किया गया। अदालत में ही उसकी तबियत अचानक खराब हो गया ओर क्रांतिकारी महानायक का  निधन हो गया।सरकार को पता था कि बिरसा मुंडा की मृत्यु की खबर से उपद्रव होने का डर था जिसके कारण उन्होंने उनका दाह-संस्कार  गोपनीय रूप से कर दिया गया था।जिसके बाद बिरसा मुंडा लोक देवता बन गए और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका नाम अमर हो गया।कार्यक्रम को नितेश अलावा, केरमसिंह चौहान, रमेश डावर आदि ने संबोधित किया। संचालन आकास कार्यकारी अध्यक्ष केरम जमरा एवं आभार कोषाध्यक्ष रतन सिंह रावत ने माना।इस अवसर आकास मीडिया प्रभारी रोहित पडियार,अमित सोलंकी,श्वेता तोमर,मेहुल बामनिया, दिनेश चौहान,आरती सोलंकी एवं संगठन के सक्रिय सदस्य उपस्थित थे।