मनुष्य संसार के विष प्रसाद मानकर ग्रहण करें- स्वरूपाचार्य

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9 झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
नगर में 12वें अखिल भारतीय रामायण मेले का शुुभारंभ कामदगिरी पीठाधीश्वर जगदगुरू श्री 1008 राम स्वरूपाचार्य ने दीप प्रज्वलन कर किया। शुभारंभ संध्या पर जगदगुरू ने कहा कि जंगल में जब तक आग नहीं लगती, तब तक हाथी सुरक्षित है किन्तु आग लगने पर वही धीर गंभीर हाथी सरोवर ढूंढने लगता है और अपनी रक्षा करता है उसी तरह गृहस्थ व्यक्ति संसार के जंजाल में सुख अनुभव करता है किन्तु वासनाओं की आग बढऩे पर मन रूपी हाथी को किसी सरोवर की शरण मे ही जाना होगा और वह सरोवर है रामचरित मानस। शिव महिमा पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मोक्ष के तीन साधन भगवान शिव के पास है, सिर पर गंगा, चरणों में मानसरोवर तथा ह्दय ह्म्ïों रामचरित मानस प्रथम दो साधन मे स्नान आवश्यक है किन्तु मानस का सेवन कणैन्द्रिय से होता है यदि नेत्रों से संतों का दर्शन नहींकिए तो आंखे मोर पंख से बनी आंखों की तरह निरर्थक है। भगवान शिव ज्ञान के सागर थे किन्तु रामकथा सुनाने के लिए वह पार्वतीजी को कुभंज ऋषि के पास ले गए, क्योंकि घट का पानी मीठा और पीने लायक होता है समुद्र का पानी नहीं उसी तरह ऋषि की वाणी की सरलता से रामकथा सहज बोधगम्य हो गई। प्रयागराज इलाहाबाद से पधारे मानस चंचरिक जयप्रकाश मिश्र ने कहा कि भगवान राम का व्यक्तित्व अपने भक्तों के उद्धार के लिए क्रमश: नीचे की ओर उतरता है। अयोध्या के राजसी परिवेश से वह निषाद, कोल किरात आदि की ओर बढ़ते है फिर क्रमश: शबरी भीलनी, बंदर, भालू, पशु-पक्षी अंत में राक्षसों का संज्ञान लेकर उनका उद्धार करते है। उन्होंने भगवान शिव के विषपान पर चर्चा करते हुए बताया कि मनुष्य को भी संसार के विष को प्रसाद मानकर ग्रहण करना चाहिए और अमृत का विभाजन योग्य पात्रों में करना चाहिए। जब जिव्हा पर रामनाम हो और हदय मे रामविराजित हो तो कंठ मे स्थित विष भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। झांसी से पधारी साध्वी समीक्षादेवी ने शिव विवाह प्रसंग की आद्यिदेवीक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक व्याख्या प्रस्तुत करते हुए। अवगुणों में गुण देखने की शिवजी की अनूठी दृष्टि परिचय कराया। रामायण मेले की प्रथम संध्या का भगवान राम, गोस्वामी तुलसीदास, सरस्वती नंदन स्वामी महाराज व रामचरित मानस पर माल्यार्पण कर हुुई। स्व मोतीलालजी दवे, पं अनंतनारायण आचार्य, कन्हैयालाल शर्मा के चित्रों पर भी पुष्पाजंलि अर्पित की गई। मेला संयोजक नारायण भट्ट ने रामायण मेले के वर्तमान स्वरूप व उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुुए अतिथि संतो का स्वागत किया। संत प्रवचन के पूर्व क्षेत्र के समधुर भजन गायक जनकजी तारखेड़ी ने अपने समधुर भजनों से मंत्रमुग्ध किया। पादुका पूजन पं योगेन्द्र मोड ने सम्पन्न की लाभार्थी निरंजन-जयश्री पाठक रहे। संतों के स्वागत का लाभ संजय श्रीवास, गणेश प्रजापत मेघनगर, यशवंत भट्ट, आदि भक्तों ने लिया। धर्मसभा का संचालन पूर्व प्राचार्य डा जया पाठक ने किया।