राष्ट्र की अखंडता हिंदू धर्म की रक्षा करना हिंदुओं का धर्म : प्रणवानंदजी

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3झाबुआ लाइव के लिए पारा से राज सरतलिया की रिपोर्ट-
आचार्य शंकर ने आठ वर्ष की आयु में गृह त्याग किया, राष्ट्र की अखंडता एवं हिंदू धर्म की रक्षा के लिए पूरा भारत भ्रमण किया तथा चार मठों की स्थापना की। हिंदू धर्म अहिंसा वादी है परंतु धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने के लिए प्रेरणा देता है, किसी पर भी अन्याय मत करो अपने उपरोक्त किया गया अन्याय सहना भी एक अपराध है। धर्मांतरण एक अन्याय है वह धीरे-धीरे हिंदू संख्या कम कर राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालता है। हिंदू समाज को अपने भाइयों से प्रेम करना सिखना चाहिए। स्वामी प्रणवानंद ने कहा इस पदयात्रा के द्वारा आदिवासी समाज में हिंदू होने का स्वाभिमान जग रहा है। आदिवासियों में धर्म निष्ठा और परंपरा के प्रति आस्था और अपने साधु संतोष के प्रति अपार श्रद्धा है, समाज निर्माण के लिए कष्ट को सहना पड़ता है। पदयात्रा एक तप है, यह नए हिन्दू समाज के निर्माण की क्रांति है। पारा के गणमान्य नागरिकों के साथ अपार जनसमुदाय ने पदयात्रा का भव्य स्वागत किया। ऐसा लग रहा था गांव और शहर के लोग मिल कर हिंदू क्रांति को जन्म दे रहे है। सभा को पूज्य कान्हाजी महाराज, अमेरिका से आये योग शिक्षक विनायक, वालसिंग मसानिया, जानूभाई भील, बद्दुभाई, पंढरीनाथ ने संबोधित किया। आचार्यश्री एवं पदयात्रियों का ठाकुर गजेंद्र सिंह, ओंकार डामोर, प्रकाश छाजेड़, अनिल श्रीवास्तव, मनोहरसिंह डोडिया, शैलेंद्र राठौर, अशोक बलसोर, राजा सरतलिया आदि ने भव्य स्वागत किया एवं धर्मसभा का संचालन शुभम सोनी ने किया और आभर चेतन डोडिया ने माना।