सम्मेद शिखर मामले को लेकर क्रेंद्र की मोदी सरकार पर क्यों बरसे पारस सकलेचा !!

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केंद्र के पत्र से स्पष्ट हो गया कि यह सब उनका किया-कराया है और अब जो भी करना है उन्ही को करना है।

जो पत्र अब जारी किया , एक महीने पहले भी जारी किया जा सकता था , एक साल पहले भी जारी किया जा सकता था , केन्द्र की नियत में खोट है।

*झारखंड सरकार को मोहरा बनाया जा रहा है*

*केन्द्र सरकार ने संविधान के विपरीत कार्य किया है*

*राजपत्र को निरस्त किये बगैर, उसका क्रियान्वयन रोका नही जा सकता*

सम्मेद शिखर जी महातीर्थ विवाद मे भारत सरकार की भूमिका अति संदिग्ध है , वह झारखंड की पूर्व रघुवर दास तथा वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार को मोहरा बना रही है । हाल ही में जारी केंद्र सरकार के पत्र से स्पष्ट हो गया कि यह सब उनका किया कराया है, और अब जो भी करना है, उनको करना है । यह आरोप जैन युवा मंच के संरक्षक और पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने लगाया ।

सकलेचा ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि जो पत्र अब जारी किया गया है, वह एक महीने पहले भी जारी किया जा सकता था , एक साल पहले भी जारी किया जा सकता था । स्पष्ट है कि केंद्र सरकार की नियत में खोट है ।

21 फरवरी 2019 को केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार की अनुशंसा के बगैर पारसनाथ पर्वत को इको टूरिज्म हेतु वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया । जबकि संविधान के अनुसार राज्य की सीमा के अंदर किसी भी क्षेत्र को वन्य जीव अभ्यारण्य , राज्य शासन की अनुशंसा के बगैर घोषित नहीं किया जा सकता । क्योंकि यह राज्य का विषय है । केंद्र सरकार ने संविधान के विपरीत कार्य किया ।

सकलेचा ने कहा कि झारखंड की रघुवर दास की सरकार ने तो 22 अक्टूबर 2018 को संकल्प पास कर दिया था कि पारसनाथ पर्वत की पवित्रता अक्षुण्ण रखने हेतु प्रतिबद्ध है ।

झारखंड सरकार के इस संकल्प को नजरअंदाज कर , केंद्र ने मनमाने तरीके से, झारखंड सरकार की अनुशंसा बगैर , दिनांक 21 फरवरी 2019 को पारसनाथ पर्वत को वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित करने की अधिसूचना जारी कर दी ।

सकलेचा ने आरोप लगाया कि केन्द्र ने झारखंड सरकार पर दबाव बनाकर अधिसूचना के मात्र एक दिन बाद , 22 फरवरी 2019 को पारसनाथ पर्वत को पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित करवा दिया । जबकि झारखंड सरकार 4 महीने पहले 22 अक्टूबर 2018 को पारसनाथ पर्वत की पवित्रता अक्षुण्ण रखने का संकल्प पास कर चुकी थी ।

21 फरवरी 2019 को भारत सरकार ने जो अधिसूचना जारी की , नियमानुसार उसे राष्ट्रीय समाचार पत्रो में प्रकाशित कर, उस पर जनता से तथा जिनके हित प्रभावित हो रहे उनसे, आपत्ति ली जाना थी । लेकिन उसे किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित तक नहीं किया गया तथा एक भी आपत्ति प्राप्त नहीं की । गुपचुप तरीके से 2 अगस्त 2019 को इसे वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित कर राजपत्र प्रकाशित कर दिया गया ।

केंद्र शासन ने झारखंड सरकार की अनुशंसा के बगैर पारसनाथ पर्वत को वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित करने का राजपत्र प्रकाशित किया है , तो संविधान अनुसार राजपत्र की अधिकारिता को पत्र के माध्यम से रोका नही जा सकता । राजपत्र को निरस्त करके ही रोका जा सकता है । भारत सरकार का 5 जनवरी 2023 को जारी पत्र बेमानी है । इससे यह सिद्ध होता है कि केंद्र सरकार देशी विदेशी बडे घरानो के हाथो मे खेल रही है ।

सकलेचा ने कहा कि भारत सरकार घोषित करे कि वह राजपत्र को निरस्त क्यों नहीं करना चाहती है ।