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चंद्रभानसिंह भदौरिया/चीफ एडिटर झाबुआ-अलीराजपुर लाइव
यूं तो 2011 की जनगणना मे मध्यप्रदेश का आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिला 37 फीसदी साक्षरता दर के साथ देश का सबसे निरक्षर जिला बना था लेकिन अब यही अलीराजपुर अपने नए ‘अलीराजपुर हल’ के लिए तेजी से चर्चित हो रहा है। दरअसल अलीराजपुर के आईटीआई के छात्रों ने जिले की ‘विज्ञान प्रचार प्रसार समिति’ के मागर्दर्शन से अपनी आईटीआई वर्कशाप में ‘यूरोपियन हैवी प्लग’ तकनीक के हल का निर्माण किया है यह तकनीक यूरोप मे 700 साल पहले इस्तेमाल मे लाई जाती थी। दिलचस्प बात यह है कि इसे बनाने वाले सभी छात्र आदिवासी होकर किसानों के बेटे है ओर अपने पिता के द्वारा खेतों मे बैलों के साथ होने वाले श्रम को देख चुके है ओर उनमें आने वाली परेशानियों से प्रेरित होकर सभी छह लोगो ने इस ‘अलीराजपुर हल’ के निर्माण की योजना बनाई और गूगल की मदद से और अपने अनुभवों से अपने मिशन मे कामयाब हुए। इन सफल छात्रों मे हितेश कमेडिया य वीरेंद्र भिंडे, करणसिंह, राकेश पचाया, विपिन अवासिया, विजय वरिया एंव गोपाल भिंडे शामिल है।
यह विशेषता है अलीराजपुर हल की
आईटीआई अलीराजपुर के इन छात्रों ने हल बनाकर इसका नाम ‘अलीराजपुर हल’ रखा है इस हल की विशेषता यह है कि इस हल मे दो पहिए लगे है जिसके चलते बैलो पर ज्यादा काम का बोझ नहीं पडता महज 25 फीसदी जोर की बैलों पर पड़ता है और पहियों के बाद एक बड़ा मोटा चाकू दिया गया है जो जमीन को काटता है ओर ओर उसके ठीक पीछे एक बडा नुकीला और मिट्टी को बाहर फेंकने वाला एक कटर लगा है जैसे ही चाकू जमीन काटता है वैसे ही बडा कटर मिट्टी को गहराई तक उखाडक़र बाहर करता है और पीछे किसानों के पकडऩे के लिए लंबा लीवर यानी हैंडिल ऐसा बनाया गया है कि दोनो हाथो का इस्तेमाल करना होता है इससे 75 फीसदी श्रम कम लगता है और जुताई बेहद उम्दा गुणवत्ता के साथ हो जाती है। अब इसका निर्माण करने वाले छात्रों वीरेंद्र और हितेश का कहना है कि अब हम इसका अपडेटेड वर्जन लाने की तैयारी में है जिसमेें एक बैल से काम हो जाएगा और किसान हल पर बैठकर जुताई करेगा।

किसान भी अलीराजपुर हल से खुश बोले हमारी और हमारे बैलों का पीसना अब कम बहेगा

अलीराजपुर हल इन दिनों कृषि विभाग अलीराजपुर के फार्म हाऊस पर डेमों के लिए रखा गया है यहा पुराना पारंपरिक हल भी है फिलहाल चुनिंदा किसानों को बुलाकर उन्हें यह अलीराजपुर हल दिखाया जा रहा है प्रैक्टिकल करवाया जा रहा है साथ ही पुराना हल भी चलवाया जा रहा है ताकी किसानों को अंतर समझ आ सके। ऐसे ही किसान शंकर और मुकेश परमार ने बताया कि ‘अलीराजपुर हल’ चलाकर लगा कि हमे हमारी ताकत ओर ऊर्जा मात्र 25 फीसदी ही खर्च करनी पड़ रही है। शंकर कहते है कि तत्काल इसे खरीदने को तैयार है और मुकेश कहते है कि इससे बेहतर और सस्ती तकनीक शायद ही कोई दूसरी हो सकती है।

कलेक्टर खुश बोले-इसका घरेलू निर्यात करेंगे

अलीराजपुर के कलेक्टर गणेश शंकर मिश्रा आईटीआई के इन बच्चों की इस उपलब्धि पर बेहद खुश है उनके अनुसार इन बच्चो ने 700 साल पुरानी यूरोपीय हैवी प्लग शैली को पुनर्जीवित कर दिया है। कलेक्टर कहते है कि आज हमारे देश मे जुताई या तो पुराने हल से होती है या संपन्न किसान ट्रैक्टर से करते है लेकिन बीच के उपायों पर कोई सोचता ही नहीं है कलेक्टर कहते है कि इन बच्चों ने सोचा और कर दिखाया। कलेक्टर गणेश शंकर मिश्रा के अनुसार इस ‘अलीराजपुर हल’ का अब व्यावसायिक उत्पादन कर हम घरेलू निर्यात करने की योजना पर काम कर रहे हैं।