राम कथा में भगवान राम के विवाह को सुन झूम उठे श्रोता

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झाबुआ लाइव के लिए मेघनगर से भूपेंद्र बरमंडलिया की रिपोर्ट-
विकासखंड के ग्राम रंभापुर में राम मंदिर रंभापुर के जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर राम कथा आयोजन स्थान खेल मैदान हनुमान मंदिर के प्रांगण में रामजी का चरित्र मर्यादा पुरुषोत्तम के उद्गार महान विदुषी ऋतुजी पांडे के मुखारबिंद से उद्गार किए श्रीराम ने जो कहा-विश्वामित्र उस समय बहुत विद्वान संत थे उस समय रावण का साम्राज्य इतना विशाल था कि रावण ऋषि मुनियों एवं संतों को न हवन करने देता था और न ही धार्मिक आयोजन का कार्य हो पाता था विश्वामित्र अहिंसा का पालन करते थे वे यह नही चाहते थे की वे दानवों का संहार कर सकते थे। सरियु नदी इतनी पावन थी की जो भी सरियु का जल पिता था वह पावन हो जाता था। ददीची महाराज ने अपनी हड्डी बी दान करती थी अशुरों से अत्याचार के लिए विश्वा मित्र जी राजा दशरथ के दरबार में राम जी को लेने के लिए आए थे। दशरथजी ने कहा कि राम जी तो जटायु की अमानत है। दशरथजी कहते है की में रामजी विश्वामित्र जो नही दे सकता ही इस पर गुरु वशिष्ठ ने कहा कि आप नही दोगे तो बहुए कहा से लाओगे। इस पर राजा दशरथ चिंतित हो गए इस बात पर माताओं ने सुना एव खुशी राम-लखन को विश्वामित्र को सौंप दिया। गुरुजी को सौंपकर राजा दशरथ ने यह कहा कि यह दोनों बालक भोले-भाले है। आप इन को सलामत रखना ये लेकर गुरूजी जंगल में दोनों भाइयों को लेकर जा रहे थे। उस जंगल में ताडक़ा दैत्य रह रही थी दोनों भाई एवं उनके गुरु जंगल में गुजर रहे थे, उस समय भगवान राम ने तीर मारकर ताडक़ा का वध कर दिया एवं मारिछ भी वही रह रहा था तो भगवान ने उसे छोड़ दिया और कहा कि ये हमारे अभिनय का पात्र है। उस समय गौतम नारी भी श्राप के वश से अहिल्या पत्थर बन गई थी इसे भगवान ने श्राप से मुक्त किया रामजी ने काम क्रोध को जित लिया था 60 हजार वर्ष की तपस्या को मेनका ने भंग कर दिया। ऋतु कहा कि राम झंडा है एवं लखन दंडा है। जनकपुर में घूमने के लिए दोनों भाई निकले तो विश्वामित्र ने बोला भक्ति के नगर में सिर झुकाकर चलना चाहिए। पुष्प वाटिका में रामजी की मुलाकात सीताजी से हुई भगवान राम पुष्प वाटिका में फूल लेने पहुंचे जानकी ने बोला की है। प्रभु मुझे मनपसन्द वर चाहिए दोनों भाइयों की सुंदरता ने मिथिला को वश में कर लिया एवं करुणा निधन माता सीता ने रामजी का नाम दिया। भगवान शिव का धनुष राहु है, तो राजाओ का बल चंद्रमा है, बारी राजा धनुष तोडऩे की कोशिश कर रहे थे परंतु उनसे धनुष उठ ही नहीं रहा था जिस पर राजा जनक में कहा कि पृथ्वी वीरों से खाली है एव मेरी पुत्री को आजीवन कुंवारी रहना पड़ेगा। इस पर लखन जो को क्रोध आ गया रावण का हाथ भी धनुष के नीचे दब गया था तो उसने शिव की आराधना की परन्तु शिव भी इस प्रार्थना को स्वीकारे न कर सके एव अंत में रामजी ने बोला यदि गुरु मुझे आदेश दे तो में यह धनुष को तोड़ सकता हूं एवं जैसे ही गुरु का आदेश हुआ रामजी ने धनुष उठा के तोड़ दिया और एव रामजी का विवाह संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में हजारों की तादाद में श्रद्धालु एकत्रित हुए और उनके भजनों पर झूमे। कल रात्रि में सुप्रसिद्ध भजन गायक द्वारका मंत्री द्वारा सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी गयी तथा पूरे गांव राम नाम से गूंज उठा। भक्तों ने देर रात तक भजनों का आनन्द लेकर धर्म लाभ लिया। कथा स्थल पर नवलसिंह नायक, प्रहलाद नायक, कमलेश दातला, डॉक्टर बसंतसिंह खतेडिया, बाबूसिंह खतेडिय, श्याम ताहेड, मंगल सिंह नायक, बहादुर सिंह हाड़ा, रामसिंह मेरावत, रमेश मेरावत, बाबू गणावा, राजेन्द्र पड़वाल, गोमत सिंह हाड़ा, उदेसिंग बामन, बाबूलाल झाड़, अर्जुन झाड़ आदि उपस्थित थे।