अक्षय होता है सुपात्र दान व तपस्या का फल – संयतमुनिजी

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 रितेश गुप्ता @थांदला-
इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के लगातार 400 उपवास तप का पारणा इक्षुरस का अभिग्रह पूरा होने पर श्रेयांस कुमार के कर कमलों से हुआ था तब से अक्षय तृतीया का जैन परम्परा में विशेष महत्व है। उनकी तपस्या के प्रतीक रूप में 400 दिन तक आराधकों द्वारा यथाशक्ति वर्षीतप की आराधना की जाती है जो आज पूर्ण होती है। ऋषभदेव भगवान इस युग के प्रथम राजा, प्रथम भिक्षु, प्रथम तपस्वी व संघ की स्थापना करने वाले प्रथम तीर्थंकर हुए है, उन्होंने ही असि-मसि-कृषि की शिक्षा दी, सम्बन्धो की स्थापना कर नैतिकता से जीवन जीने की विधि बताई। उक्त उदगार जिनशासन गौरव श्री उमेशाचार्य के शिष्य अणुवत्स पुज्यश्री संयतमुनिजी ने वर्षीतप आराधकों के लिए आयोजित आलोचना प्रायश्चित विधि कार्यक्रम में दिए। कोरोना संक्रमण के कारण इस वर्ष प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनि के सानिध्य में कुशलगढ़ (राजस्थान) में होने वाले भव्य सामूहिक पारणें का कार्यक्रम निरस्त हो जाने से थांदला श्रीसंघ ने स्थानीय वर्षीतप तपस्वीयो की आलोचना विधि का कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें वर्षीतप करने वाले भरत भंसाली (17 वा ), आशा श्रीमाल (9 वा), आशा पावेचा (दूसरा), किरण छाजेड़ (दूसरा), इंदुबाला छिपानी,किरण पावेचा, आशुका लोढा, प्रतिभा लोढा,कामिनी रुनवाल, पिंकी रुनवाल एवं एकासन वर्षीतप आराधक सर्वश्री ललित भंसाली, मुकेश चौधरी, पवन नाहर, अनिल मुथा(रायपुरिया) कुसुम पोरवाल, प्रिया तलेरा, सपना व्होरा, अलका व्होरा, मनोरमा लोढ़ा कार्यक्रम में उपस्थित रहकर प्रायश्चित-आलोचना विधि की । उल्लेखनीय है पूरा आयोजन शासन की गाइड लाइन के अनुसार सोशल डिस्टेंश का पालन करते हुए आयोजित किया गया जिसमें केवल तपस्वियों की आलोचना प्रायश्चित विधि अणु वत्स संयतमुनिजी, नव दीक्षित सुहासमुनिजी ठाणा – 2 एवं पूज्याश्री निखिलशीलाजी मसा आदि ठाणा – 4 के पावन सानिध्य में सम्पन्न हुई। इस अवसर पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए अणुवत्स संयतमुनि ने कहा कि तप व सुपात्र दान का फल अक्षय होकर मोक्ष दिलाता है इसीलिए आज का दिन अक्षय तृतीया के रूप में।प्रसिद्ध हुआ। आज के दिन अनेक भव्य आत्माओं ने संयम को स्वीकार किया है उनमें से एक यहाँ विराजित विदुषी साध्वी निखिलशीलाजी भी है जिनके संयमी जीवन के 27 वर्ष पूर्ण हो गए है ऐसे में उन्होंने इस दिन संयम अंगीकार करने वाली समस्त संयमी आत्माओं की मंगलकामना की। श्रीसंघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत ने सकल संघ कि ओर से सभी वर्षीतप आराधकों के तप की अनुमोदना करते हुए कहा कि जैन धर्म मे अनेक प्रकार के तपो का विधान है उसमें वर्षीतप का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि यह तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से जुड़ा हुआ है। अनेक आत्मा उनके समय से चले आ रहे तप का यथाशक्ति अनुसरण करते हुए अपनी आत्मा का कल्याण तो कर ही रहे है वही जिनशासन को भी दीपा रहे है।

इन्होंने किया वर्षीतप आराधकों का बहुमान
इस अवसर पर स्थानकवासी जैन श्रीसंघ कि ओर से अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत, श्रीसंघ मंत्री प्रदीप गादिया, ललित जैन नवयुवक मण्डल अध्यक्ष कपिल पिचा, महिलाध्यक्ष शकुंतला कांकरिया द्वारा वर्षीतप आराधकों का शाल माला व संघ प्रभावना से बहुमान किया गया साथ ही घोड़ावत परिवार, रमेशचन्द्र श्रीश्रीमाल, शैतानमल लोढ़ा, महिला अध्यक्ष शकुंतला कांकरिया, मनीष मनोज जैन,इंदुबहन गादिया, नरेंद्रकुमार लुणावत द्वारा भी भेंट दी गई।

डॉ संकेत वरमेचा व हेलन मावी सिस्टर की सेवा कार्यों की सराहना

अक्षय तृतीया के इस लघु आयोजन में डॉक्टर संकेत वरमेचा का शाब्दिक बहुमान किया एवं सिविल अस्पताल में अनवरत सेवा देने वाली सिस्टर हेलन मावी द्वारा विगत दिनों निःस्वार्थ भाव से जैन साध्वी श्रीदिव्यशीलाजी की सेवा कार्यों के लिए श्रीसंघ परिवार द्वारा उनके कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें शाल, माला व चांदी के सिक्के से बहुमान किया गया। सभा का संचालन प्रदीप गादिया ने व आभार कपिल पिचा ने माना। सभी तपस्वियों ने अपनी वर्षभर की तप आराधना के पारणें कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए अपने अपने घरों पर ही किये।