जिन्होंने भगवान नाम के मोती लूट लिए वही माला माल हुए- पं. अरविंद

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बृजेश खण्डेलवाल , आम्बुआ

जीवन मे कभी ईर्ष्या भाव नही रखना चाहिए।जब तक जीवन में गुरु है तब तक द्वेषता मन में नही आ सकती है। जीवन में कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि मैं नहीं होता तो कुछ भी नहीं होता। तुम्हारे बाद भी संसार की गतिविधियां अपनी गति से चलती रहती है तुम्हें केवल भगवान नाम का स्मरण करना चाहिए। भागवत बताती है कि जिन्होंने भगवान नाम के मोती लूट लिया हो वह मालामाल हो जाते हैं उक्त उद्गार आम्बुआ में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में कथा के अंतिम दिवस ओर छठवे दिन व्यासपीठ से कथा वाचक पंडित श्री अरविंद भारद्वाज ने व्यक्त किए। कथा में भगवान श्री कृष्ण के गो चराने जाने पर वहां वन में अपने मित्रों के साथ एक साथ भोजन करने तथा एक सखा मधुमंगल जो कि बहुत गरीब था जिस ने श्रीकृष्ण को भोजन कराने का आश्वासन दिया था। गरीब होने के कारण घर में भोजन नहीं होने पर खट्टी कढी लाता है तथा संकोच के कारण एक तरफ जा कर पीने लगता है कृष्ण ने दौड़कर उससे भोजन मांगा । मगर तब तक वह कढी पी गया।उसके मुंह पर लगी थोड़ी सी कढ़ी भगवान ने चाट ली तथा यह बताया कि अमीर गरीब भगवान के सामने कुछ नहीं होता है उनको सब बराबर है।भगवान के अपने सखा के मुंह से कढ़ी चाटने की घटना पर ब्रह्मा जी को शंका हुई यह भगवान भी या नहीं परीक्षा के लिए समस्त गाय तथा ग्वाला को अदृश्य कर दिया मगर बाद में अपनी भूल सुधारी।

कथा में गेंद खेलने की कीड़ा तथा यमुना में कूदकर कालिया नाग के मान मर्दन करने एवं उसे जमुना छोड़ने का आदेश देने एवं निर्वस्त्र स्नान करती। गोपियों के वस्त्र चुराने तथा उन्हें समझाने की कथा के बाद भगवान कृष्ण द्वारा चूड़ी वाली (मनिहारिन) का रूप धर राधा से मिलने की कथा में मनमोहक भजनों की प्रस्तुति तथा पंच रास के दर्शन जिसमें गोपियों के साथ ही नारी रूप में भगवान भोलेनाथ के सम्मिलित की कथा सुनाई । कंस द्वारा मथुरा में धनुष यज्ञ का आयोजन तथा अकरुर को वृंदावन भेजकर श्री कृष्ण एवं बलराम को यज्ञ में बुलाने का निमंत्रण, अग्रसेन तथा माता देवकी पिता वासुदेव को कारागार से छुड़ाने के बाद श्री कृष्ण का द्वारका चले जाना।इसके बाद रुक्मणी विवाह की कथा में श्री कृष्ण रुक्मणी के विवाह की रस्म में श्रोताओं ने कन्यादान किया
कथा में श्री कृष्ण का विवाह सत्य भामा से होने तथा श्री कृष्ण पर मणि चुराने का कलंक लगना 16000 राजकन्या को मुक्त कराने तथा उनसे विवाह की कथा सुनाई गई सुदामा कृष्ण की मित्रता तथा सुदामा का द्वारका में आना कृष्ण द्वारा स्वागत आदि की कथा सुविस्तार कही।
कथा के अंत में भगवान कृष्ण के वंशज यदुवंशी आपस में युद्ध कर मर जाने तथा एक वहेलिये द्वारा तीर चलाने से भगवान श्री कृष्ण के पांव में तीर लगने लगता है इसके बाद वह अपने लोक प्रस्थान करते हैं तब देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।
कथा विश्राम दिवस पर पं आयोजक समिति द्वारा पं भारद्वाज का भावभीना स्वागत किया।पं भारद्वाज ने शानदार कथा आयोजन पर आयोजक समिति ओर नागरिकों को बधाई और धन्यवाद दिया।कथा तथा कथा ने प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष सहयोग करने वालो सदस्यों का आभार व्यक्त किया गया। महाआरती केबाद प्रसादी के रूप में भंडारा किया गया। जिसमे बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। इसके बाद बैंड बाजों के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से भव्य शोभा यात्रा निकाली गई।मार्ग में न्यू बस स्टैंड पर श्याम प्रेमी मित्र मंडल ने हार माला से स्वागत किया।

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