आचार्य उमेशमुनिजी की 86वीं जन्म जयंती तप-त्याग कर मनाई

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थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
आचार्य श्री उमेशमुनिजी की 86वीं जन्म जयंती प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी निखिलशीलाजी, दिव्यशीलाजी, प्रियशीलाजी, दीप्तीजी ठाणा-4 के पावन सानिध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा जप-तप-त्याग-तपस्या और विभिन्न धार्मिक आराधना के साथ उत्साहपूर्वक मनाई। इस अवसर पर तीन दिन तक विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए जिसमें बड़ी संख्या मे श्रावक-श्राविकओं और बालक-बालिकाओं ने भाग लिया। पौषध भवन पर आयोजित गुणानुवाद सभा को संबोधित करते हुए साध्वी निखिलशीलाजी ने कहा कि सूर्य का उदय होता है तब प्रकृति ही नही, अपितु समस्त जगत प्रफुल्लित हो जाता है, गुलाब किसी डाली पर खिलता है तो उसकी महक एक डाली पर ही नही अपितु समस्त मधुवन उसकी महक से सुरभित हो जाता है इसी प्रकार से जब किसी असाधारण विभूति का जन्म जब इस धरातल पर होता है तब कोई एक गांव नगर ही नही अपितु समस्त विष्व उसके गुणों की महक से महक उठता है। पूज्य आचार्य श्रीजी आज सदेह हमारे बीच नही है पर उनकी उच्च कोटि की साधना हमारे मानस पटल पर जमा है। वे स्व-पर प्रकाशक सूर्य के समान थे स्वयं आत्मगुणों को प्रकाशित किया एवं चतुर्विध संघ के गुणों को भी प्रकाषित किया। साध्वीजी नेे कहा कि- आपका आचरण आगम सम्मत था वे सागर के समान गंभीर थे। जैसे सागर में सैकड़ों नदियां आकर गिरती है फिर भी सागर गर्वोन्नत नही होता इसी प्रकार आपकी चरण-शरण में भी सैकड़ों महाव्रती बने, अणुव्रती बने परन्तु अहंकार नही आया। साध्वी प्रियशीलाजी ने कहा कि आचार्य उमेशमुनिजी जिन्होनें थांदला नगरी में जन्म पाया वास्तव में उनके जन्म से थांदला भूमि धन्य हो गयी। घोड़ावत कुल भी धन्य हो गया जहां आपका जन्म हुआ ऐसे ही आपने जिनषासन में प्रवेष किया तो जिनषासन भी धन्य हो गया आपने जन्म से ही माता से संस्कार पाये। शुरु से संस्कार उत्तम प्राप्त हुए। उन्हे कब वैराग्य आ गया स्वयं उन्हे भी पता नही। उन्होने जिस श्रद्धा से संयम को ग्रहण किया वह श्रद्धा अंत तक बनी रही। बिना सम्यक श्रद्धा से जीव मुक्ति को प्राप्त नही कर सकता। मोक्ष मार्ग के लिए सबसे पहले आवष्यक है सम्यक श्रद्धा। आचार्यश्रीजी को देव, गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा थी। श्रद्धा से सारे काम हो जाते है। आप आगम के विरुद्ध कभी नही गए। आपने कहा कि आचार्यश्री स्वयं भी श्रद्धावान थे और आने वाले को भी धर्म के प्रति श्रद्धावान बनाते। धर्म की शरण में जो जीव जाता है उसे परम सुख प्राप्त होता है। धर्म जीव को भव-भव में सुख देने वाला है। साध्वी निखिलषीलाजी के मुखारविन्द से बड़ी संख्या मे श्रावक-श्राविकाओं ने 86 दिन के लिये विविध त्याग प्रत्याख्यान ग्रहण किये। साध्वी दीप्तीजी ने स्तवन प्रस्तुत किया । अणु आराधना मण्डल ने सामूहिक स्तवन प्रस्तुत किया। सभी में श्रावक-श्राविकओं सामूहिक रुप से श्री उमेष चालीस का पाठ किया। संचालन श्रीसंघ के सचिव प्रदीप गादिया ने किया।
सामूहिक उपवास की तपस्या
86वीं जन्म जयंती के प्रसंग पर तीन दिन तक चले कार्यक्रम प्रथम दिन श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक पोरसी तप की तपाराधना की। द्वितीय दिन एक घंटे तक उमेष चालीसा के जाप हुए। जन्म दिवस व पक्खी पर्व पर 85 से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक उपवास तप की तपस्या की। कई तपाराधकों ने आयम्बिल, नीवीं, एकासन, बियासन आदि विविध तपाराधना की। दोपहर को नवकार महामंत्र के जाप भी हुए। उमेश चालीसा पर आधारित परीक्षा हुई। शाम को पक्खी प्रतिक्रमण में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया।
तेले तप की समस्या
जन्म जयंती के प्रसंग पर पूज्य श्री धर्मदास जैन स्वाध्याय संघ थांदला के युवा स्वाध्यायी वीरेन्द्र इन्दरमल मेहता ने तेला तीन उपवास की तपस्या की।
सामूहिक पारणे हुए
जन्म जयंती और पक्खी पर्व के प्रसंग पर हुए सामूहिक उपवास आदि विविध तपाराधना करने वाले समस्त तपाराधकों के सामूहिक पारणे षुक्रवार को स्थानीय महावीर भवन पर हुए। सामूहिक पारणे करवाने का लाभ कृष्णकांत सौरभ जैन (लोढ़ा) परिवार ने लिया। पारणे के पूर्व लाभार्थी परिवार के आवास पर नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप हुए।