4 जुलाई को चौमासी पक्खी पर्व से शुरू होगा चातुर्मास, जैन समाज ने शुरू की तैयारियां

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रितेश गुप्ता
थांदला/ आचार्य उमेशमुनिजी के शिष्य प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी अभयमुनिजी, गिरीशमुनिजी, शुभेशमुनिजी ठाणा-4 स्थानीय पौषध भवन पर और साध्वी निखिलशीलाजी, दिव्यशीलाजी, प्रियशीलाजी, दीप्तिजी ठाणा-4 दौलत भवन पर विराजित है। प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी, मुनिमण्डल व साध्वी मण्डल का इस वर्ष थांदला नगर में वर्षावास है। श्रीसंघ के अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत और सचिव प्रदीप गादिया ने बताया कि 4 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है इस दिन चैमासी पक्खी पर्व भी है। चौमासी पक्खी पर्व के प्रसंग पर श्रावक-श्राविकाएं उपवास तप की तपस्या करेगे। कई आराधक आयम्बिल, नीवीं, एकासन, बियासन आदि विविध तपाराधना करेगे। कई श्रावक-श्राविकाएं इस दिन प्रतिपूर्ण पौषध, दसवां पौषध आदि विविध आराधना करेंगे। चौमासी पक्खी पर्व पर कोरोना महामारी के चलते शासन के नियमानुसार सामूहिक आयोजन प्रार्थना, प्रवचन आदि नही होगे। गौरतलब है कि वर्षावास प्रारंभ के पूर्व प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी व मुनिमण्डल का आजाद चौक स्थित पौषध भवन स्थानक पर मंगल प्रवेष हो गया है। वर्षावास को लेकर श्रीसंघ का प्रत्येक सदस्य अति उत्साहित है। वर्षावास आने का हर किसी को तो इंतजार रहता ही है वही विभिन्न आराधना में रमने वाली आत्माओं को चातुर्मास आने का बेसब्री से इन्तजार रहता है। कई आराधक तप आदि करने का पूर्व से ही मन बना लेते है। वही ऐसे गुप्त आराधक भी है जो चातुर्मास प्रारंभ होने के पूर्व से ही अपनी तप आराधना प्रारंभ कर देते है। वर्षावास में एकासन, बियासन, आयम्बिल, उपवास, बेला, तेला, पचोला, अ_ाई, नौ उपवास, ग्यारह, सोलह, इक्कीस, 31 मासक्षमण के अलावा विभिन्न तप आराधनाएं होती है इसके साथ सिद्धितप, धर्मचक्र, मेरुतप, परदेशी राजा का तप, बेले-बेले, तेले-तेले, पचोले-पचोले, पारणा तप, एकान्तर एकासन, एकान्तर उपवास आदि अनेक तपस्याएं होती है। यहां आराधकों की वर्षीतप की आराधना भी चल रही है इसमे ऐसे भी आराधक है जिनकी वर्षो से वर्षीतप की आराधना अविरत चल रही है। प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी, मुनिमण्डल व साध्वी मण्डल की प्रेरणा से यहां वर्षावास प्रारंभ दिवस से ही तप की लडिय़ां चलेगी। ज्ञान-आराधना के अन्तर्गत जिन्हे सामायिक, प्रतिक्रमण आदि कंठस्थ नही है, वे कंठस्थ करेगें एवं जिन्हें ये कंठस्थ है वे अपनी ज्ञान-आराधना को आगे बढाएंगे। वर्षावास में महापुरुषों की पुण्यतिथि, जन्मतिथि आदि भी समरोहपूर्वक न मनाते हुए तप-त्याग से मनाई जाएगी।