कश्मीर के पत्थरबाजो को झाबुआ की ” आदिवासी गोफन बटालियन ” से सबक सिखवाने की मांग

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झाबुआ Live के लिए दिनेश वर्मा की EXCLUSIVE रिपोर्ट ।

कश्मीर के पत्थरबाजो से निपटने के लिए सरकार को अगर गोली नहीं चलानी है ओर पैलेट गन की भी दिक्कत है तो सरकार को हम आदिवासियों की एक ” आदिवासी या गोफन बटालियन ” बना देनी चाहिए ओर उस बटालियन को कश्मीर भेज देना चाहिए .. हमारी गारंटी है कि तीसरा दिन तब होगा तब यह पत्थरबाज खुद ही गायब हो जायेंगे । यह कहना है झाबुआ की हाथीपावा पहाड़ी पर आदिवासियों के परंपरागत सुरक्षा यंत्र ” गोफन ” की प्रेक्टिस कर रहे आदिवासी युवाओं का । झाबुआ लाइव से बातचीत करते हुए युवाओं के इस समूह का कहना है कि जब हम टीवी पर या सोशल मीडिया पर अपने सुरक्षा बलों पर भारी पथराव करते पाकिस्तान प्रेरित कुछ लोगों को देखते है ओर उस पर सुरक्षाबलो की हथियार इस्तेमाल ना करने की बेबसी की समझते है तो हमें लगता है कि हम झाबुआ के आदिवासी इन पत्थरबाजो से अपने परंपरागत हथियार ” गोफन ” से बेहद आसानी से निपट सकते है । ऐसे ही एक युवा भानू भूरिया कहते है कि ” सरकार को चाहिए कि वह इन पत्थरबाजो से निपटने के लिए हमारे झाबुआ के आदिवासियों की एक ” आदिवासी बटालियन या गोफन बटालियन ” बना दे ओर उसे कश्मीर भेज दे ..भानू कहते है कि यह गारंटी है कि हम दो से तीन दिनों मे अपने गोफन से चलाये गये पत्थरों से उनका सुरक्षाबलो पर पत्थर फेंकना भुला देंगे । नवलसिंह ओर जोहनसिंह कहते है कि हम पहले भारतीय है फिर आदिवासी है ओर हमारा भी खून खोलता है जब हम देखते है कि हमारा सैनिकों पर पत्थर बरसाये जा रहे है इसलिए हमें उम्मीद है कि सरकार हमारी मांग पर ध्यान देगी ओर हमारी गोफन या आदिवासी बटालियन ना सिर्फ इन पत्थरबाजो को सबक सिखायेगी बल्कि हमारे आदिवासी युवकों को एक ऐसा रोजगार मिलेगा जो राष्ट्र की सेवा से जुडा रहेगा ।

देश ओर पत्थरबाजो को बड़ा संदेश
======================भले ही 2011 की जनगणना मे झाबुआ भले की देश मे निरक्षरता के मामले मे नीचे से दूसरे पायदान पर हो लेकिन देश के जवानों की पीडा की समझकर पत्थरबाजो से निपटने का ब्लू प्रिंट सामने रखकर झाबुआ के युवा आदिवासियों ने बता दिया कि वे पहले भारतीय है फिर आदिवासी ..ओर अपने जनजातिय तरीकों से ही सही पाकिस्तान से प्रेरित पत्थरबाजो को वे ही उस समय ठीक से सबक सीखा सकते है जब सरकार की ” पैलैटगन” खामोश होने लगे ।

जानिए आखिर यह ” गोफन ” है क्या
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गोफन दरअसल आदिवासियों का प्राचीनतम सुरक्षा यंत्र है यह रस्सी से बनता है ओर अनादिकाल से आदिवासी समाज अपनी सुरक्षा के लिए गोफल का इस्तेमाल करता आया है । इस गोफन को रस्सी के दो सिरो को जोड़कर बनाया जाता है जिसके मध्य मे एक चोडी जगह होती है जहां पत्थर रखा जाता है ओर पीर दोनों सिरो की पकड़कर टारगेट की ओर हाथ से घुमाकर तेजी से रस्सी का एक हिस्सा छोड़ दिया जाता है जिससे गोफन मे रखा पत्थर हाथ से फेंके पत्थर के मुकाबले चार से पांच गुना तेज गति से लक्ष्य की ओर जाकर अचूक निशाने से घातक चोट पहुंचाता है । ” भोयरा” गांव के ” बहादुर हटीला” कहते है कि गोफन हमारे पुरखे ओर आज भी आदिवासी इसलिए रखते है क्योकि हम जंगलों मे रहते है जहां जंगली जानवरों ओर चोरो – बदमाशो का डर रहता है हमारे लोग गोफन को कभी सिर मे पगडी के साथ तो कभी कमर मे बेल्ट की तरह बांधकर रखते है ओर आवश्कता पडने पर खुद की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करते है ।

कानूनी मान्यता भी मिली हुई है
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गोफन को आदिवासियों का परंपरागत सुरक्षा यंत्र माना जाता है हथियार नहीं लिहाजा इसे लेकर चलने पर पुलिस को भी कभी आपत्ति नहीं रही है इस संबंध मे झाबुआ के एसपी महेशचंद्र जैन कहते है कि “गोफन ” का इस्तेमाल प्रतिबंधित नहीं है बशर्ते ग्रामीण इसका इस्तेमाल अपनी ओर अपने परिवार की सुरक्षा मे करें तो । लेकिन अगर परस्पर हिंसा मे इस्तेमाल करते है तो कानूनन बरामदगी करनी पडती है