आधा सत्र निकलने के सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों को नहीं मिली यूनिफार्म, अचानक ड्रेसकोड बदलने से व्यापारी परेशान

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हरीश राठौड़, पेटलावद
सरकारी स्कूल के बच्चों की ड्रेस एक पहेली बनती जा रही है। आधा सत्र पूर्ण होने के बावजूद भी बच्चों को स्कूल ड्रेस नहीं मिल पा रही है। स्कूली बच्चे ड्रेस न पाने के कारण निराश है तो माता पिता को शासन से शिकायत है। आखिर आधा सत्र खत्म होने को आया है अभी तक स्कूल ड्रेस क्यों नहीं मिल रही है?
वहीं प्रशासन समूहों के माध्यम से स्कूल ड्रेस बनवाकर वितरण करवाने की बात कह रहा है किंतु अभी तक प्रक्रिया की शुरूआत भी नहीं हुई है। पहले जो प्रक्रियाएं हुए है उन्हें निरस्त कर दिया गया है। प्रक्रिया में नया फॉर्मूला लगाते हुए हर समूह को अलग अलग निविदा निकाल कर कोटेशन प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है जिस के चलते हर समूह को अलग अलग निविदा निकाल कर कोटेशन प्राप्त करना होंग। पेटलावद विकासखंड में 36 हजार बच्चों के लिए 72 हजार ड्रेस की आवश्यकता है और इसके लिए 100 समूह के माध्यम से ड्रेस की सिलवाई का कार्य करवा कर उन्हें वितरण करवाया जाएगा जिसके लिए कपड़ा खरीदी के लिए निविदा निकाली जा रही है। इस माध्यम से व्यापारी गुणवत्ता युक्त कपड़े के अपने अपने रेट भर कर देंगे।
व्यापारी सक्रिय-
ड्रेस प्रदान का बड़ा काम होने से व्यापारी सक्रिय नजर आ रहे है। पेटलावद बेत्र में ही लगभग 2 करोड़ रूपए का कार्य होगा क्योंकी 36 हजार बच्चों को 600 रूपए प्रति बच्चें के हिसाब से पैसा दिया जाएगा, जिसके लिए व्यापारियों ने सक्रियता दिखाते हुए आजीवीका मिशन और जनपद कार्यालय सहित जिला कार्यालय में कपड़ा प्रदाय करने का कार्य लेने के लिए चक्कर लगा रहे है, किंतु कई व्यापारियों के पास टेस्टिंग रिपोर्ट भी नहीं है.
ड्रेस का कलर ही बदल दिया-
इधर प्रशासन ने पूर्व में चली आ रही ड्रेस का कलर और क्वालिटी ही बदल दी है, जिससे व्यापारियों में हडक़ंप है। जिला प्रशासन द्वारा इस बार प्राथमिक शाला के लिए मेहरून चेक्स का शर्ट और मेहरून पेंट कर दी, वहीं माध्यमिक शाला के लिए ब्ल्यू चेक्स का शर्ट और नेवी ब्ल्यू पेंट का प्रावधान किया है। इस कपड़े की टेस्टिंग रिपोर्ट के साथ ही व्यापारी का जीएसटी नंबर और पेन नंबर भी होना अनिवार्य है।
कपड़ा ही दे सकते है.
इसके साथ ही इस बार समूह को लाभ पहुंचाने के उद्ेश्य से प्रशासन ने सख्त निर्णय लेते हुए व्यापारियों से कपड़ा ही मंगवाया है। तैयार ड्रेस नहीं मंगवाई है, जिसके लिए समूह की महिलाओं को स्वयं ही ड्रेस सिलना है जिसमें समूह की महिलाओं को रोजगार मिलेगा। व्यापारी तैयार ड्रेस का सप्लाई नहीं कर सकते है। समूह के द्वारा ही ड्रेस सिल कर बच्चों को दी जाएगी।
कब बनेगी 72 हजार ड्रेस
आखिर इसमें सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आधा सितंबर माह बीतने को आया है अभी तक ड्रेस बनाने का कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है और कपड़ा खरीद कर समूह द्वारा सिलाई कराने के बाद स्कूलों तक कब तक यह 72 हजार ड्रेस पहुंच पाएगी। पालकों और बच्चों को लग रहा है कि सत्र समाप्त होने के पहले ड्रेस मिल पाएगी या नहीं? आखिर समूह 72 हजार ड्रेसों की सिलाई कर समिति समय में दे पाएगा।