थांदला के युवा मुमुक्षु प्रियांश लोढ़ा करेंगे जैन भगवती दीक्षा अंगीकार

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थांदला। जैन भगवती दीक्षा अंगीकार करना कोई सरल कार्य नहीं है। पर जिसे संसार असार लगता है और जो वीर होता है, वास्तव में वही संयम पथ पर आरूढ़ होता है। धर्म नगरी पावन भूमि थांदला से पूर्व में भी कई महात्माओं ने संयम की ओर प्रस्थान किया है। जैन धर्म में यहां से आचार्य प्रवरश्री जवाहरलालजी एवं जिनशासन गौरव आचार्य प्रवरश्री उमेशमुनिजी सहित अब तक 32 आत्माओं ने दीक्षा लेकर जिनशासन को दिपाया है। इसी कड़ी में थांदला से एक और नाम 26 वर्षीय मुमुक्षु प्रियांश लोढा़ के रूप में जुड़ जाएगा। मुमुक्षु प्रियांश लंबे समय से श्री धर्मदास जैन स्वाध्याय संघ थांदला से जुड़कर स्वाध्यायी के रूप में अपनी अमूल्य सेवाएं दे रहे है।

मुमुक्षु की दीक्षा का आज्ञा पत्र सौंपा

नगर के धर्मनिष्ठ लोढा़ परिवार के लाड़ले मुमुक्षु प्रियांश लोढा़ की दीक्षा का आज्ञा पत्र सौंपने के लिए मुमुक्षु की दादी बसंती देवी अमृतलाल लोढा़, माता-पिता आशुका-कमलेश लोढा़ सहित परिजन व श्री संघ के श्रावक श्राविकाएं, नवयुवक मंडल, श्राविका मंडल, बालिका मंडल सहित बड़ी संख्या में 18 नवंबर को कुशलगढ़ पहुंचे। वहां विराजित आचार्य प्रवर पूज्य गुरुदेवश्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तकश्री जिनेन्द्रमुनिजी, स्वाध्याय प्रेमीश्री सुहासमुनिजी आदि ठाणा के दर्शन, वंदन, मांगलिक, व्याख्यान आदि का लाभ लिया। कुशलगढ़ जैन स्थानक भवन में आयोजित धर्मसभा में प्रवर्तकश्रीजी व मुनिश्री ने व्याख्यान फरमाए। इस मौके पर प्रवर्तकश्री के चरणों में मुमुक्षु की दादी बसंती देवी लोढा़, माता-पिता आशुका-कमलेश लोढ़ा, बड़े पिता-माता राजेंद्र-मधुबाला लोढ़ा व स्वजनों ने मुमुक्षु प्रियांश लोढा़ की दीक्षा का आज्ञा पत्र सौपकर दीक्षा की सहर्ष अनुमति दी। इस दौरान धर्मसभा जयकारों से गूंज उठी। दीक्षा का आज्ञा पत्र होने से थांदला श्रीसंघ ही नहीं अपितु धर्मदास गण एवं समूचे जैन समाज में हर्ष की लहर दौड़ गई है।

मुमुक्षुओं की जयकार यात्रा निकाली

थांदला श्रीसंघ के सचिव प्रदीप गादिया एवं नव युवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा ने बताया कि परिजनों द्वारा दीक्षा का आज्ञा पत्र सोपने के बाद कुशलगढ़ श्रीसंघ ने अपना उत्साह प्रदर्शित करते हुए मुमुक्षु की जोरदार उत्साह को छलकाते हुए गर्मजोशी के साथ जयकार यात्रा निकाली। मुमुक्षु द्वय प्रियांश लोढ़ा व प्रांशुक कांठेड़ को नवयुवक कंधे पर उठाकर चल रहे थे। इस समय समूचा नगर भगवान महावीर स्वामी, आचार्यश्रीजी, प्रवर्तकश्रीजी, मुमुक्षु के जयकारों से गुंजायमान हो गया। इस अवसर पर मुमुक्षु प्रियांश लोढ़ा ने विचार व्यक्त कर अपने दादी, माता, पिता व स्वजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। वहीं हाटपिपलिया के मुमुक्षु प्रांशुक कांठेड़ इनके पिता राकेश कांठेड़, अभा श्री धर्मदास गण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनीत वागरेचा, अभा श्रीधर्मदास स्थानकवासी जैन युवा संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज मूणत, कुशलगढ़ श्रीसंघ अध्यक्ष रजनीकांत खाबिया, थांदला श्रीसंघ अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत, स्वाध्यायी वीरेंद्र मेहता ने विचार रखे। मुमुक्षु के भाई भव्य लोढ़ा ने दीक्षा आज्ञा पत्र का वाचन किया। कुशलगढ़ श्रीसंघ की ओर से मुमुक्षु प्रियांश लोढ़ा, दादी व माता पिता का बहुमान किया गया। श्वेतांबर मूर्ति पूजक जैन श्रीसंघ ने दोनों मुमुक्षु भाईयों का एवं उमेश मित्र मंडल ने मुमुक्षु प्रियांश का बहुमान किया। इस अवसर धर्मदास गण परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री राजेंद्र गादिया सहित थांदला, हाटपीपलिया, मेघनगर, खाचरौद, पेटलावद, नागदा जंक्शन, खवासा, झाबुआ, दाहोद, लिमड़ी, रतलाम, बांसवाड़ा आदि श्रीसंघ के श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।

26 दिसंबर को हाटपिपलिया में मामा भुआ के लड़के होंगे दीक्षित
प्रवर्तकश्री के मुखारविंद से एक माह में तीन दीक्षाएं होगी

गौरतलब है कि द्रव, क्षेत्र, काल, भाव आदि का आगार रखते हुए प्रवर्तकश्रीजी की पूर्व स्वीकृति अनुसार 4 दिसंबर को नागदा (धार) में मुमुक्षु अचल श्रीश्रीमाल की दीक्षा होगी। उधर 26 दिसंबर को हाटपिपलिया में वहीं के दीक्षार्थी प्रांशुक कांठेड़ की दीक्षा होगी। प्रवर्तकश्रीजी ने इसी दिन 26 दिसंबर को ही थांदला के उक्त मुमुक्षु प्रियांश लोढ़ा को भी दीक्षा प्रदान करने की घोषणा कर मुमुक्षु में संयम पथ की ओर बढ़ने के उत्साह का अनेक गुना संचार कर दिया। गौर करने वाली बात तो यह है कि हाटपिपलिया के मुमुक्षु प्रांशुक थांदला के मुमुक्षु प्रियांश की बुआ के लड़के है। यानी कि दोनों मुमुक्षु आपस में मामा भुआ के लड़के है।

और… “प्रियांश” सांसारिक सुख सुविधाओं को छोड़कर बनेंगे जैन मुनि

एक ओर आज का युवा भौतिक साधनों की चकाचौंध में उलझकर येन केन प्रकरेण अधिक से अधिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करने में जुटा हुआ है, वहीं नगर के शिक्षित युवा प्रियांश ने गुरु उमेश व गुरु जिनेन्द्र के सानिध्य में रहकर जैन धर्म के मर्म को समझा व भगवान की जिनवाणी को जीवन में आत्मसात करके दीक्षा अंगीकार करने का दृढ़ संकल्प लिया। संसार के सारे भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग करके संयम की कठिन डगर पर निकल पड़ने की आतुरता को देख प्रियांश की दीक्षा की स्वीकृति के पश्चात शीघ्र ही दीक्षा भी हो जाएगी। दीक्षा के पश्चात प्रियांश “जैन मुनि” बनेंगे और संसार की विरक्ति को छोड़कर जिनशासन के कठिन मार्ग पर चलकर अपनी आत्मा का उत्थान कर सैकड़ों भविजनो को बोध देकर उन्हें भी संयम जीवन ग्रहण करने की प्रेरणा देंगे। जैन दीक्षा ग्रहण करने के बाद मुनिजन संसार की समस्त भौतिक सुविधाओं का त्याग कर देते है। कभी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म हिंसा नहीं करते, कभी झूठ नहीं बोलते, बिना पूछे, बिना आज्ञा के सुक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओं का उपयोग नहीं करते, ब्रह्मचर्य का पूर्णतः पालन करते है। किसी भी तरह का कोई परिग्रह (धन, संपति आदि) अपने पास नहीं रखते है। हजारों किमी चलना हो तो सदैव पैदल ही विहार करते है। क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग करके अपने जीवन में शक्ति अनुसार अनेक तपस्याओं के माध्यम से अपनी आत्मा को तपाकर मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करने का पुरुषार्थ करते है।

सामूहिक एकासन तपाराधना हुई

इस सुनहरे प्रसंग पर सामूहिक एकासन तपाराधना का आयोजन हुआ। इसमें कई तपाराधकों ने भाग लिया। एकासन करवाने एवं आतिथ्य सत्कार का लाभ कुशलगढ़ श्रीसंघ के पूर्व अध्यक्ष प्रकाश नाहटा ने लिया। संचालन श्रीसंघ के महामंत्री प्रशांत नाहटा ने किया।

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