शर्म मर जाए तो समझो हम मर गए अंत्येष्टि बाकी है : प्रभु नागरजी

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%c3%b7eअलीराजपुर लाइव के लिए आम्बुआ से बृजेश खंडेलवाल की रिपोर्ट-
भागवत कथा में तीसरे दिन पंडित प्रभु नागर ने धर्म स्थल पर हम अपने काम, धंधे, स्वास्थ्य, रिश्तेदारी के लिए भगवान से मत लड़ो लड़ो तो भगवान से इस बात के लिए लड़ो के है भगवान मुझसे ऐसी कोन सी गलती हो गई, जिससे मुझे इस पाप रूपी जीवन भोगना पढ रहा है, भगवान मुझे आपसे दूर मत करना। आज के राजनीतिज्ञों को देखो जिन्होंने ने अपनी राजनीति करने के लिए राम को छोड़ दिया और एक और भरत को देखो जब राम के लिए राज्य को छोड़ दिया, जब हम ही धर्म से भटक जाएंगे तो हमें शांति नहीं मिलेगी, जैसे छाछ को मंथन कर घी निकाला जाता है, उसी तरह हरी के भजन से शांति मिलती है। पंडितजी ने कहा कि यह बात भी सही है कि आप धर्म की राह पर चलोंगे तो बहुत कष्ट भोगना पड़ेंगे। राजा दशरथ ने धर्म के कारण प्राणों का त्याग कर दिया, रामजी ने धर्म के कारण राजपाट छोड़ दिया भरत जैसे भाई को छोड़ दिया। सीता माता ने धर्म के पालन करते हुए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा। सत्य के मार्ग पर चलना है तो शत-प्रतिशत खरा उतरना पड़ेगा और असत्य तो केवल 5 प्रतिशत पर भी असत्य ही रहेगा। उसी तरह राजा अंग का बेटा बड़ा जिद्दी था, धर्म से भटकता था, राजा अंग ने राज्य धर्म के कारण अपने बेटे का त्याग कर दिया था और उसके खत्म करने के लिएं उंकार शब्दों का मंथन कर अपने बेटे को जलाकर भष्म कर दिया। पंडित नागर ने कथा के दौरान कहा कि इस नाशवान शरीर मे भगवान है मगर इसे पाने के लिए हरि के शरण में जाना पड़ता है, जिस तरह दूध को देख लो मात्र 24 घंटे रखो दो वह फट जाएगा। मगर उसी में से तप कर निकाला हुआ घी बरसों चलता है खराब नही होता है। बस उसी तरह हर मानव के शरीर में भगवान का वास होता है, बस भगवान का जप करने से तप करने से मानव का नाश नही होता है। हरि आपको साक्षात दर्शन देंगे। कथा के माध्यम से प्रभु नागर ने चेतावनी दी है कि मनुष्य जीवन मे पहले जीतना धंधा, नौकरी, व्यापार को अपने हाथों से जमकर पकड़ो, पर जब बच्चे बड़े हो जाये तो आप और आपके हाथ कमजोर हो जाए तू अपनी आंखो से पकडऩा, जब आंंखों से भी नहीं समझे और शरम भी मर जाए, तो समझ लेना की हम आज से मर चुके है बस अंत्येष्टि बाकी है। मनुष्य अपने को मरा समझे। भगवान की प्राप्त यज्ञ करने से नही होती, तीर्थ यात्रा करने से नहीं होती है। कथा करने से नहीं होती, मगर एक बात सुन लो अगर भगवान की प्राप्ति करना है तो जप करना होगा जप करने से हरि प्राप्त होते है। हरी दर्शन होते है राजा पर्थ ने एक हजार यज्ञ किए। मगर मन अशांत रहा। एक दिन पर्थ ने नारद जी से कहा कि मंैने इतना दान किया, यज्ञ किया फिर भी मन मे शांति नहीं। नारदजी ने कहा महाराज अगर मन में शांति प्राप्त करना है तो ज्ञान बांटो, को सेवा करो और भगवान का जाप करो स्वतय मन में शांति प्राप्त होगी। मगर जप करते समय एक बात का ध्यान रखना यज्ञ, जप मेें अशुद्धि नहीं होना चाहिए, नही तो जैसा मन वैसा फल फल प्राप्त होता है।