EXCLUSIVE: जहां दो वक्त की रोटी मुश्किल, वहां क्यों शराब के ठेकों पर छप्पर फाड़कर बरसा धन

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आलीराजपुर ”आजतक” की स्पेशल रिपोर्टः झाबुआ और आलीराजपुर मध्य प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार होते है लेकिन यहां शराब के ठेकों की नीलामी में पैसा छप्पर फाड़कर बरस रहा है। सरकार को उम्मीद थी कि उससे कई ज्यादा गुना राजस्व इन जिलों में मिला है। चौंकाने वाली बात है कि सबसे ज्यादा राजस्व उन ठेकों से मिला है जो गुजरात सीमा से सटे हुए है और जहां गरीब रेखा के नीचे रहने वाले परिवार की तादात सबसे ज्यादा है। आलीराजपुर ”आजतक” की इस स्पेशल रिपोर्ट में जानिए क्यों बरस रहा है धन और किसे मिल रहा है फायदा।

पहले हम जान लेते है आलीरापुर जिले को। यहां शराब के ठेके के लिए राज्य सरकार की ओर से 52 करोड़ रूपयों की न्यूनतम कीमत तय हुई थी। ठेकेदारों को इसके आगे बोली लगानी थी, लेकिन ठेके गए 130 करोड़ रूपयों में। यानि सरकार को जितनी उम्मीद थी उससे कई गुना ज्यादा। कुछ ऐसा ही हुआ झाबुआ में। यहां शराब के ठेकों की नीलामी 118 करोड़ रूपयों में हुई। सरकार यह भी सरकार की उम्मीद से कई गुना ज्यादा है।

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अब जान लेते है कि ऐसा क्यों। वह भी उस अंचल में जहां ज्यादातर परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते है। खासतौर पर तो गुजरात सीमा से सटे कुछ गांव ऐसे है जहां महज 500 लोगों की आबादी है लेकिन अंग्रेजी शराब के ठेके करोड़ों रूपयों में गए है। इस अंचल में शराब के शौकीनों के लिए महुआ या ताड़ी ही पहला प्यार है। यदाकदा ही वह विदेशी शराब का सेवन करते है फिर यहां ठेके इतने महंगे क्यों।

दरअसल, नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में शराबबंदी है। राष्ट्रपिता की जन्मभूमि में शराब न बिकने का फायदा एमपी की सीमा से सटे शराब के ठेकेदार उठाते है। यहां से वह आसानी से शराब का अवैध परिवहन पड़ोसी राज्यों में किया जाता है। यह मानने की वजह भी है। क्योंकि जहां एक दिन मजदूरी ना मिले तो कई घरों में चूल्हा जलना मुश्किल हो जाता है और दो जुन रोटी का संकट खड़ा हो जाता है। ऐसे में करोड़ों के टेंडर जारी होना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है बल्कि पूरी दाल ही काली है।

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