स्वर्गीय दिलीपसिंह जी अंतिम इच्छा आदिवासियों के हित ओर उनके सम्मान मे पूरी करेगी सरकार ?

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चंद्रभानसिंह भदोरिया @ Editor in chief

कल झाबुआ मे कद्दावर आदिवासी नेता; आदिवासी समाज के चिंतक स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया की पुण्यतिथि मनाई गयी.. उनकी प्रतिमा स्थल पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलो ओर संगठनों ने पहुंचकर आदर के साथ श्रंद्धांजलि दी .. लेकिन सरकार इस आदिवासी नेता के सम्मान मे उनकी एक इच्छा जो आदिवासियों के हित मे है वह ना तो उनके जीते जी पूरी कर सकी ओर ना ही उनके दुनिया से विदा होने के 5 साल बाद ही पूरी कर सकी है ओर इच्छा पूरी नही करेगी यह लग भी रहा है क्योकि सरकार को दिलीपसिंह भूरिया ओर आदिवासियों से ज्यादा शराब ठेकों से मिलने वाले राजस्व की चिंता है पश्चिम मध्यप्रदेश के झाबुआ ओर अलीराजपुर जिले से ही सरकार को ₹ 300 करोड से अधिक का राजस्व मिलता है यह वैध राशि है ओर अवैध बेहिसाब है जिसके वितरण मे व्यवस्था मे शामिल ज्यादातर लोग शामिल होते है ।

यह पत्र लिखा था पीएम मोदी ओर सीएम शिवराज को

स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया ने अप्रेल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर यह मांग की थी कि विकास के लिऐ करोडों रुपये भेजने के बावजूद भी इलाके विकास से अछूते है ओर इससे अर्जित राशि का उपयोग शराबखोरी मे हो रहा है साथ ही घोषित तोर पर उन्होंने लिखा था कि झाबुआ ओर अलीराजपुर जिले मे 300 करोड तो सरकार को लीगल मिल रहे है इसके बाद अवैध शराब कारोबार कितना होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया ने सरकारों को संविधान के अनुच्छेद 47 का भी स्मरण करवाते हुऐ लिखा था कि यह अनुच्छेद सरकार को एक आदर्श राज्य की स्थापना के लिए दवाइयों के प्रयोजन को छोड़ते हुऐ मादक पदार्थों के उपयोग या विक्रय ना करने की नैतिक सलाह देता है उन्होंने संविधान की 5 वी अनुसूची के तहत 51 % से अधिक आबादी वाले विकासखंडो मे शराब पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की थी तथा कहा था कि वैसे भी आदिवासियों को 5 किलो महुआ की पारंपरिक शराब अपने सामाजिक ओर धार्मिक प्रयोजनों के लिए प्राप्त है तो अंग्रेजी ओर देशी शराब कारोबार की आवश्यकता क्या है साथ ही उन्होंने सुझाव दिया था कि शराब से प्राप्त आय मात्र 10% है अंत सरकारो को राजस्व बढाने के वैकल्पिक उपायों पर काम करना चाहिऐ ।

उनकी मोत के साथ दफन हो गयी शराबबंदी की मांग

स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया के इस पत्र के बाद प्रशाशनिक ओर राजनीतिक गलियारों मे हलचल मच गयी थी मगर पावरफुल शराब लाबी ओर सरकार के राजस्व मोह मे शिवराजसिंह चौहान ने उनकी यह मांग दरकिनार कर दी थी यहां तक की उनकी मृत्यू पर अंतिम संस्कार सह शोकसभा मे आये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से यह अपेक्षा जिलेवासी कर रहे थे कि शायद शराबबंदी का एलान कर शिवराजसिंह चौहान स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे लेकिन मुख्यमंत्री ने ऐसा नही किया ..मीडिया ने उनसे उस समय यह सवाल भी किया था मगर शिवराज टाल गये .. उनके पत्र के 5 साल बाद भी शराब कारोबार वैधानिक ओर अवैधानिक तरीके से धडल्ले से जारी है ओर उनकी यह मांग उनकी मोत के साथ ही दफन हो गयी .. उसके बाद किसी राजनेता मे ऐसा नैतिक साहस नही दिखा की वह इस मांग को जन आंदोलन मे तब्दील कर सके ।

इसलिए जायज थी उनकी मांग

स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया की गुजरात से सटे झाबुआ ओर अलीराजपुर जिले सहित आदिवासी इलाको मे शराबबंदी की मांग जायज थी .. दरअसल मध्यप्रदेश की सरकार गुजरात मे शराबबंदी होने का जमकर फायदा उठाती है उसने झाबुआ ओर गुजरात की सीमा पर 1 दर्जन से अधिक शराब की दुकाने खोली है जिन गांवो मे यह शराब दुकाने खोली गयी है उनमें आदिवासी समाज रहता है ओर जो गुजरात से 500 मीटर से 10 किमी की दुरी पर है ओर यही दुकाने मध्यप्रदेश सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व देती है यानी करोडों रुपये .. अब रिकार्ड मे इन दुकानो से करोडों रुपये की शराब आदिवासी हर साल पी जाते है ऐसा बताया जाता है लेकिन हकीकत मे यह शराब गुजरात चली जाती है ओर ठेकेदार मोटा मुनाफा काटते है मलाई आबकारी ओर पुलिस के कुछ अधिकारी खाते है ओर कागज पर बदनाम होता है वह आदिवासी जो इन ठेके वाले गांव मे या तो बीपीएल या गरीबी रेखा के नीचे या अति गरीब यानी अंत्योदय राशन कार्ड धारी .. यह भी स्थापित तथ्य है कि आदिवासी तो पारंपरिक महुआ से बनी शराब या ताड़ी को प्राथमिकता देता है अगर उसे पूजा पाठ करना है या अगर कभी पीना भी हो तो .. ओर आदिवासी समाज मे सभी पीते हो ऐसा भी नहीं है हजारो लोग इससे दूर भी है हाथ तक नही लगाते .. मगर विडंबना देखिऐ खुद उनके वोटों से चुनी सरकार उनको बदनाम कर रही है शराब ठेकों के आंकड़े यह साबित कर रहे है कि झाबुआ ओर अलीराजपुर जिले के आदिवासी ₹ 300 करोड से अधिक की शराब साल भर मे हमारे ठेकों से खरीदकर पी जाते है मगर अफसोस के इस समाज के सभी चुने हुऐ जनप्रतिनिधियों ने खामोशी ओढ ली है ..सिर्फ एक ही शेर था जो शराबबंदी को लेकर गरजा था मगर नियति ने उसे छीन लिया ।

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