गांधी और मोदी के गुजरात में अवैध शराब बेचकर मुनाफा कमा रही शिवराज सरकार, मजाक बनी गुजरात में शराबबंदी

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अशोक बलसोरा की एक्सक्लूसिव पड़ताल
गांधी के गुजरात में ‘शराबबंदी’ एक मजाक बनकर रह गई है और मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार इसी ‘ड्राइ स्टेट गुजरात’ में तरीके से शराब बेचकर जमकर मुनाफा काट रही है। कैसे हो रहा है यह सारा खेल पढि़ए ‘झाबुआ लाइव’ की इस खास पड़ताल में-
कागज में एमपी में तो हकीकत में गुजरात जाती है शराब-
sses-at-bar-table-for-party-funगुजरात में शराबबंदी को पलीता लगाने और मुनाफा कमाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक नायाब तरीका विगत 5 साल पहले निकाला और उस पर अभी भी अमल जारी है। दरअसल गुजरात से सटे मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ और अलीराजपुर जिले में गुजरात की सीमा के समीप ऐसे आदिवासी गांवों में विदेशी शराब की दुकानें खोल दी गई, जहां के आदिवासी अधिकांश बीपीएल है यानी वे महंगी शराब पी ही नहीं सकते लेकिन यह गांव शिवराज सरकार को इसलिए ठीक लगे क्योंकि यहां से शराबबंदी वाला राज्य गुजरात 300 मीटर से 10 किमी की दूरी पर है और हैरत की बात यह है कि झाबुआ जिला मुख्यालय या अलीराजपुर जिला मुख्यालय जहां गैर-आदिवासियों की आबादी अधिक है और जनसंख्या ज्यादा है वहां की विदेशी शराब की दुकानों के मुकाबले गुजरात बॉर्डर के एक एक हजार से कम आदिवासी आबादी वाले गांवों की विदेशी शराब की दुकाने करोडों रुपए में गई है, तो कागज पर तो यहां का आदिवासी बदनाम हो रहा है कि विदेशी शराब करोड़ों की वह बीपीएल होकर भी पी जाता है लेकिन हकीकत में गुजरात बॉर्डर पर यह दुकाने इसलिए खोली गई है ताकी दुकानों तक परमिट और उसकी आड़ में शराब लाई जा सके और वहां से शराब अलग-अलग तरीकों से गुजरात भेज दी जाती है। मगर आबकारी के रिकॉर्ड में यह करोड़ों की शराब इन बीपीएल बहुल सीमावर्ती गांवों के आदिवासी पी जाते है झाबुआ जिले में पिटोल, वटठा, मदरानी, मांडली, मदरानी और काकनवानी गुजरात बॉर्डर पर खोली गई विदेशी शराब की दुकानें है तो अलीराजपुर मे सेजावाड़ा, चांदपुर, कठठीवाड़ा, उमराली, छकतला में यह दुकानें खोली गई है।
ताड़ी और महुआ पीता है आदिवासी मगर खुद अपनी ही सरकार ने बदनाम कर दिया –
चालू वित्तीय वर्ष में गुजरात से सटे होने के चलते झाबुआ और अलीराजपुर जिले के शराब के ठेके 178 करोड़ रुपए के उठे थे। इनमें से भी 100 करोड़ का राजस्व गुजरात बॉर्डर के गांवों वाले 12 विदेशी शराब की दुकानों का था। इस संबंध मे स्थानीय आदिवासियों में इस बात की नाराजगी है कि यहां अधिकांश आदिवासी ताड़ी या महुआ की शराब पीते है लेकिन खुद उनकी अपनी ही मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें विदेशी शराब का पियक्कड़ घोषित किया हुआ है और सरकार मुनाफा कमाने के लिए आदिवासियों को बदनाम कर रही है। खुद बीजेपी के दिवंगत सांसद स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया ने पत्र लिखकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह से आदिवासी अंचल में शराबबंदी की मांग यह कहते हुए की थी कि इनके लिए इनकी परंपरागत ताड़ी और महुआ है फिर क्यों विदेशी शराब यहां खोली जाए? मगर उनकी मौत के पहले उनकी इस मांग या कहे उनकी अंतिम इच्छा को शिवराजसिंह सरकार ने खारिज कर दिया था। कांग्रेस के सांसद कांतिलाल भूरिया भी विगत दिनों शराबबंदी की मांग कर चुके है।
ट्रकों बंद गुजरात जाती है शराब- मलाई काट रहे है अफसर
ड्राई स्टेट गुजरात में शराबबंदी की हकीकत यह है कि यहां मध्यप्रदेश से ट्रकोबंद शराब गुजरात जाती है। आबकारी का अमला इस शराब तस्करी को सरंक्षण देता है विगत वर्ष ही झाबुआ जिले के आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त का एक ऑडियो लीक हुआ था जिसमें वह अपने मातहत एक उपनिरीक्षक को दो शराब के ट्रक गुजरात जाने देने का दबाव बना रहे थे ऑडियो मीडिया में आने के बाद उस अधिकारी को हटाना पड़ा था। आबकारी अमला यहां केवल वही शराब पकड़ता है जो उन्हें बिना बताये गुजरात ले जाने की छोटी मोटी प्रयास करता है लेकिन जो पहले से आर्थिक सद्भावना बनाकर गुजरात ले जाना चाहे उसे तो अघोषित पेट्रोलिंग तक कर गुजरात प्रवेश करवाया जाता है।