गरीब-अनाथ युवक राजेश की शादी के लिए एकजुट हुआ आदिवासी समाज, ससुराल पक्ष ने डेढ़ किलो चांदी लेने से किया इनकार, गांव में खुशी का माहौल

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मेहंदी रस्म में शामिल हुई ग्राम की महिलाएं

झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट-
आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले की जहां शासन के द्वारा तमाम योजनाएं चलाई जा रही है। उसका लाभ आदिवासी क्षेत्र में धरातल पर नहीं उतर रहा है। ऐसा ही एक मामला झाबुआ जिले के मुलथनिया गांव है जहां पर शासन की सुविधाओं का लाभ न लेते हुए आदिवासी समाज ने एकता दिखाते हुए एक समाज के ही एक गरीब युवक राजेश वसुनिया की शादी कराने का फैसला लिया है, जहां पर आदिवासी समाज के तमाम संगठन द्वारा एकजुट होकर उसकी शादी का पूरा खर्च वहन करने का जिम्मा लिया है। राजेश अपनी दो वक्त की रोटी का खर्च भी ठीक से नहीं उठा पाता है जिसके लिए शादी का सपना देखना भी बड़ी बात थी लेकिन राजेश की जिंदगी में भी अब शहनाई की गूंज गूंजने लगी है। ग्रामीण राजेश अर्थित स्थिति से तो जूझ ही रहा था लेकिन उसका कोई परिवार भी नहीं है, माता-पिता के गुजर जाने के बाद राजेश की जिंदगी कठिनाइयों के बीच फंस गई, जिसके लिए शादी करना एक बड़ी चुनौती से कम नहीं था लेकिन आदिवासी समाज के संगठनों ने मिलकर राजेश की शादी का पूरा खर्च वहन करने एवं पूरी रस्मों के साथ उसका परिवार बनकर उसकी शादी धूमधाम से करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि राजेश की शादी पूर्वी छायन गांव की दीपिका डामोर के साथ 11 फरवरी को होगी। इसके लिए ग्रामवासियों ने बकायदा पत्रिका छपवाकर सभी को न्योता भी दिया जिसमें नोतरा, ममेरा के साथ प्रीतिभोज का भी आयोजन ग्रामवासियों द्वारा रखा गया है। राजेश के विवाह के ग्रामीणों ने 9 फरवरी को हल्दी, 10 फरवरी को दूसरा वाना, 11 फरवरी को मेहंदी तथा 12 फरवरी को शुभ लग्न के आयोजन रखे, जिसको लेकर राजेश एवं मुलथानिया गांव में खुशी का माहौल बना हुआ है। राजेश के पास खुद का घर न होने के कारण दोस्तों के घर युवक राजेश का शादी का आयोजन किया गया है, जहां गांव समेत तमाम आदिवासी संगठनों द्वारा मिलकर धूमधाम से राजेश की शादी की तैयारियां हो चुकी है। इस दौरान राजेश ने बताया कि जिस तरह समाज उसके साथ आज कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है जिससे उसे आज अपने परिवार की कमी महसूस नही हो रही है। माता पिता के गुजर जाने के बाद भी वह अपने आप को अकेला नहीं समझता समाज ने राजेश को परिवार वाला प्यार दिया हैं। आदिवासी समाज एवं संगठनों के साथ ही राजेश के सुसराल पक्ष के लोगों ने भी साथ देकर मिसाल कायम की। राजेश के सुसराल पक्ष वालों द्वारा रीति-रिवाज में दी जाने वाली शगुन के तौर पर 1.50 किलो चांदी को भी न लेने का फैसला लिया है और समाज की इस पहल का हिस्सा बन राजेश की खुशियों को दोगुना कर दिया।