राष्ट्रीय पक्षी मोर की मौत, लगातार घट रही है मोरों की संख्या

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झाबुआ लाइव पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट

मोरनी के साथ मोहल्लेवासी।
मोरनी के साथ मोहल्लेवासी।

राष्ट्रीय पक्षियों को कागजों पर ही राष्ट्रीयता मिली हुई है, हकीकत में ऐसा कुछ नही है। पेटलावद तहसील राष्ट्रीय पक्षी मोर के कारण प्रसिद्ध है लेकिन इस पक्षी की यहां कोई कदर नहीं हो रही है। आये दिन किसी न किसी कारण वश इसकी मौत हो रही है लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। साल दर साल इनकी संख्या में गिरावट हो रही है इस बात से शासन पुरी तरह से बेफ्रिक होकर कार्य कर रहा है। प्रशासन की मोर के प्रति उदासीनता के कारण गुरूवार को फिर एक मोरनी की ईलाज के अभाव में मृत्यु हो गई। नगर के सुभाष माग पर गुरूवार दोपहर को एक मोरनी को बिजली के तारों से करंट लग गया। तत्काल मोहल्ले के रहवासी भीमा मेडा, लोकश शुक्ला ओर गौरव मकवाना मोरनी को लेकर पशु चिकित्सालय पंहुचे। एक घंटे तक वहां कोई नही मिला। मोबाइल पर चर्चा कर डॉक्टर रजनिश शर्मा को चिकित्सालय पर बुलवाया गया। 20 मिनट बाद डॉक्टर शर्मा चिकित्सालय पर पंहुचे व मोरनी को पानी पिलाने का कहकर एक इंजेक्शन लगाया। इस उपचार के बाद मात्र 5 मिनट में एक हिचकी के साथ मोरनी ने दम तोड़ दिया। मोरनी के मरने के बाद भी उसके साथ राष्ट्रीय पक्षी जैसा व्यवहार न करते हुए। डॉक्टर ने मोहल्ले वासियों को वन विभाग भेज दिया। यहां भी आधे घंटे तक कोई सुनवाई नहीं हुई। करीब आधे घंटे बाद मोरनी के शव का पंचनामा बनाने का कहकर मोरनी के शव को वहीं रखवा लिया गया।
हर माह हो रही मोरो की मौत
राष्ट्रीय पक्षी मोर के प्रति यहां का प्रशासन कितना लापरवाह हे इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शासन के पास इनका कोई रिकार्ड नही है। कितने मोरों की मौत होती है और कितने जन्म लेते है इसकी भी सही जानकारी प्रशासन के पास नही है। जबकि एक वक्त था कि सबसे अधिक मोरो की संख्या पेटलावद तहसील में हुआ करती थी। लेंकिन प्रशासन की लापरवाही से अब बचे हुए मोरों की भी बेदर्दी से मौत हो रही है।