दीपावली पर सजे बाजार : त्योहार को लेकर उत्साह चरम पर

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झाबुआ लाइव के लिए पारा से राज सरतलिया की रिपोर्ट-
बैल और गाय को गाय गोहरी पर रंगने के लिए रंगए रंगोली के रंग, घंटी, पूंदे, मिट्टी के दीपक, तेज आवाज वाले फटाकों के साथ देशी धमुका की खूब मांग है। अंचल में दीपावली का त्योहार व बाजार अपने पूूरे शबाब पर है। करीब एक माह पूर्व से ही दीपावली की त्योहार मानने की तैयारियां सभी घरों में लिपाई-पुताई व रंग रोगन करने के साथ आरंभ हो जाती है। इस त्योहार का लेकर बच्चों-बूढ़ों व जवान में जमकर उत्साह देखा जा रहा है। आदिवासी बाहुल झाबुआ जिले में दीपावली के त्योहार पर गोवर्धन पूजा का पर्व गाय गोहरी के रूप में मनाते है जिसमे गाय व बैल को अच्छी तरह नहलाकर उनको हरे व लाल रंगों से रंगा जाता है उनके गले में घंटी और सिंग पर रंगीन फुंदे बांधे जाते है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है व गाय गोहरी का आयोजन होता है।
दीपावली को लेकर उत्साह
दीपावली पर बच्चों में रंग बिरंगे फटाके, फुलझडी, चकरी राकेट अनार आदि के प्रति विशेष आकर्षण रहता है। शहरी क्षेत्र में जहां तेज आवाज के महंगे बम फटाके का इस्तेमाल किया जाता है। वही ग्रामीण क्षेत्र भी आजकल इन मंहगे फटाकों से अछूते नहीं रहे है। बावजूद इसके ग्रामीण अंचलों में विशेष कर आदिवासी अंचल में स्वदेशी साधन धमुका के प्रति आज भी लगाव मे कोई कमी नहीं है। दीपावली पर आदिवासी बंधु फटाके के साथ साथ इस इस देशी फटाके को जरुर खरीदते है जो कि फटाकों से सस्ता होने के साथ तेज आवाज भी करता है। इस धमुका नामक फटाके को चलाने के लिए पोटाश की जरुरत होती जो की गंधक व बारुद का मिश्रण होता है, जिसे धमुका के छोटे से छेद में भर कर चलाया जाता हैं। हालांकी आजकल सरकार द्वारा पोटाश बिक्री पर प्रतिबंध है। बावजूद इसके आदिवासी किसान लोग इस धमुका यंत्र को बारह महीने ही प्रयोग में लाते रहते। करीब-करीब यह देशी फटाका अंचल के किसाने के हर धर मे उपलब्ध रहता है जिसे फसल पकने पर नुकसान से बचाने व पशु पक्षी आदी जानवर को भगाने के लिए उपयोग मे लाते हे।
क्या है धमुका- धमुका यंत्र लोहे की एक छोटी कोठी व लोहे के सरिये से बना रहता है जिसमे दो छेद एक ऊपर व दूसरी साईड बीच में रहता है। ऊपर वाले छेद मे सरिया डल रखते वही साईड वाले छेद मे पोटास बारुद टाईट भरा जाता है। पोटाश भर कर बाद मे इस छेद को कागज आदि किसी भी वस्तु से बेद कर देते है। पश्चात इसके सरये को पकडक़र जमीन पर कोठी की तरफ से जोर से फेंकते या मारते जिससे दबाव स्वरुप बारुद मिक्स पोटाश फटता है व तेज अवाज करता है जो कि फटाकों के मुकाबले लागत में सस्ता पड़ता है। हालांकि धमुका आदिवासी अंचल का देशी फटाका है। वही शहरी क्षेत्र मे इसे कोठी या गज कोठी आदी के नाम से भी जाना जाता है। पारा के युवा पंच शुभम सोनी का कहना है कि हमें धमुका खरीदना चाहिए यह गरीबो के रोजगार का साधन तो है ही और ग्रामीण संस्कृति का एक हिस्सा भी है इससे क्षेत्र में लघु उद्योग को बढ़ावा भी मिलेगा।