251 वर्षों पुरानी परम्परा बेंतमार होली में महिलाओं ने बेंत लेकर पुरुषों को जमकर सिखाया सबक

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झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
मथुरा वृंदावन की लट्ठ मार होली की तर्ज पर नगर में सिर्वी समाज भी 251 वर्षों से बेंतमार होली का आयोजन करता आ रहा है जो कि शीतला सप्तमी के दिन मनाया जाता है। अपनी 251 से अधिक वर्ष पुरानी परपंरा का निर्वाह करते हुए सिर्वी समाज ने शीतला सप्तमी गुरूवार को होली उत्सव मनाया, जिसमें क्षेत्र की प्रसिद्ध बेंतमार होली का आयोजन भी किया गया, जिसमें समाजजनों ने एक दूसरे के घर पर जाकर रंग गुलाल किया व उत्साह के साथ त्योहार मनाया। बेंतमार होली को देखने के लिए समाज सहित अन्य वर्गों के लोगों की भीड़ स्थानीय चमठा चौराहे पर लगी। इस त्योहार में महिलाओं का भी उत्साह देखने लायक था। महिलाएं भी झुंड बना कर एक दूसरे के साथ होली खेलने में पीछे नहीं रही।
बेंतमार होली का हुआ आयोजन-
सुबह से प्रारंभ हुआ यह होली उत्सव दोपहर में अपने चरम पर पहुंचा जिसमें बेंतमार होली का प्रारंभ हुआ। स्थानीय चमठा चौक पर सभी समाजजन एकत्रित हुए व एक बडे कड़ाव में रंग वाला पानी भरा गया, जिसमें युवक मस्ती करते हुए कूदते रहे और एक दूसरे के साथ होली खेलते रहे। इसके साथ समाज की बालिकाओं और महिलाओं ने बेंतमार होली प्रारंभ कर दी, जो युवक भी इस बडे कड़ाव के आसपास आ कर रंग लगाने की कोशिश करता उसको महिलाएं बेंतमार होली का मजा चखाती है, जो कि एक आनंद उत्सव बन चुका है जिसका मजा सभी ने लिया। इसके साथ ही घोड़ी नृत्य की प्रस्तुति के साथ ही समाज के बच्चें से लेकर वृद्धजनों ने इस उत्सव में भाग लेकर पूरा आनंद लिया। इसके साथ ही जहां बेतमार होली खेली जा रही थी वहां पर इस बार फव्वारे लगा कर होली का मजा दोगुना लिया गया। उपर फव्वारे लगाकर नीचे बेतमार होली का क्रम चलता रहा। होली खेलने की शुरूआत समाज में वरिष्ठजन एक दूसरे को रंग गुलाल करने से करते है, जिसमें सभी घरों में जाकर रंग गुलाल लगाया जाता है और समाजजन एकत्रित होकर रंगों का उत्सव मनाते है, जिसमें होली की शुरूआत सूखें रंगों से होकर बेतमार होली तक पहुंचती है।
गेर निकाली-
समाज के लोगों ने एकत्रित होकर मुख्य मार्गों से रंगारंग गेर निकाली। सिर्वी मोहल्ले के सभी घरों पर गेर पहुंची और युवा डीजे की धुन पर धिरकते रहे। होलिका उत्सव का भरपूर आनंद सिर्वी समाज के युवाओं ने लिया। समाजजनों का मानना है कि इस युग में भी परंपराओं का निर्वाह होना बड़ा कठिन है किन्तु समाजजन आज भी एकत्रित होकर परंपरा का निर्वाह कर रहे है। यह समाज के लिए अच्छा संकेत है। इसके साथ ही समाजजनों ने आज अपने प्रतिष्ठान भी बंद रखे जिससे आधा पेटलावद नगर बंद रहा।