देव गुरुधर्म की आराधना-रसनेन्द्रिय विजय के पर्व नवपद ओलीजी आज से शुरू

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झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-
जैन सन्त पूज्याचार्य उमेशमुनि ‘अणु’ की दिव्य कृपा दृष्टि और बुद्धपुत्र प्रवर्तक पूज्य जिनेंद्रमुनि मसा के आज्ञानुवर्ती पूज्या मधुबाला मसा की शिष्या पूज्यश्री धैर्यप्रभा मसा आदिठाणा -6 के पावन सानिध्य में थांदला नगर के सामूहिक तप आराधना के सुंदर माहौल में कर्म निर्जरा का दुर्लभ अवसर नव पद ओलीजी के रूप में उपस्थित हुआ है। प्राचीन ग्रंथों में कहा है लंघ्नम परम ओषधं अर्थात सभी औषधियों में उपवास सबसे बड़ी औषधि है। पूर्व के करोड़ों भव के संचित पापकर्म भी तप के माध्यम से नष्ट हो जाते है तो गाढ़े से गाढ़े निकाचित कर्म भी तप की शक्ति से निस्तेज होकर शुभ फल दायक बन जाते है। ऋतु परिवर्तन के समय तप करने से जीव आरोग्यता को भी प्राप्त होता है। नित्य प्रवचन की श्रृंखला में धर्म सभा को संबोधित करते हुए पूज्या धैर्यप्रभा मसा ने कहा कि जैन धर्म में तप की प्रधानता है और काम-भोग और विषयों की आसक्ति से जीव दुर्लभ मानव तन पाकर भी इस संसार में भटक ही रहा है। तप को अपना कर वह भव बंधन से मुक्त हो सकता है। पूज्याश्री ने नवपद ओलीजी में आयंबिल का महत्व बताते हुए कहा कि सामान्य जीव को देव-गुरु-धर्म की शरण सही मार्ग दिखाने के लिए आवश्यक होती है और रसनेन्द्रिय विजय के लिए विगय का त्याग करना होता है। नवपद ओलीजी में नो दिनों तक आराधक दूध, दही, घी, तेल, शकर, नमक, मिर्च रहित द्रव्य का एक बार सेवन करते हुए देव-गुरु के गुण और धर्म के भेदों की आराधना करता है। एक द्रव्य से आयम्बिल श्रेष्ठ, एक धान्य से आयंबिल मध्यम और विगय मात्र का त्याग जघन्य आयम्बिल तप की श्रेणी में आते है। आज नवपद ओलिजी का पहला दिन है इसलिए राग-द्वेष के विजेता अरिहंत भगवान के गुण स्मरण का दिन रहेगा। कई आराधक आज के दिन श्वेत धान्य का ही प्रयोग कर आयम्बिल करेंगे। धर्म सभा को पुज्या श्रीमलया मसा ने श्रीपाल-मैनासुन्दरी का चारित्र सुनाते हुए कहा कि कर्म सत्ता के विविध रंग इस चारित्र में देखने को मिलते है। नवपद ओलीजी की आराधना से जीव कर्मो की निर्जरा करते हुए आरोग्यता को प्राप्त होता है। श्रीपाल-मैनासुन्दरी का धर्म-कर्म विश्वास उनके लिए महा फलदायी बना और कुष्ठ रोग निवारण का कारण भी बना। उनके चारित्र से प्रेरणा लेकर भाव पूर्वक नवपद की आराधना करने से आराधक सुख-समृद्धि को प्राप्त कर लेता है। उन्होंने कहा कि 14 नियमों के साथ रात्रि चौविहार, ब्रम्हश्चर्य सहित चार स्कंध पूर्वक आयंबिल-निवि कर देव-गुरु-धर्म की आराधना करना चाहिए। पूज्य गुरु भगवंतों की वाणी को आत्मसात करते हुए 54 आराधकों ने नवपद ओलीजी की आराधना की। श्रीसंघ अध्यक्ष रमेश चौधरी, कमलेश दायजी, अरविन्द रुनवाल मंत्री राजेंद्र व्होरा, चंचल भंडारी, ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष ललित भंसाली, पवन नाहर, चिराग घोड़ावत, राजेंद्र वागरेचा, हितेश शाहजी, मंगलेश श्रीमाल ने तपस्वियों की सुख-साता पूछते हुए उनके तप की अनुमोदना की। नवपद ओलीजी के लाभार्थी संदीप कुमार, संजय कुमार, हस्तीमल लोढ़ा परिवार द्वारा व्यवस्था महावीर भवन में रखी गई। धर्मसभा का संचालन पूर्व सचिव प्रदीप गादिया ने किया।