राजधानी भोपाल पहुंची सोंडवा की टुटलदेवी की ख्याति; जनजाति संग्रहालय मे मिला स्थान और सम्मान

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योंगेंद्र राठौड़ @ सोंडवा

म.प्र. की राजधानी भोपाल जिसे झीलो का शहर और राजा भोज की नगरी भी कहा जाता है । वहा पर म.प्र सरकार ने एक संग्रहालय बनवाया है ।नाम है “म.प्र जनजातीय संग्रहालय” आप सोच रहे होंगे कि इसमे ऐसा क्या जो यहा पर इसकी चर्चा हो रही है। हम यह इसलिए बता रहे है कि इस संग्रहालय मे अलिराजपुर जिला मुख्यालय से मात्र 25 km दुर बसे तहसील मुख्यालय सोंडवा मे आदिवासी समाज की देवी “टटल देवी” का एक अति प्राचीन मंदिर स्थापित है। जिसकी प्रतिकृत को इस संग्रहालय मे बनवा कर रखा गया है । जो इस आदिवासी क्षेत्र के लिए बडी गर्व की बात है । हमारे आदिवासी अंचल कि इस विरासत को देश विदेश के लोग आकर इस संग्रहालय मे देख सकेंगे। और इसके गौरवशाली इतिहास को पढ सकेंगे ।इस जगह पर इस मंदिर का समग्र इतिहास भी लिखा गया है ।तथा जिन सिल्पकारो ने इस मंदिर की प्रतिकृति को बनाया है उनका भी नाम दर्ज किया गया है ।

अगर आप भी जाओ भोपाल तो यह है संग्रहालय तक जाने का पता

Shyamla hills rd near state museum Shyamla hills bhopal m.p 462002

यह है इस मंदिर को लेकर इस आदिवासी क्षेत्र की मान्यता

रियासत काल से स्थापित है मंदिर

राजा महाराजाओं के जमाने भले चले गए हो पर उनके समय में स्थापित मान्यताएं अभी भी कायम है। यह मंदिर इस बात का जीवंत उदाहरण है। हां, यह जरुर है कि आधुनिक जमाने मे जमाने के साथ मंदिर को सीमेंट की दीवारे जरुर मिल गई है। पर आज भी आस्था इस मंदिर पर कम नहीं हुई है।

रोचक है मंदिर के नामकरण कि कहानी भी

स्थानीय किंवदंति है कि माता की बडी मूर्ति के पास विराजित छोटी माता की मूर्ति का शिश किसी समय खंडित हो गया था तब ही से माता के मंदिर का नामकरण ‘टूटन देवी’ हो गया। पर यहां कि बोलचाल की भाषा मे इसे ‘टोटन देवी’ कहां जाने लगा है। इसे आप अंग्रेजी में ‘फ्रैक्चर देवी’ शब्द से भी इनके नाम का अर्थ समझ सकते है।

हाथ-पैर टूटने (फ्रैक्चर) ठीक होने की आशा लेकर आते हैं भक्त

इस माता मंदिर पर भक्त अपने टूटे अंगों को पुन: ठीक करने कि आस लेकर आते है। यहां मान्यता है कि शरीर के अंग हाथ या पैर मे फेक्चर हो जाने पर जो भी भक्त यहां मन्नत मांगता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

मन्नत पूरी होने पर चढ़ाना होता है लकड़ी से बने अंग की प्रतिकृति का चढ़ावा।

इस मंदिर की यह खासियत है कि यहां इच्छा पूरी होने पर आपको उस अंग की लकड़ी की बनी प्रतिकृति बनवा कर चढ़ाना होता है। जिसे ठीक होने की आशा लेकर भक्त माता के दरबार मे आता है।

कैसे पहुंचे मंदिर तक-

यहां पहुंचने के दोनों छोर से मार्ग उपलब्ध है। पहला जिला मुख्यालय अलीराजपुर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी तय कर व्हाया उमराली होते हुए आपको सोंडवा पहुंचना होगा तथा दूसरा मार्ग धार जिले के कुक्षी से व्हाया डही-वालपुर होते हुए आप सोंडवा तहसील मुख्यालय पर पहुंच सकते है। इसके पश्चात सोंडवा बस स्टैंड क्षैत्र से मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सोंडवा पुलिस थाने के सामने से साकडी-उमरठ रोड पर टर्न मारकर करीब 1 किलोमीटर का रास्ता तय कर कुकडिय़ा फाटे तक पहुंचना होगा। यहां आपको यह मंदिर दिखाई देगा। मंदिर मे स्थाई तोर पर कोई पुजारी नहीं है, पर स्थानीय परंपरा के अनुसार जो गांव का पुजारा होता है। वही इस मंदिर के सारे रीति रिवाजों का निर्वहन करता है।

इन दोनों दिनों उमड़ते हैं भक्त
वैसे तो प्रत्येक दिन मंदिर मे भक्त आपको दिख ही जाएंगे, पर गुरुवार व रविवार को अन्य दिनों की तुलना में अधिक संख्या मे भक्त उमड़ते है।
दूर-दूर से आते है श्रद्धालु
मंदिर की ख्याति सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नही है अपितु पूरे संभाग सहित आसपास के राज्यों गुजरात व महाराष्ट्र में भी इसकी ख्याति फैली हुई है, यहां तक की बडे शहरो से भी श्रद्धालु यहां आते है।