ये कैसी व्यवस्था; इतना बड़ा अस्पताल फिर भी नही है ब्लड बैंक…

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सलमान शैख़@ झाबुआ Live…
एक तरफ आदिवासी अंचल में स्वास्थ्य सुविधाओ के सुधार करने की कवायद में राज्य सरकार से लेकर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग लगे हुए है तो दूसरी तरफ आश्चर्य की बात यह है कि सामुदाकि स्वास्थ्य केंद्र में ब्लड बैंक नही होने से ब्लड रखने के लिए बैग का टोटा पड़ा हुआ है। पिछले एक माह से आए दिन यह स्थिति उत्पन्न होना आम बात हो गई है। हालत यह है कि कभी इस शहर से तो कभी उस शहर से लाए गए बैगों में ब्लड स्टोरेज करके रखना पड़़ रहा है। कई बार रक्तदाताओं को रोकना पड़ जाता है कि अब बैग खत्म हो गए हैं तो बाद में रक्त लेंगे।
मामला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पेटलावद का है। दरअसल, पिछले कई वर्ष पहले स्वास्थ्य केंद्र में ब्लड स्टोरेज यूनिट खोली गई थी। महकमे का मकसद था कि स्थानीय स्तर पर जरूरतमंद मरीजो को ब्लड उपलब्ध हो सके। उन्हें जिला अस्पताल के चक्कर नही काटने पड़े। हालांकि ऐसा हुआ भी, लेकिन अब यह व्यवस्था बेमानी साबित रही है। कारण, यहां अब मनमानी व खानापूर्ति शुरू हो चुकी है। रक्त उपलब्ध करो के लिए न तो डिमांड भेजी जाती है और न ही स्टोर किया जाता है। इस दौरान दि किसी मरीज को जरूरत पड़ती है तो उसे जिला अस्पताल का रास्ता दिखा दिया जाता है।
यहां पिछले 3 दिनो से ग्राम करड़ावद की महिला राधा पति रवि मैड़ा खून के लिए जूझ रही थी, 20 जुलाई को वह स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती हुई थी, इसके बाद खुद बीएमओ डॉ. उर्मिला चोयल ने उसे खून की कमी के कारण 2 बोतल खून चढ़वाने की सलाह दी थी। इसके बाद एक बोटल खून स्वास्थ्य विभाग द्वारा चढ़ा दिया गया था, लेकिन दूसरी बोटल के लिए उसे 4 दिन तक इसलिए भटकना पड़ा, क्योकि स्वास्थ्य केंद्र में ब्लड बैग नही थे, जिसके कारण जो डोनर ब्लड देेने आए थे, उनका ब्लड किसमें स्टोरेज किया जाता, यह बड़ी परेशानी वाली बात थी। इसके बाद पीडि़त के परिजन रतलाम से ब्लड बैग की व्यवस्था करकर लाए और आखिर में मीडिया के हस्तक्षेप के बाद महिला को खून मिल सका।
*ब्लड स्टोरेज सेंटर है, ब्लड बैंक नही-*
यह स्वास्थ्य केंद्र आए दिन अपनी व्यवस्थाओं को लेकर सुर्खियों में रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि झाबुआ जिले का नंबर १ कहलाने वाले हास्पीटल में ब्लड बैंक ही नही है। केवल यहां है तो ब्लड स्टोरेज सेंटर है, जिसमें जो ब्लड शासकीय स्तर से प्रभारियो के पास आता है उसे स्टोरेज करकर रखा जाता है। इसके अलावा यहां न तो ब्लड बैग की कोई व्यवस्था है और न ही अगर कोई डोनर अपना ब्लड डोनेट करने आता है, तो उसके संग्रहित करकर जरूरतमंद को चढ़ाने की व्यवस्था है। जिससे स्वास्थ्य विभाग पर बड़े सवाल खड़े होना लाजमी है।
*20 यूनिट रक्त रखना है सुरक्षित-*
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ब्लड स्टोरेज सेंटर में अधिकतम 20 यूटि रक्त को सुरक्षित रखने की व्यवस्था है, लेकिन यहां न तो ब्लड है और न ही ब्लड बैग है, जिससे कोई डोनर अगर ब्लड देना चाहे तो वह पीडि़त को दे सके। उल्लैखनीय है कि स्वास्थ्य केंद्र में महीनेभर में 15 से 20 गर्भवती महिलाओ को प्रसव के दौरान रक्त की जरूरत पड़ती है। कई मामले हुए है जिनमें महिलाओं को रक्त की कमी से गंभीर अवस्था में झाबुआ, रतलाम या गुजरात के दाहोद या बड़ौदा जाना पड़ा है। यहां ब्लड बैंक खोले जाने की सख्त आवश्वकता है।

अभी भी वक़्त है सम्भल जाइये: 

ब्लड डोनेट करने के लिए कर युवाओ ने ब्लड ग्रुप संस्था बना रखी है। ऐसे में सामाजिक संस्थाए इस ओर अग्रसर है, लेकिन सिस्टम की कमियों के चलते वह भी कुछ नही कर सकते। ब्लड देने के लिए डोनर उपलब्ध है, लेकिन फिर बस ब्लड बेग की वजह से जरूरतमंद को ब्लड नही मिल पाता, यह अपने आप मे एक बड़ी विडंबना है। ऐसे में कभी भी कोई जरूरतमंद खून की कमी के चलते अपनी जान गंवा सकता है, फिर कोई कुछ नही कर रखेगा। इसलिये अभी भी वक़्त है सम्भल जाइये सिस्टम में बैठे भगवान का दर्जा प्राप्त डॉक्टर…,नही तो वह दिन दूर नही जब आपसे यह दर्जा छीन जाएगा।

*जल्द ही व्यवस्था कराई जाएगी-*
इस संबंध में बीएमओ डॉ. उर्मिला चोयल का कहना है कि वरिष्ठ अधिकारियो को इस बारे में अवगत कराया गया है। यहां ब्लड स्टोरेज सेंटर है जिससे ब्लड बैग यहां नही है। जल्द ही ब्लड की व्यवस्था कराई जाएगी। अगर जिले से कोई व्यवस्था नही हुई तो फिर पीडि़त को जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाएगा।