फर्जी जाति प्रमाण देकर नगर अध्यक्ष बनने पर सुनीता वसावा पर हो सकती है एफआईआर

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झाबुआ लाइव के लिए थांदला से रितेश गुप्ता की रिपोर्ट
असत्य पर सत्य की विजय होती है। उक्त कहावत एक बार फिर साबित हो गई जब जाति के फर्जी प्रमाण-पत्र को लेकर नगर परिषद के चुनाव के समय से ही विवादों में बनी रही थांदला नगर परिषद अध्यक्ष चम्पा उर्फ सुनीता को आखिर पद से हटाए जाने व धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज करने का निर्णय हो गया। इस निर्णय की जानकारी थांदला नगर में मिलते ही खुशी का वातावरण छा गया और व्यथित लोग जहां एक दूसरे को बधाई देते रहै तो कांग्रेस ही नही भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता भी खुशी से झूम उठे।
इन्होंने दिया निर्णय
अजजा के जाति प्रमाण-पत्र की उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने चम्पा उर्फ सुनीता के वसावा आदिवासी (भील) जाति प्रमाण पत्र के बारे में यह निर्णय दिया कि मध्यप्रदेश अधिसूचित जाति-उपजाति में वसावा आदिवासी नही है। समिति के अध्यक्ष एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव बीआर नायडू समिति के सचिव एवं आयुक्त आदिवासी विकास विभाग शोभित जैन, अनुसंधान अधिकारी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग दीपिका खन्ना, सचिव राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग नीतिराज सिंह तथा संयुक्त संचालक आजा अनुसंधान विकास जीसी मलावी ने षिकायत की जांच के अनुसंधान पश्चात वसावा भील जाति के प्रमाण-पत्र प्रकरण क्रमांक 3194/07 को निरस्त कर विधि अनुरूप कार्रवाई करने का निर्णय 19 फरवरी की बैठक में लिया तथा 18 मार्च को झाबुआ कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, आयुक्त, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास, उच्च न्यायालय खंडपीठ इन्दौर को इस निर्णय से अवगत करवाते हुऐ चम्पा उर्फ सुनीता के विरूद्ध विधि सम्मत कार्रवाई की अनुशंसा की।
इन्होंने की थी शिकायत
नगरीय निकाय के चुनाव के दौरान ही कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खडी मार्था डामर ने चम्पा के जाति प्रमाण-पत्र पर आपत्ति दर्ज की थी परंतु बिना जांच पड़ताल के निर्वाचन अधिकारी के रूप में मौजूद एसडीएम प्रहलाद अमरचिया द्वारा दर्ज आपत्ति को खारिज कर चम्पा उर्फ सुनीता का नाम निर्देषन पत्र स्वीकार कर लिया। चुनाव में विजय घोषित होकर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर बैठ गई। शिकायत कर्ता मार्था डामर ने फर्जी जाति के प्रमाण-पत्र की शिकायत जिला निर्वाचन अधिकारी से लेकर प्रदेश निर्वाचन अधिकारी तथा अजा-जजा जाति के आयोग को की गई थी साथ ही उच्च न्यायालय इंदौर में भी याचिका प्रस्तुत कर चंपा उर्फ सुनीता के फर्जी जाति मामलों को चुनौती दी थी।
इन्होंने दिया जांच प्रतिवेदन
उच्च स्तर पर शिकायत पर जांच के आदेश हुए। जिला पुलिस अधीक्षक व जिला कलेक्टर ने जाति प्रमाण-पत्र की जांच का जिम्मा सहायक आयुक्त आदिवासी विकास झाबुआ तथा अनुविभागीय अधिकारी पुलिस थांदला का सौंपा। दोनों जांच अधिकारियों द्वारा अपनी जांच रिपोर्ट में साक्ष्य व दस्तावेजों के आधार पर स्पष्ट कर दिया था कि चंपा उर्फ सुनीता का जाति प्रमाण-पत्र फर्जी है तथा अपनी रिपोर्ट वरिष्ठालय को प्रस्तुत कर दी थी। जांच अधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक एवं सहायक आयुक्त आदिवासी विकास ने अपना जांच प्रतिवेदन जनजाति आयोग मध्यप्रदेश शासन को भेज दिया था परंतु लंबे समय तक उसका निर्णय नहीं हुआ।
उच्च न्यायालय ने दिए निर्देश
मार्था डामर की और से उनके एडव्होकेट आनंद तिवारी भोपाल के आग्रह पर उच्च न्यायालय ने जनजाति आयोग को अपना जांच प्रतिवेदन व निर्णय देने के निर्देश दिए। उक्त निर्देश के पश्चात आयोग द्वारा चम्पा उर्फ सुनीता को आदिवासी होने के प्रमाण प्रस्तुत करने हेतु अनेक अवसर प्रदान किए परंतु वे साक्ष्य प्रस्तुत नही कर पाई और मेडिकल प्रमाण-पत्र अपने एडव्होकेट के माध्यम से प्रस्तुत कर आयोग के समक्ष उपस्थित भी नहीं हुई। अंतत: छानबीन समिति ने तमाम दस्तावेजों के आधार पर आदिवासी न मानते हुए उनका आदिवासी जाति का प्रमाण-पत्र फर्जी मानते हुए निरस्त कर उचित कार्रवाई की अनुशंसा करते हुए उच्च न्यायालय सहित सभी संबंधित अधिकारियों को अपना निर्णय प्रतिवेदन भेज दिया है।
प्रकरण हो सकता है दर्ज
झाबुआ कलेक्टर के मुताबिक अभी निर्णय की जानकारी अधिकृत रूप से छानबीन समिति से प्राप्त नही हुई है जब प्राप्त होगी प्रतिवेदन निर्णय व उसके आदेशानुसार कार्यवाही करने का निर्णय लिया जा सकेगा।
प्रहलाद ने किया कमाल
चम्पा उर्फ सुनीता का आदिवासी जाति का प्रमाण-पत्र झाबुआ एसडीएम रहते हुए प्रहलाद अमरचिया द्वारा बनाया गया था। इसे संयोग ही कहा जाएगा की उसी जाती प्रमाण-पत्र के आधार पर चंपा उर्फ सुनीता ने चुनाव अभ्यर्थी के रूप में अपना नाम निर्देशन पत्र भी थांदला एसडीएम व निर्वाचन अधिकारी के रूप में मौजुद उन्ही प्रहलाद अमरचिया के समक्ष प्रस्तुत किया था और उस पर ही फर्जी प्रमाण-पत्र की आपत्ति उन्हीं के पास दर्ज हो गई थी। जिसे अमान्य करने व नाम-निर्देशन पत्र स्वीकार करने में नगर के एक भू-माफिया उद्योगपति की भूमिका चर्चा में बनी रही थी।
इसलिए आपत्ति मान्य नहीं
चम्पा उर्फ सुनीता के जाति पर आपत्ति को मान्य नहीं करने का मुख्य कारण भी यही रहा की जांच में फर्जी प्रमाण-पत्र बनाने वाले पर भी गाज गिर सकती है और तत्समय वे सेवानिवृति के अंतिम दौर पर थे और वही हुआ प्रहलादजी इस नगरीय निकाय निर्वाचन के बाद थांदला से ही सेवानिवृत हो गए।
कार्यकाल विवादों में रहा
फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर चुनाव में विजय होकर अध्यक्ष पद की शपथ लेने के बाद से ही चम्पा उर्फ सुनीता विवादो में घिर गई। भ्रष्टाचार व पद के दुरूपयोग के साथ-साथ परिषद एवं अन्य पार्टी पदाधिकारियों के मध्य गुटबाजी और विवादो में चर्चा में बनी रही। शिकायतों के चलते कलेक्टर ने भी जांच मे बड़ पैमाने पर अनियमितता पाई। लोकायुक्त ने भी शिकायत के बाद जांच मेंं प्रकरण दर्ज किया।

कांग्रेस प्रत्याशी जाति जनजाति निर्देशन

3 से 7 वर्ष की हो सकती है जेल
फर्जी जाति प्रमाण-पत्र से शासन व जनता के साथ धोखाधड़ी, पद का अनुचित लाभ अर्जित करने पर उच्च न्यायालय द्वारा भी एफआईआर दर्ज करने के निर्देश हो सकते है अथवा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर व जिला पुलिस अधीक्षक निर्णय लेकर एफआईआर दर्ज करते है तो धारा 467, 468, 469, 470, 471, 420 आदि में तीन वर्ष या उससे अधिक 7 वर्ष का कारावास चम्पा उर्फ सुनीता वसावा को होकर जेल की कालकोठरी में भेजा जा सकता है।