होली के मद्देनजर जमकर हुई खरीदी- बिक्री

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 मयंक विश्वकर्मा@आम्बुआ

हिंदू समाज के विभिन्न वर्गों में होलिका पर्व का अपना विशेष महत्व है। हालांकि यह पर्व लगभग सभी समाज से किसी न किसी रूप से जुड़ा होता है कोई रंग बनाने बेचते, कोई मिठाई बनाने वाले तो कपड़े के व्यापारी कपड़े सिलने वाले अन्य अनेक लोगों से जो कि विभिन्न समुदाय के होते हैं। इन सांप्रदायिक एकता के त्यौहार में भागीदार होते हैं इस वर्ष भी होली के 1 दिन पूर्व इन सब का योगदान रहा त्यौहार के मद्देनजर बाजारों में जमकर खरीदी बिक्री का माहौल रहा जिसमें व्यापारी में हर्ष व्याप्त है।

होलिका दहन के 1 दिन पूर्व बाजारों में विशेष रौनक रही सोमवार को होलिका दहन होना है। इस कारण रविवार को बाजार गुलजार रहे दुकानों पर खरीदारों की भारी भीड़ जुटी लोगों ने खाद्य सामग्री कपड़े किराना सामान के साथ ही पूजन सामग्री भी खरीदी उसी के साथ साथ रंग गुलाल की बिक्री भी अच्छी हो रही है।

*नारियल की विशेष बिक्री ने रिकॉर्ड तोड़े* स्मरण रहे कि नारियल पूजन सामग्रियों में विशेष महत्व रखता है ऐसा फल (श्रीफल) है जिसे किसी भी समाज में मान्यता मिली हुई है ।जन्म से लेकर मृत्यु तक यह किसी न किसी तरह उपयोग में आता ही है सभी समाजों के धार्मिक उत्सव एवं विवाह आदि संस्कारों में इसका उपयोग होना अनिवार्य है। होली त्यौहार में अन्य समाजों की अपेक्षा आदिवासी ग्रामीण समाज में इसका विशेष महत्व होता है जानकारों के अनुसार आदिवासी समाज के नारायण सिंह चौहान,  अमरसिंह डुडवे, सुमित कटारिया, रमेश बघेल,तकसिंह रावत आदि ने बताया कि होली पर होलिका दहन के समय आदिवासी परिवारों के प्रत्येक सदस्य के हिसाब से नारियल चढ़ाते हैं । यानी कि घर में 2 सदस्य हो तो दो नारियल और यदि 10- 11 सदस्य या उससे अधिक सदस्य हो तो उतने ही नारियल होली पर चढ़ाए (फोड़े) जाते हैं तथा उसका प्रसाद (खोपरा गोला) स्वयं वही व्यक्ति या महिला खाती है जिसने चढ़ाया है ।यही कारण है कि होली पर अन्य सामग्रियों से अधिक नारियल की बिक्री अधिक होती है आम्बुआ जेसे से छोटे कस्बे में भी एक अनुमान के मुताबिक एक ट्रक से अधिक नारियल की बिक्री हुई होगी इस बार महंगाई अधिक होने से नारियल 20-25 तथा ₹30 नग के हिसाब से बिक्री होने के समाचार है। अन्य सामानों मे शक्कर से बने माजम कांगनी तथा खजूर आदि की सिके-चने, गुड़ बेसन आदि की भी अच्छी बिक्री हुई है।

 

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