बोहरा समाज में ”महिलाओं के द्वारा महिलाओं महिलाओं के आयोजित किए विशेष कार्यक्रम

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रितेश गुप्ता, थांदला

बोहरा समाज कीं वर्तमान और भावी पीढ़ी को धर्मोन्मुख,
रोजगारोन्मुख, प्रामाणिक, सुसंस्कृत और सुशिक्षित करने के लिये विविध प्रयोग किये जा रहे हैं। सैयदना मुफद्दल मौला साहेब योजना के सूत्रधार है । बोहरा मस्जिद जहाँ एक सादगी से पूर्ण भव्य कक्ष में केबिन बने थे। प्रत्येक केबिन में अत्यन्त शालीन आठ से दस महिलाएं उपस्थित थीं, एकदम ताजगी और ऊर्जा सै भरपूर। समाज की अन्य महिलाएं भी उतनी ही ऊर्जावान और सुसभ्य शालीन व्यक्तित्व की धनी थीं।
चित्रों, अभिनय और संवादों के माध्यम से अपने धर्म गुरु के उपदेशों और कुरान ए शरीफ की हदीसों की व्याख्या यह करती जा रही थीं।
पहले केबिन में महिलाएँ क्रोशिया से ऊन और धागों की मनमोहक और उपयोगी
सामग्री बना रही थी। उन्होंने बताया कि यह सामग्री बाहर भेजी जाती है। इससे प्राप्त राशि से जरुरतमंद लोगों की मदद की जाती है। इसके पीछे धर्म गुरु का उद्देश्य है कि हर हाथ के पास काम हो, कोई दिमाग खाली न हो। खाली हाथ और खाली दिमाग उपद्रव की जड़ है। आगे बढने पर एक अनूठी योजना से हम रूबरू होते हैं। यहाँ एक सुंदर सी डायरी रखी थी। ऐसी डायरी उन सभी महिलाओं के पास हैं जो गर्भवती हैं। इसमें गर्भधारण से लगाकर तीन वर्ष तक के बच्चे के मुख्य कार्यकलाप मां को लिखना है । धार्मिक उपदेश, सिद्धांत और संस्कारों के अनुसार ही बच्चे की परवरिश होऔर वह इस डायरी में फोटो सहित रहे। एक तरह से यह समाज के बच्चों के आधार कार्ड हैं। ये डायरियां मौलाना साहब के द्वारा उपलब्ध कराई जाती है जिसे आवश्यक रूप से मेन्टेन करना ही है। इससे समाज की हर माँ अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहेगी और बच्चों का तारीख सहित प्रामाणिक लेखा सुरक्षित होता जायेगा।

आगे हम जहाँ प्रवेश करते हैं वहाँ एक महारानी अपनी शहजादियों की शादी के लिये चिंतित दिखाई देती है। एक शहीद का आफर आता है पर समस्या यह है कि दोनों शहजादियों में से किसे पसंद किया जाये? नैतिक ज्ञान की परीक्षा होती है। उनमें से एक शहजादी अपना स्वार्थ छोड़ कर अपनी बहन की मदद करती है। शहजादा उसी को पसन्द करता है जो नेकी करती है। संदेश यह है कि नेकी से मनुष्य ही नहीं मौला भी खुश होते है।
एक जगह साफ सुथरे गार्डन और मधुमक्खी के माध्यम से सफाई, बुरी आदतों और शराब, सिगरेट आदि की हानियाँ और सफाई के महत्व को समझाया गया था। सफाई का महत्व नशे से हानि आदि पर मौलाना साहेब का विशेष ध्यान हैऔर वह इसे एक अभियान की तरह पूरे देश में संचालित कर रहे हैं।मौलाना साहब की इस भावनाको बालिकाओं ने प्ले, पोस्टर, अभिनय और संवाद के माध्यम से बखूबी समझाया।
एक जगह प्ले के माध्यम से
गासिप और चुगली को धर्म सिद्धान्तों के खिलाफ बताया गया।
एक अन्य केबिन में फोटो और संवाद के माध्यम से दो पानी की बूंदों का इतिहास बताया गया। एक बूंद सागर की सैर करती है तो दूसरी सीप में चली जाती है। सीप वाली बूंद अधेरोंऔर गरमी से परेशान तो होती है पर मोती बनने के बाद स्वयं की ठंडक और प्रकाश से जगमगा उठती है। दूसरी बूंद भटकती रहती है। उसे खुद का बचाव करने के लिये सहारा ढूंढना होता है।  यह सहारा तीन प्रकार का है। एक अच्छे उपदेश, दूसरा सही उपदेशक और तीसरा धर्म गुरु की शरण। यह तीनों हो तो इंसान को सही राह मिलती है। सीप वाली बूंद की तरह कष्ट उठाने वाला इंसान खरे मोती की तरह होता है। सभी जगह हदीस की आयतें, मौलाना साहेब के उपदेश और इस अनूठे कार्यक्रम का उद्देश्य ऊर्दू में लिखा था जिसका तजुर्मा हिंदी और गुजराती भाषा में बहुत मधुरता और अदब के साथ युवा लड़कियां बखूबी
कर रहीं थी।
नयी पीढ़ी शिक्षा के साथ चरित्रवान बने, कर्मठ बनें, धर्म के प्रति समर्पित हो, प्रामाणिक होऔर राष्ट्र भक्त हों यह उद्देश्य लेकर चलने वाले धर्म गुरु बडे़ मौलाना साहेब की आध्यात्मिक उर्वरा शक्ति से यह शांतिप्रिय, देशभक्त समाज धन और धर्म दोनों की दृष्टि से समृद्धि वान बनें और राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य सहयोग देते रहें। धर्म गुरु मौलाना साहेब की कृपा सभी को प्राप्त होती रहे। महिलाओं को सम्मानित दर्जा देने वाले इस समाज की बहनें और अधिक प्रगति कर समाउने का मान बढाये ।