नवम अणु पुण्य स्मृति दिवस पर त्रिदिवसीय धार्मिक आयोजन

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थांदला। जिनशासन में अनेक भव्य आत्माओं ने अपनी उत्कृष्ट साधना के माध्यम से स्व-पर का कल्याण किया है। उन्ही भव्यआत्माओं में से एक जैन-जगत के दैदीप्यमान सूर्य श्रमण संघ के आचार्य भगवंत पूज्य श्रीउमेशमुनिजी”अणु” थे जिन्होंने उच्चकोटि की आत्म साधना करते हुए जिनशासन का गौरव बढ़ाया है। उनकी संयम साधना को देखकर तत्कालीन श्रमण संघीय आचार्यश्री देवेंद्रमुनिजी ने उन्हें जिन शासन गौरव पद से अलंकृत किया था। उक्त उदगार जैनाचार्य पूज्य श्रीउमेशमुनिजी की 9वी पुण्यतिथि पर आयोजित गुणानुवाद धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए विदुषी महासती पूज्या श्रीनिखिलशीलाजी म.सा.ने व्यक्त किये। पूज्याश्री ने कहा कि आचार्यश्री ने अपना पूरा संयम जीवन जिनआज्ञा का पालन करते हुए आगम अनुसार जिया है, आगम रूपी सूत्र सिद्धान्त की गहरी छाप उनके जीवन में दिखाई देती थी यही कारण है कि उनका पूरा जीवन प्रेरणास्पद रहा है। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री हमेशा कहा करते थे कि कर्म रूपी रोगों को मिटाने के लिए संयमरूपी हॉस्पिटल में भर्ती होकर कष्ट,उपसर्ग, परिषह को सहन करना पड़ेगा तभी कर्मो से छुटकारा मिलेगा। पूज्या श्री ने कहा कि गुरुदेव ने अप्रमत्त रहते हुए अपनी संयम साधना का निर्दोष पालन किया तथा अन्य साधक आत्माओं को भी अप्रमत्त रहने का संदेश दिया है।
इस अवसर पर पूज्या श्रीप्रियशीलाजी म.सा. ने गुरु स्मरण करते हुए कहा कि जिस प्रकार तीर्थंकर भगवंत केवलज्ञान के बाद सकल जीवों के उत्थान के लिए देशना देते है उसी तरह अणु भगवंत ने भी सूत्र सिद्धान्तों के गहन रहस्यों को समझ कर भावी पीढ़ी के लिये सद्साहित्य के रूप में लिपिबद्ध किया है। आज अनेक भव्य आत्माओं को अपनी जिज्ञासाओं का समाधान आचार्य भगवंत द्वारा लिखी हुई पुस्तकों से सहज ही हो जाता है। साध्वीजी ने आगम के माध्यम से गुरुदेव के प्रतिरुपता, लघुता, सरलता, इन्द्रिय विजयी, योगाधिकार, अप्रमत्तता व दृढ़ सम्यकत्वी आदि विशिष्ट गुणों का विश्लेषण किया। उन्होंने गुरुदेव की मन वचन व काया से भीतर बाहर की एकरूपता का विस्तृत विवेचन किया। साध्वी दीप्तिश्रीजी ने कुशल शिल्पी का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कुशल कलाकार शिल्पी पत्थर को छैनी हथौड़ी व प्रज्ञा से मूर्ति का आकार दे देता है वैसे ही गुरुदेव ने अनेक असंस्कारी आत्माओं में संस्कारी बनाया व अनेक संस्कारी आत्माओं को साधु जीवन प्रदान किया।
जन्मभूमि श्रीसंघ की और अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत ने गुरुदेव के उपकारों का स्मरण करते हुए सकल संघ कि ओर से कृतज्ञता व्यक्त की एवं उनके आदर्शों पर चलने का निवेदन किया । इस अवसर पर अखिल भारतीय चन्दना श्राविका संगठन की राष्ट्रीय सहमंत्री संध्या भन्साली व स्वीटी जैन ने स्तवन प्रस्तुत किया ।मास्टर मुदित घोड़ावत ने भी गुरु गुणगान किया।

तीन दिवसीय आयोजन

अणु स्मृति दिवस पर अ. भा. चन्दना श्राविका संगठन द्वारा त्रिदिवसीय कार्यक्रमो का आयोजन किया गया । प्रथम दिवस सामुहिक दया का आयोजन किया गया,द्वितीय दिवस भव्य धार्मिक अंताक्षरी का आयोजन किया जिसमें श्रीमती स्मिता गादिया, श्रीमती निक्की शाहजी, श्रीमती जिनल कांकरिया, श्रीमती स्तुति शाहजी व श्रीमती मेघा लोढ़ा की टीम विजेता रही वही कु लोचना पावेचा, कु जिनाज्ञा छाजेड़, कु भवि चौरड़िया, कु माही श्रीश्रीमाल व कु नैंसी शाहजी की टीम व कु आदिती कांकरिया, कु श्रेयल कांकरिया, कु तनीषा कांकरिया, कु हीरम कांकरिया, कु नव्या शाहजी उपविजेता रही। इसी तरह तृतीय दिवस गुरुदेव के साहित्य जिज्ञासा की तरंगें पर ओपन बुक प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। गुरुदेव की स्मृति दिवस पर नवकार महामन्त्र के जाप व उमेश गुरु चालीसा का पाठ भी किया गया। सकल जैन संघ से पौषध सँवर करने का आह्वान भी किया गया। सकल आयोजन में भाग लेने वालों को संगठन अध्यक्षा श्रीमती इंदु कुवाड़, राजू दीदी, मनीष अमृतलाल चौपड़ा परिवार द्वारा प्रभावना वितरित की गई। अनेक भव्य आत्माओं ने तेले, बेले, उपवास, आयम्बिल, एकासन आदि तप किये। तेले तप की आराधना तपस्वी भरत भंसाली,ताराबेंन भंसाली,कुमारी प्रिया व्होरा, अंजल शाहजी,धर्मेश मोदी द्वारा की गई।
धर्म सभा का संचालन प्रदीप गादिया ने किया।