श्रीमद भागवत कथा में कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया

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थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट-

नल-स्थानीय इंद्रपुरी कॉलोनी में श्री ओमप्रकाश नागर के निवास पर आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस की कथा की शुरुआत श्री भागवत भगवान की है आरती, पापियों के पाप को है तारती तथा  मधुराष्टकं के पाठ से प्रारम्भ हुई। कथा को प्रारम्भ करते हुए  अनुराग मुखियाजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को एकादशी का व्रत को करने की विधि बताते हुए बताया कि एकादशी के दिन केवल फल का आहार ही लिया जाय तो ही उसका पूण्य फल प्राप्त होता है । साथ ही व्रत की सम्पूर्ण विधि बताई । पश्चात भक्त  प्रहलाद के जन्म की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि भक्त प्रहलाद राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी भगवान श्री नारायण के अनन्य भक्त हुए । उनके पिता हिरण्यकश्यप को श्री नारायण का नाम लेने से और उनकी भक्ति करने से इतना क्रोध आया कि उन्होंने भक्त प्रहलाद को पर्वत से नीचे, उबलते हुए तेल की कढ़ाई में ओर अनेक प्रकार से मारने की कोशिश की परंतु प्रहलाद तो नारायण के भक्त थे तो उनको किसी भी प्रकार से कोई हानि नहीं हुई और वे हर बार बच गए । उनकी बुआ होलिका जिसको ब्रम्हाजी से वरदान प्राप्त था कि वह जलती अग्नि में चली जाए तो भी जीवित रहती है । अंत मे प्रह्लाद के पिता ने होलिका को बुलवाया ओर उनको कहा कि तुम प्रह्लाद को अपनी गोद मे बैठाकर जलती हुई अग्नि में बैठ जाओ तो प्रह्लाद जल कर भस्म हो जाएगा और तुम बचकर बाहर निकल जाओगी पर प्रह्लाद तो नारायण के भक्त थे, वे बच गए और होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई । तभी से फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका का दहन किया जाता है । इसके पश्चात श्री मुखियाजी ने भगवान नृसिंह अवतार का वर्णन किया और भगवान नृसिंह ने राजा हिरण्यकश्यप को मोक्ष प्रदान किया । भगवान नारायण के वामन अवतार की व्याख्या करते हुए बताया कि भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान में मांगी, एक पग में पूरी पृथ्वी, दूसरे पग में ब्रम्हांड नाप लिया । अंत मे भगवान ने कहा कि तीसरा पैर कहाँ रखु तो राजा बलि ने कहा की तीसरा पैर मेरे मस्तक पर रख दो तो भगवान ने उन्हें पाताल लोक पहुंचा दिया और वहां का राजा बना दिया । फिर भगवान के मत्स्यावतार की कथा, गजेंद्र मोक्ष की कथा कही । मध्य में राजा भगीरथ द्वारा घोर तपस्या कर माँ गंगा को धरती पर लाने की कथा कही जिसको भगवान शंकर ने अपनी जटाओं में धारण किया और फिर पृथ्वी पर राजा सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए जल धारा के रूप में जाने की आज्ञा प्रदान की तभी से गंगा मैया नदी के रूप में धरती पर आज भी विद्यमान है ।  रामावतार की कथा का वर्णन किया और भगवान नारायण के दो पार्षद जय,विजय जो रावण एवं कुम्भकर्ण बने उनका उद्धार किया । चतुर्थ दिवस की कथा के अंत मे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा प्रारम्भ हुई और व्यास पीठ से मुखियाजी ने जैसे ही भगवान के जन्म की उद्घोषणा की, पूरा पंडाल जो श्रद्धालुओं से खचाखच भरा था, नाचते हुए झूम उठा और ढोल धमाकों के साथ एक नन्ही बालिका जिसको कृष्ण बनाया। मुम्बई(महाराष्ट्र)के श्रद्धालु भक्त जो वसुदेव बनकर अपने सिर पर उठा कर पंडाल में जैसे ही लाये, पुष्प वर्षा की गई, गुलाल-अबीर से स्वागत किया ।मिश्री,चॉकलेट, खिलोनो की भक्तों के बीच वर्षा की गई, दूध-दही, माखन, मिठाई का नैवेध धराया ओर पूरा पंडाल जयकारों से गूंज उठा आनंद उमंग भयो जय हो नंदलाल की । गोकुल में आनंद भयो जय कन्हैलाल की । भगवान श्री कृष्ण की आरती, आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की के साथ चतुर्थ दिवस की कथा को विराम दिया गया ।